इतिहास का सही तौर पर विश्लेषण करने पर हमें यह पता चलता है कि दुनिया में वह देश सबसे सशक्त और ताकतवर देश रहे हैं, जिनके पास ज्यादा मित्र देश रहे हैं और जिनके पास आर्थिक विकास के लिए मार्ग है। यह मार्ग नीतिगत होने के साथ-साथ भौगोलिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होने चाहिए। भारत अपने कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय महत्त्व के चलते बहुत ही उन्नत तरीके से इन दोनों मोर्चो पर लड़ रहा है। भारत का यह नया दांव तुर्की समेत पाकिस्तान और चीन के लिए भी असरदार साबित होगा। भारत ने आर्मेनिया के साथ अपने सम्बन्धों को बढ़िया करते हुए अब तुर्की को फंसाने की योजना को मजबूत कर दिया है।
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और आर्मेनिया के विदेश मंत्री के बीच मुलाकात हुई है। यह मुलाकात कई कारणों से महत्वपूर्ण बताई जा रही है। भारत के लिए लाभ की बात यह है कि मध्य एशिया में भारत एक बढ़िया मित्र देश बना रहा है, जिसका सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व बहुत ज्यादा है। इसके साथ-साथ भारत अपनी दूरदर्शिता से उठाए गए नार्थ-साउथ कॉरिडोर की नीवं भी मजबूत कर रहा है। आइए, सबसे पहले हम नार्थ साउथ कॉरिडोर को समझते हैं।
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— India in Türkiye (@IndianEmbassyTR) October 14, 2021
क्या है नार्थ साउथ कॉरिडोर?
इंटरनेशनल नार्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी कि INSTC परियोजना मूल रूप से भारत, ईरान और रूस के बीच तय की गई थी और इसकी नींव 2000 में सेंट पीटर्सबर्ग में रखी गई थी। इन तीन देशों के अलावा 10 अन्य देश (अजरबैजान, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान, सीरिया और बुल्गारिया) पर्यवेक्षक के रूप में तय किये गए थे।
यह भारत और रूस के बीच माल ढुलाई की लागत को लगभग 30 प्रतिशत तक कम करने और आवागमन को 40 दिनों से कम करने के उद्देश्य से कार्गो परिवहन के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों के 7,200 किलोमीटर लंबे मल्टी-मोड नेटवर्क की नींव है।
कॉरिडोर का उद्देश्य सदस्य राज्यों के प्रमुख शहरों के बीच व्यापार संपर्क को बढ़ाना है। परियोजना का प्राथमिक लक्ष्य समय और धन के मामले में लागत को कम करना और सदस्य राज्यों के बीच व्यापार की मात्रा में वृद्धि करना है। ‘फेडरेशन ऑफ फ्रेट फॉरवर्डर्स’ एसोसिएशन इन इंडिया (FFFAI) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि यह मार्ग “वर्तमान पारंपरिक मार्ग की तुलना में 30 प्रतिशत सस्ता और 40 प्रतिशत छोटा है।” अनुमान है कि कॉरिडोर से प्रति वर्ष 20 से 30 मिलियन टन माल ले जाने में सुविधा होगी। इसके अलावा INSTC भारत को ईरान और उससे आगे मध्य एशिया में सुगम पहुँच प्राप्त करने में भी मदद करेगा।
क्या है इस इसका आर्थिक और रणनीतिक लाभ?
राजनीतिक और आर्थिक रूप से, INSTC को चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के खिलाफ भारत की काउंटरवेट रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है क्योंकि चीन इस क्षेत्र में भारत का प्रतिस्पर्धी है। यह आर्थिक गलियारा यूरेशिया के साथ भारत के जुड़ाव पर गहरा प्रभाव छोड़ने जा रहा है। INSTC भारत के राजनीतिक हितों में से एक को भी पूरा करता है क्योंकि यह पाकिस्तान को दरकिनार करता है और रूस और परियोजना के अन्य सदस्यों के साथ अपने सहयोग को मजबूत करता है।
अब आप सोच रहे होंगे कि एक साथ तुर्की, पाकिस्तान और चीन पर यह कैसे कारगर साबित होगा? इसको ऐसे समझिए, भारत से रूस अगर अभी सामान भेजना हो तो वह मजबूरीवश स्वेज कैनाल, बाल्टिक सागर होते हुए रूस जाएगा। यही रूट ब्रिटेन, इटली जैसे देशों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि इसे कम किया जा सकता है। इसी को देखते हुए INSTC की नींव रखी गई। इसमें यह सोचा गया कि भारत से ईरान, ईरान से अजरबैजान और फिर वहां से जॉर्जिया के रास्ते रूस में माल ढुलाई किया जा सके।
यह पहले की योजना थी। फिर इसमें बदलाव किया गया कि जो रास्ता अजरबैजान से होकर जाएगा, उसे अर्मेनिया से होकर गुजारा जाए। भारत का इस फैसले हेतु अप्रत्यक्ष कारण है। असल में यह चीज ज्यादा ईरान चाहता है। ईरान को लगता है कि तुर्की अजरबैजान का इस्तेमाल करके ईरान की हालात को प्रभावित करना चाहता है। भारत ने भी यहां अपना हित देखा, तुर्की हमेशा से कश्मीर के मुद्दे को लेकर भारत को कठघरे में खड़ा करता है और वही तुर्की आर्मेनिया के एक हिस्से को अपना बताता आया है। अब भारत ने आर्मेनिया से मजबूत रिश्ते बनाकर ईरान जैसे पुराने दोस्त का विश्वास जीता है और दूसरी ओर वह तुर्की को भी कड़ा संदेश दे दिया है।
पाकिस्तान के पास हमेशा से यह मौका था कि दो समृद्ध राष्ट्रों के बीच वह ट्रांजिट देश बनकर पैसा कमाए। आज स्वेज नहर और पनामा कैनाल से पनामा और मिस्र जैसे राष्ट्र अरबों डॉलर कमा रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान को यह सद्बुद्धि नहीं आई। इसीलिए भारत को चारबहर पोर्ट का निर्माण करके पाकिस्तान को नजरअंदाज करना पड़ा। अब ईरान इस परियोजना में ट्रांजिट हब के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यूरेशिया को हिंद महासागर से जोड़ने के लिए, भारत ने ओमान की खाड़ी पर ईरान के गहरे समुद्री बंदरगाह चाबहार को विकसित करने के लिए 635 मिलियन डॉलर तक का निवेश करने पर सहमति व्यक्त की है। यह चीन द्वारा भारी निवेश किए गए प्रमुख पाकिस्तानी व्यापार केंद्र बंदरगाह गवादर बंदरगाह से मात्र 300 किलोमीटर दूर है। भविष्य में अगर चारबहर का इस्तेमाल ज्यादा होता है तो ग्वादर पोर्ट वैसे ही बेकार हो जाएगा।
इसके अलावा नई दिल्ली ने चाबहार में भारतीय निवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने के लिए अमेरिका को सफलतापूर्वक मना लिया है। भारत और ईरान के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे परियोजना के निर्माण के लिए 2015 में एक समझौते पर हस्ताक्षर हो चुका है। इस रेलवे परियोजना को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग बनाने में भारत के हित के साथ संरेखित करने के लिए कहा जा रहा है।
अब यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत चीन और तुर्की के मुंह पर करारा तमाचा मारने के लिए तैयार है। यह कदम भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए जितना कारगर होगा, उतना ही रणनीतिक तौर पर इसका लाभ देखने को मिलेगा।