भारत के पासपोर्ट की मजबूती उसके कद के अनुरूप नहीं , केवल PM मोदी ही इसे फिक्स कर सकते हैं

जैसे को तैसा की रणनीति बदल सकती है भारतीय पासपोर्ट स्वीकार्यता

पासपोर्ट रैंकिंग

भारत बहुत बदल चुका है, उसका सॉफ्ट पावर बढ़ रहा है, ये निवेशकों का पसंदीदा देश बना हुआ है , वैक्सीनेशन के मामले में भी आगे है, परंतु जब बात पासपोर्ट की आती है तो भारत का पासपोर्ट टॉप 50 में भी नहीं आता। Henley Passport Index (हेनले पासपोर्ट इंडेक्स) ने हाल में ही देशों के पासपोर्ट की शक्ति और स्वीकार्यता के आधार पर सभी देशों की एक रैंकिंग लिस्ट जारी की है। Henley Passport Index हर साल इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन द्वारा दिए गए डाटा के आधार पर यह सूची जारी करता है। इस सूची में भारत पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष स्थान नीचे गिर गया है। भारतीय पासपोर्ट की दुनिया में  रैंकिंग 90 है, जो तजाकिस्तान और बुर्कीनो फासो के बराबर है।

हेनले पासपोर्ट इंडेक्स रैंकिंग में जापान और सिंगापुर ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है वहीं, जर्मनी और दक्षिण कोरिया संयुक्त रूप से द्वितीय स्थान पर हैं। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान जैसे देश हैं। अफगानिस्तान सूची में सबसे नीचे है। भूटान 96, श्रीलंका 107, बांग्लादेश 108, नेपाल 110, पाकिस्तान 113 और अफगानिस्तान 116 रैंक पर हैं।

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किसी देश के विचार की शक्ति और स्वीकार्यता को सूचीबद्ध करने के लिए कुछ देश के नागरिकों को कितने देशों में वीजा फ्री ट्रैवल या वीजा ऑन अराइवल की सुविधा है, यह बात देखी जाती है। उदाहरण के लिए भारतीय नागरिकों को 58 देशों में वीजा फ्री ट्रैवल या वीजा ऑन अराइवल की सुविधा मिली है। इस कारण भारत की रैंकिंग 90 है। अमेरिका के नागरिकों को 185 देशों में यह सुविधा मिली हुई है, इसलिए पासपोर्ट की रैंकिंग 7 है।

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सवाल यह उठता है कि क्या भारत को अपने पासपोर्ट की इतनी खराब रैंकिंग के बाद ही संतोष करना चाहिए? भारतीय पासपोर्ट ब्रिग्स और QUAD देशों में सबसे कमजोर है। BRICS के सदस्यों में ब्राजील की रैंक 20, रशियन फेडरेशन की रैंक 52, साउथ अफ्रीका की 58 और चीन की 72 है। वहीं QUAD में जापान प्रथम, अमेरिका सातवें और ऑस्ट्रेलिया 20वें स्थान पर हैं। यहाँ तक कि तुर्की, अजरबैजान युगांडा, थाईलैंड, बेलारूस जैसे देशों की स्थिति भारत से अच्छी है।

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भारत दुनिया की 6वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है,  भारत ग्लोबल फायर पावर इंडेक्स में चौथे स्थान पर है। यहां तक की भारत विश्व में सबसे अधिक निवेश आकर्षित करने वाले देशों में एक है। ऐसे में भारत को अपनी स्थिति से संतोष नहीं करना चाहिए।

भारत सरकार चाहे तो अन्य बहुत से देशों को वीजा ऑन अराइवल की सुविधा दे सकता है और बदले में अपने नागरिकों के लिए यही सुविधा मांग सकती है। भारत वैश्विक स्तर पर वैक्सीन निर्यात शुरू करता है तो इसका भी प्रयोग अपने पासपोर्ट की स्थिति को सुधारने में किया जा सकता है। हाल ही में भारत सरकार ने निर्णय किया है कि वह दूसरे देशों के नागरिकों के साथ भारत में वैसा ही व्यवहार करेंगे, जैसा भारतीय नागरिकों के साथ दूसरे देशों में व्यवहार किया जाएगा। अर्थात कोई भी देश भारतीयों के साथ जैसा व्यवहार करेगा, उस देश के नागरिक के साथ भारत में वही व्यवहार होगा। अगर हमारे लोगों को क्वारन्टीन किया जाता है तो हम भी संबंधित देश के नागरिकों को क्वारन्टीन करेंगे। क्यों न यह नीति पासपोर्ट के संदर्भ में भी लागू हो। भारत ने हाल ही में यह दिखाया है कि अपनी कूटनीतिक शक्ति का प्रयोग करके वह दुनिया को अपने अनुसार चलने पर मजबूर कर सकता है। जैसा कि हमने हाल ही में देखा था, कैसे ब्रिटेन ने जब भारतीयों के प्रवेश पर उन्हें 14 दिन क्वारन्टीन करने की शर्त रखी थी, तो भारत सरकार ने जैसे को तैसा नीति अपनाई और ब्रिटिश नागरिकों के लिए अनिवार्य क्वारन्टीन की शर्त लगा दी। परिणामस्वरूप ब्रिटेन को दबाव में अपने नियमों में बदलाव करना पड़ा।

चीन की बात करें तो हाल ही में ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के साथ हुए विवाद के बाद चीन ने इन देशों के कुछ नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन इसके बाद भी चीन के पासपोर्ट की रैंकिंग भारत से अच्छी है। भारत में दुनियाभर के अतिथियों का स्वागत बहुत अच्छे से होता है, तो फिर भारतीयों के साथ दोहरा व्यवहार क्यों होने दिया जाए?

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हम यह नहीं कह रहे कि भारत को उन सभी देशों के लोगों को वीजा ऑन अराइवल या वीजा फ्री ट्रैवल की सुविधा नहीं देनी चाहिए जो भारतीय नागरिकों को ऐसी सुविधा नहीं देते, लेकिन मोदी सरकार को संदर्भ में कुछ कदम उठाने की आवश्यकता है। भारत चाहे तो ऐसे देशों से बात करके वीजा फ्री ट्रैवल जैसी सुविधा शुरू करवा सकता है, जो भारत के साथ मजबूत आर्थिक संबंध रखते हैं। जिन देशों में भारतीय विद्यार्थियों, उद्योगपतियों, नौकरीपेशा लोगों की बहुतायत है, जहाँ भारतीयों का बड़ी संख्या में आना जाना होता है, वहाँ यह सुविधाएं प्राप्त की जा सकती हैं। केवल मोदी सरकार ही यह करने में सक्षम है क्योंकि अब तक मोदी सरकार ने हर बार भारत की सॉफ्ट पावर का बखूबी इस्तेमाल किया है। चाहे 370 हटाने के बाद वैश्विक मंच पर अपनी बात रखनी हो, चाहे कोरोना काल में विश्व से मदद लेनी हो या उन्हें वैक्सीन और दवाइयां पहुँचानी हो, हर बार भारत ने अपनी सॉफ्ट पावर का बखूबी प्रयोग किया है और अपने प्रभाव को बढ़ाया है। ऐसे में भारतीय पासपोर्ट की शक्ति को बढ़ाना, सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।

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