मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिरने के बाद जो टकराव कांग्रेस में शुरु हुआ था, वो अब राजस्थान होते हुए गांधी परिवार की अपनी गलतियों के कारण पंजाब तक पहुंच चुका है। ऐसे में राज्य में अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस की हार लगभग तय मानी जा रही है। ऐसे में पार्टी को इस स्थिति में पहुंचाने के जिम्मेदार हरीश रावत भी अब पार्टी के पंजाब प्रभार से पल्ला झाड़ने की तैयारी कर चुके हैं। उनकी मांग है कि उन्हें गृहराज्य उत्तराखंड की राजनीति में सक्रिय किया जाए। पंजाब की तरह उत्तराखंड की स्थिति भी कांग्रेस के लिए नाजुक है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि पंजाब में पार्टी को बर्बाद करने के बाद हरीश रावत अब उत्तराखंड में भी कांग्रेस की हार की रूपरेखा लिख चुके हैं।
फेसबुक पर लिखा पोस्ट
अभी हाल ही में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी बैठक में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि उन्हें सारी बातें सीधे बताई जाएं, मीडिया के माध्यम से नहीं; लेकिन नेताओं के रवैए स्पष्ट करते हैं कि वो कहीं भी कुछ भी बोल देते हैं। हरीश रावत को जो बात सीधे सोनिया गांधी से कहनी चाहिए, उसके लिए उन्होंने फेसबुक पोस्ट का सहारा लिया है, जो कि अजीबो-गरीब स्थिति का एक नया प्रतीक है। उत्तराखंड में आए जल प्रलय को लेकर रावत ने एक भावनात्मक पोस्ट लिखा है, जिसके साथ उन्होंने गृहराज्य से अपना स्नेह दर्शाते हुए कहा है कि उन्हें पंजाब के प्रभारी के पद से मुक्त कर पुनः उत्तराखंड की राजनीति में उतारा जाए। खास बात ये है कि ये मांग सोनिया और राहुल गांधी से ही की गई है।
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उत्तराखंड में करें सक्रिय
हरीश रावत कांग्रेस सरकार में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इतना ही नहीं, उन्हें राज्य की राजनीति का भी विशेष अनुभव है, लेकिन पिछले दस वर्षों में राज्य की राजनीति 180 डिग्री की पलटी मार चुकी है। ऐसे में उन्होंने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से कहा, “एक तरफ जन्मभूमि (उत्तराखंड) के लिए मेरा कर्तव्य है और दूसरी तरफ कर्मभूमि पंजाब के लिए मेरी सेवाएं हैं, स्थितियां जटिलतर होती जा रही हैं, क्योंकि ज्यों-ज्यों चुनाव आएंगे, दोनों जगह व्यक्ति को पूर्ण समय देना पड़ेगा। कल उत्तराखंड में बेमौसम बारिश ने जो कहर ढाया है, मैं कुछ स्थानों पर जा पाया, लेकिन आंसू पोछने मैं सब जगह जाना चाहता था। मगर कर्तव्य पुकार, मुझसे कुछ और अपेक्षाएं लेकर खड़ी हुई।”
जन्मभूमि से न्याय की नौंटंकी
कांग्रेस के कुछ नेता नौटंकी करने में बेहद माहिर हैं। लंबे वक्त से पंजाब में सत्ता होने के कारण प्रभारी बन कर मलाई खा रहे हरीश रावत को अचानक ही जन्म भूमि की याद केवल इसलिए नहीं आई, क्योंकि वो उनका गृहराज्य है, बल्कि सच ये है कि उनके मन में पुनः मुख्यमंत्री बनने का सपना है, और अगले वर्ष चुनाव भी हैं। उन्होंने लिखा, “मैं जन्मभूमि के साथ न्याय करूं, तभी कर्मभूमि के साथ भी न्याय कर पाऊंगा। मैं पंजाब कांग्रेस और पंजाब के लोगों का बहुत आभारी हूं कि उन्होंने मुझे निरंतर आशीर्वाद और नैतिक समर्थन दिया। संतों, गुरुओं की भूमि, श्री नानक देव जी व गुरु गोबिंद सिंह जी की भूमि से मेरा गहरा भावनात्मक लगाव है। मैंने निश्चय किया है कि लीडरशिप से प्रार्थना करूं कि अगले कुछ महीने में उत्तराखंड को पूर्ण रूप से समर्पित रह सकूं, इसलिए पंजाब में जो मेरा वर्तमान दायित्व है, उस दायित्व से मुझे अवमुक्त कर दिया जाए। आज्ञा पार्टी नेतृत्व की, विनती हरीश रावत की।”
बर्बादी का पर्याय बनेंगे रावत
पंजाब की राजनीति में सिद्धू को सहज रूप से प्लांट करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने हरीश रावत को प्रभार दिया था, इसके विपरीत हरीश रावत कैप्टन अमरिंदर सिंह और कांग्रेस आलाकमान के बीच चाटुकार बनने के चक्कर में मामले को उलझाते गए। नतीजा ये हुआ है कि पार्टी पंजाब में बिखर गई है। कैप्टन के इस्तीफे के बाद भले ही सीएम का पद चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी नवजोत सिंह सिद्धू को दी गई हो, लेकिन सत्य ये है कि पार्टी पंजाब में सर्वाधिक लचर स्थिति में है। साल 2020 तक जिस कांग्रेस को पंजाब में सबसे अधिक मजूबत माना जा रहा था, कांग्रेस के हाथ से अब वो अभेद्य किला निकल चुका है।
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वहीं, पंजाब विधानसभा चुनाव में हार का ठीकरा अपने सिर पर फूटने से बचने के लिए हरीश रावत उत्तराखंड जाना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि वो वहां भाजपा शासित पुष्कर सिंह धामी की सरकार की नीतियों की आलोचना करके भाजपा को हरा देंगे, और सीएम पद हथिया लेंगे। उनकी इस मानसिकता के पीछे राज्य में दो मुख्यमंत्रियों का हटना है। हालांकि, एक सच ये भी है कि राज्य में कांग्रेस की स्थिति इतनी लचर है कि भाजपा का जीतना तय माना जा रहा है। अनेकों ओपिनियन पोल्स तक भाजपा की स्पष्ट जीत के दावे कर रहे हैं। टीएफआई भी इस मुद्दे पर भाजपा की जीत की स्पष्ट राय रख चुका है।
इस पूरे परिदृश्य को देखते हुए ये बात आसानी से कही जा सकती है कि भाजपा विधानसभा चुनाव में अपनी जीत तय कर सकती है, और उत्तराखंड में अपनी जीत की उम्मीद लगाते हुए राज्य में वापसी करने का जुगाड़ बनाने के प्रयास कर रहे हरीश रावत को हार का सामना करना पड़ सकता है। इतना ही नहीं, ये भी माना जा रहा है कि हरीश रावत का राज्य की जनता से जुड़ाव कम होने के चलते यदि वो दोबारा उत्तराखंड में वापसी करते हैं, तो कांग्रेस की अधिक दुर्गति हो सकती है, और पंजाब में पार्टी को बर्बाद करने के बाद हरीश रावत उत्तराखंड में भी कांग्रेस की राजनीतिक अर्थी निकालने की वजह बन सकते हैं।