भारत के खिलाफ हमेशा साजिशें रचने के साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था का डंका पीटने वाले चीन के शहर अब अंधकारमय हो रहे है। चीनी निर्माता भीषण ऊर्जा संकट में फंसते जा रहे हैं। कोयले की कीमतें बढ़ रही हैं और मुद्रास्फीति पहले की तरह बढ़ रही है। इससे पहले कि बीजिंग अपने कोयला संकट को कम करने के लिए चीनी बंदरगाहों पर फंसे ऑस्ट्रेलियाई कोयले को आयात करने के बारे में एक्शन लेता, भारत ने चीन को झटका दे दिया और ऑस्ट्रेलिया के फंसे हुए कोयले का आयात कर लिया। भारत के इस कदम से चीन की ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आर्थिक कार्रवाई को धक्का लगने वाला है।
लाइवमिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय फर्मों ने लगभग 2 मिलियन टन ऑस्ट्रेलियाई थर्मल कोयला खरीदा है जो चीनी बंदरगाहों के गोदामों में पड़ा हुआ था। भारत द्वारा कोयले को फायदे की स्थिति में रियायती कीमतों पर खरीदा जा रहा है क्योंकि चीन में फंसे हुए जहाज और चालक दल अंततः चीन द्वारा खड़ी की गयी मुश्किलों से बाहर निकल जाना चाहते हैं।
इस वर्ष की जनवरी में, चीन ने शीर्ष गुणवत्ता वाले ऑस्ट्रेलियाई कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगाकर ऑस्ट्रेलिया को दंडित करने के बारे में सोचा था, जिससे पहले से ही भेजे गए कोयले का शिपमेंट अधर में लटक गया। चीन की कुटिल चाल ने 70 जहाजों और 1,400 नाविकों को चीनी बंदरगाहों पर फंसे रहने के लिए मजबूर कर दिया, जो अपने माल को खाली करने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। उनमें से कई को पहले ही अन्य गंतव्यों पर भेज दिया गया था, और अब शेष अपने नए खरीदार को ढूंढ रहे थे। इसी का फायदा उठाते हुए अब भारत ने इन ऑस्ट्रेलियाई कोयले को खरीदने का फैसला किया है।
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भारत ने चीन द्वारा बैन आस्ट्रेलियाई कोयले को खरीदकर न केवल ऑस्ट्रेलिया से चीन का ट्रेड वार को रद्द कर दिया है, बल्कि एक स्पष्ट संदेश भी दिया है, कि भारत अपने ऑस्ट्रेलियाई दोस्तों के साथ मजबूती से खड़ा है क्योंकि वे चीनी अत्याचार के खिलाफ मुखरता से आवाज उठा रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया चीन के साथ अपने व्यापार पर अत्यधिक निर्भर है, जो विदेशों में उसके कुल व्यापार का लगभग 31% के बराबर है। भले ही चीन पर ऑस्ट्रेलिया की आर्थिक स्थिति अत्यधिक निर्भर करती है, किन्तु इस निर्भरता के बावजूद ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन के प्रशासन ने चीन के खिलाफ बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। वैश्विक मापदंडों के आधार पर चीन की धज्जियां उड़ाने के मामले में आस्ट्रेलिया ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वास्तव में, ऑस्ट्रेलिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह चीन द्वारा किए गए नुकसान की भरपाई के लिए अपनी “इंडिया फर्स्ट” नीति के साथ आगे बढ़ेगा। ऑस्ट्रेलियाई विशेष दूत और पूर्व प्रधान मंत्री टोनी एबॉट ने हाल ही में भारत आस्ट्रेलिया के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए जोर दिया था। उन्होंने यह भी कहा, “चीन के बारे में लगभग हर सवाल का जवाब भारत है।” इसके अलावा, भारत और ऑस्ट्रेलिया खनन कोयला क्षेत्र में अपने सहयोग को तेज करने के तरीके को विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले महीने, दोनों देशों के बीच कोयले और खननों पर पहली संयुक्त कार्य समूह (JWG) की बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई थी। यही नहीं भारत-ऑस्ट्रेलिया ऊर्जा वार्ता भी इसी महीने आयोजित होने वाली है।
ऑस्ट्रेलिया और भारत पहले से ही जापान द्वारा शुरु की गई पहल Supply China Resilience Initiative (SCRI) का हिस्सा हैं, जिसका उद्देश्य पूरे इंडो-पैसेफिक में प्रमुख Supply Chain से चीन को अलग करना है। इसके अलावा, यह भारत ही था जो ऑस्ट्रेलियाई कोयला उद्योग को बचाने के लिए सबसे पहले आया था, जब चीन ने इस साल की शुरुआत में आस्ट्रेलिया पर एकतरफा प्रतिबंध लगाया था। भारत अपनी बढ़ती मांग और संरचनात्मक विकास के कारण, चीन से ऑस्ट्रेलियाई कोयले की मांग को प्रतिस्थापित करने में सक्षम था। हालांकि, चीनी अर्थव्यवस्था के खिलाफ ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन इस पूरे धर्मयुद्ध के कर्ताधर्ता है, और ये युद्ध अभी तक पूरा नहीं हुआ है। ऐसे में मॉरिसन खेल को आगे बढ़ाने की तैयारी कर रहे हैं। स्कॉट मॉरिसन कथित तौर पर चीन को ऑस्ट्रेलियाई लौह अयस्क की आपूर्ति पर लगाम लगाने पर काम कर रहे हैं, जो चीनी लौह और इस्पात उद्योगों को बर्बाद करने वाला है।
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ऑस्ट्रेलिया ने पहले ही अपने निर्यातकों को अपनी चाइना प्लस रणनीति के तहत चीन से दूर अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाने के लिए कहा है। ऑस्ट्रेलियाई कोषाध्यक्ष जोश फ्राइडेनबर्ग ने पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया की नई चीन व्यापार नीति की घोषणा करते हुए कहा था, “व्यवसायों को इन अवसरों को तलाशना जारी रखना चाहिए, जहां वे चीन के अलावा व्यापार कर सकते हैं, लेकिन उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि दुनिया बदल गई है। उन्हें हमेशा अपने बाजारों में विविधता लाने की तलाश करनी चाहिए, और एक देश पर अधिक निर्भर नहीं रहना चाहिेए।”
भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों देशों ने सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक क्षेत्र में चीन के आधिपत्य को चुनौती दी है। भारत, 1.4 बिलियन का विशाल बाजार होने के कारण, ऑस्ट्रेलिया को विशाल चीनी बाजारों का विकल्प आसानी से प्रदान कर सकता है। इसी तरह, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश खनन और निर्माण के क्षेत्रों में सहयोग करके चीनी आयात पर अपनी निर्भरता को कम करने में भारत की मदद कर सकते हैं।