कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम जिम कॉर्बेट के नाम पर रखा ही नहीं जाना चाहिए था परंतु यह भूल अब सुधारी जाएगी

'हर चमकती चीज सोना नहीं होती'

जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

देश में अनेक राष्ट्रीय वन्य उद्यान चर्चा में रहे हैं, जिनमें सबसे प्रमुख नाम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park)अर्थात जिम कॉर्बेट वन्य उद्यान का रहा है। इस वन्य उद्यान का नाम एक ऐसे व्यक्ति के नाम पर रहा है, जिसका वन संरक्षण से उतना ही नाता रहा है, जितना ब्रिटेन का शिष्टाचार से, बॉलीवुड का योग्यता से, चीन का लोकतंत्र से और तालिबान का महिला अधिकारों से। परंतु यदि सब कुछ सही रहा, तो ये भूल जल्द ही सुधारी जा सकती है, और जिम कॉर्बेट वन्य उद्यान का नाम बदला जा सकता है।

दरअसल, केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री अश्विनी चौबे के अनुसार जल्द ही जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम बदलकर रामगंगा नेशनल पार्क रखा जाएगा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 3 अक्टूबर के दिन केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्री अश्विनी चौबे ने जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का दौरा किया था। इस दौरान केंद्रीय मंत्री ने नेशनल पार्क का नाम बदलकर रामगंगा राष्ट्रीय उद्यान करने का ऐलान किया। India TV की रिपोर्ट के अनुसार अपने भ्रमण के दौरान धनगढ़ी स्थिति म्यूजियम में रखे गए विजिटर बुक में भी उन्होंने पार्क का नाम रामगंगा नेशनल पार्क ही लिखा तथा भ्रमण करने के बाद उन्होंने अधिकारियों के साथ बैठक में नाम बदलकर रामगंगा नेशनल पार्क रखने की बात कही।

कौन थे जिम कॉर्बेट?

बता दें कि जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क चर्चित यात्री एवं शिकारी जेम्स कॉर्बेट के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में कई मानव भक्षक तेंदुओं और बाघों का शिकार किया था। वे स्वतंत्रता तक भारत में रहे, जिसके पश्चात वह केन्या की ओर प्रस्थान कर गए, जहां उनका 1955 में निधन हुआ। जेम्स कॉर्बेट एक शिकारी होने के साथ एक कहानीकार भी थे, और अपनी कहानियों से कई स्थानीय निवासियों को रिझाते भी थे। ‘Man Eaters of Kumaon’, ‘Man Eating Leopard of Rudraprayag’ जैसे कई विश्व प्रसिद्ध पुस्तक इन्हीं के अनुभवों का संकलन है।

हालांकि कहते हैं न, हर चमकती चीज सोना नहीं होती, और यही बात जिम कॉर्बेट पर भी बराबर लागू होती है। जिम कॉर्बेट अपने शब्दों से जितना रिझाते थे, उतनी ही सफाई से वे जानवरों की हत्या को अंजाम भी देते थे। उनका दावा था कि इससे वे स्थानीय जनता को मानव भक्षकों से छुड़ा रहे हैं, परंतु ऐसा हर बार नहीं होता था।

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उदाहरण के लिए इतिहासकार दावा करते हैं कि जिम कॉर्बेट तब तक बाघ का शिकार नहीं करते थे, जब तक उन्हें विश्वास नहीं होता था कि ये बाघ वास्तव में मानव भक्षक है। हालांकि, उन्होंने एक विशाल बंगाल टाइगर का शिकार किया, जिसका नाम था ‘Bachelor of Powalgarh’। ये अन्य बंगाल टाइगरों की तुलना में कुछ अधिक ही विशाल था, और मानव भक्षण से इसका दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था, परंतु इसका शिकार करने में जिम कॉर्बेट ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके अलावा जिम कॉर्बेट भारतीयों को हीन दृष्टि से भी देखते थे, जो उनकी पुस्तकों में स्पष्ट दिखाई देता है। वे हमेशा भारतीयों को ‘गरीब और भूखे लोगों’ की दृष्टि से ही देखते थे और अपने पुस्तक माई इंडिया में भी ऐसे ही संबोधित किया।

क्यों रामगंगा नाम होने से होंगे बदलाव

ऐसे में रामगंगा नेशनल पार्क नाम रखने से क्या बदलाव होंगे? इससे एक ही तीर से दो लक्ष्य भेदे जाएंगे। न केवल क्षेत्रीय संस्कृति को सम्मान मिलेगा, अपितु औपनिवेशिक मानसिकता पर भी करार प्रहार होगा। रामगंगा असल में गंगा नदी की ही एक सहायक नदी अर्थात Tributary है, जो जिम कॉर्बेट वन्य उद्यान से बहती है। ऐसे में उत्तराखंड की क्षेत्रीय संस्कृति को उसका उचित सम्मान भी मिलेगा।

अब अगला सवाल यह है नाम बदलने से औपनिवेशिक मानसिकता पर प्रहार कैसे होगा? आपको क्या लगता है, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क का नाम प्रारंभ से यही है? नहीं, प्रारंभ में इस उद्यान का नाम उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल, लॉर्ड हेली के नाम पर हेली नेशनल पार्क रखा गया था, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात गोविंद बल्लभ पंत और पुरषोत्तम दास टंडन के संयुक्त नेतृत्व में इस उद्यान का नाम रामगंगा नेशनल पार्क रखा गया, क्योंकि तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही भाग था। परंतु ब्रिटिश प्रेमी जवाहरलाल नेहरू को भारतीय संस्कृति के प्रति यह प्रेम अधिक नहीं भाया और 1957 में इस उद्यान का नाम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क रखा गया। ऐसे में रामगंगा नेशनल पार्क रखके हम अपने देश के असली नायकों के विचारों को उनका उचित सम्मान वापिस देंगे और औपनिवेशिक मानसिकता से भी पीछा छुड़ाएंगे।

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