युद्ध के बदलते आयामों के बीच साइबर सुरक्षा एक गंभीर समस्या है। भारत विश्व के सबसे ज्यादा साइबर आक्रमणों को झेलने वाले देशों में से एक है तो वही चीन दूसरी सबसे ताकतवर साइबर महाशक्ति। साइबर युद्ध आपको युद्ध लड़ने से पहले ही पंगु बनाने की योजना पर काम करता है। यह परिस्थिति भयावह है क्योंकि अगर सेना ही अक्षम और लाचार हो जाएगी तो हम लड़ेंगे कैसे? इसी समस्या से भारत को निजात दिलाने के लिए हमारे रक्षा मंत्रलाय ने अभेद्य साइबर सुरक्षा हेतु थेल्स नामक फ्रांसीसी कंपनी के साथ समझौता किया है।
थेल्स देगा भारत को साइबर सुरक्षा कवच
प्रमुख फ्रांसीसी रक्षा समूह थेल्स नए युग के साइबर सुरक्षा समाधान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और बड़े डेटा एनालिटिक्स में उन्नत क्षमताओं के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रहा है। थेल्स समूह के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी पैट्रिस केन ने कहा है कि कंपनी भारत में अपने समग्र पदचिह्न का विस्तार करने पर विचार कर रही है, विशेष रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्रों में, जो सशस्त्र बलों के लिए महत्वपूर्ण होंगे।
भारतीय सेना, नौसेना और भारतीय वायु सेना भविष्य की सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए नैनो टेक्नोलॉजी, क्वांटम कंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्वार्म ड्रोन और रोबोटिक तकनीकों जैसी भविष्य की तकनीकों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
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केन ने कहा, “थेल्स ग्रुप का लक्ष्य भारत में साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल सॉल्यूशंस सहित कई क्षेत्रों में अपनी मौजूदगी का विस्तार करना है। हम सोनार, रडार और अन्य मंचों पर भारतीय रक्षा क्षेत्र के साथ रक्षा प्रौद्योगिकियों को साझा करने में उत्सुक है। अपनी भागीदारी के स्तर को बढ़ाने में योगदान देने के लिए हम कुछ महत्वपूर्ण उपकरण और सिस्टम लाने पर भी विचार कर रहे हैं।“
केन ने कहा कि भारत का रक्षा विनिर्माण क्षेत्र सरकार की कई नीतिगत पहलों पर सवार होकर सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि थेल्स, सैन्य प्लेटफार्मों और समाधानों का एक प्रमुख उत्पादक बनने की अपनी खोज में भारत का एक प्रमुख भागीदार बनना चाहेगा।
उन्होने अपने आधिकारिक बयान में आगे कहा कि “हम अपने या अपने भागीदारों के साथ उपकरणों का उत्पादन करके ‘मेक इन इंडिया‘ के तहत भारत को अपने रक्षा उत्पादन का विस्तार करने में मदद करने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। साइबर सुरक्षा समाधान, एआई एप्लिकेशन और बिग डेटा एनालिटिक्स विकसित करने के लिए भारत के पास एक अच्छा टैलेंट पूल है।”
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में विश्वसनीय देश है भारत
भारत द्वारा अगले पांच वर्षों में रक्षा उपकरणों की खरीद में लगभग 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने की उम्मीद है, इसलिए लगभग सभी प्रमुख वैश्विक रक्षा उद्योगों की नजर इस पर टिकी हुई है। थेल्स के अध्यक्ष और सीईओ ने यह भी संकेत दिया कि कंपनी उत्पादों और सैन्य समाधानों की एक श्रृंखला के लिए कई भारतीय कंपनियों के साथ संयुक्त उद्यम करने पर विचार कर रही है, लेकिन उन्होंने विवरण साझा करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को अब कंपनी की वैश्विक उत्पादन शृंखला हेतु कच्चे माल का प्रमुख उत्पादक देश माना जाता है और अगले पांच वर्षों में थेल्स भारत से खरीद को दोगुना करने जा रहा है। अतः भारत अब हमारी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण और विश्वसनीय देश है।
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भारत में पहले से ही काम कर रहा है थेल्स
थेल्स उन फ्रांसीसी फर्मों का हिस्सा हैं जो भारत द्वारा खरीदे गए राफेल जेट के लिए प्रमुख घटक प्रदान करती हैं। राफेल सौदे के तहत थेल्स की ऑफसेट प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में, कंपनी ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को आरबीई-2 रडार के लिए मॉड्यूल बनाने में मदद की थी।
थेल्स चार दशकों से अधिक समय से एयरोस्पेस दिग्गज हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को एवियोनिक्स और अन्य उपकरण प्रदान कर रहा है और विभिन्न अन्य प्रमुख सैन्य परियोजनाओं के लिए उपकरणों की आपूर्ति में भी शामिल है। 1953 से भारत में मौजूद थेल्स के कार्यालय नई दिल्ली, गुड़गांव, हैदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई और मुंबई में हैं। भारत में थेल्स और इसके संयुक्त उद्यमों के साथ 600 से अधिक कर्मचारी काम कर रहे हैं। पैट्रिस केन ने रक्षा विनिर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारत के सुधार उपायों की भी सराहना की, क्योंकि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में घरेलू रक्षा उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं।
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सौदे का कारण
पिछले साल अगस्त में यह घोषणा की गई थी कि भारत 2024 तक 101 हथियारों और सैन्य प्लेटफार्मों जैसे परिवहन विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, पारंपरिक पनडुब्बी, क्रूज मिसाइल और सोनार सिस्टम के आयात को रोक देगा। दूसरी नकारात्मक सूची, 108 सैन्य हथियारों और अगली पीढ़ी के कार्वेट, एयरबोर्न अर्ली वार्निंग सिस्टम, टैंक इंजन और रडार जैसी प्रणालियों पर आयात प्रतिबंध लगाते हुए, हाल ही में जारी की गई थी।
सरकार ने पिछले साल मई में रक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने की घोषणा की थी। सरकार आयातित सैन्य प्लेटफार्मों पर निर्भरता कम करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है और इसलिए ही घरेलू रक्षा निर्माण का समर्थन करने का निर्णय लिया है। थेल्स की इस घोषणा को सरकार के इन्हीं प्रयासों से जोड़कर देखा जा रहा है।
चीन के विस्तारवादी नीति ने युद्ध के नए आयामों को खोल दिया है। जमीनी स्तर पर चीजें भले शांत हो जाए लेकिन ड्रैगन द्वारा उत्पन्न साइबर खतरा अभी भी बहुत ज्यादा है। भारत के सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने कहा, “चीन हम पर साइबर हमले करने में सक्षम है जो हमारे सिस्टम की एक बड़ी मात्रा को बाधित कर सकता है।” हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का नेशनल साइबर पावर इंडेक्स वर्तमान में साइबर पावर में चीन को दूसरे स्थान पर रखता है। वहीं, भारत दुनिया के सबसे अधिक साइबर हमलों को झेलनेवाले देशों में से एक है।
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निष्कर्ष
चीन जानता है कि भारतीय सैनिकों के पराक्रम के आगे सीमा पर उसे हमेशा मुंह की खानी पड़ेगी। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण चीन ने गलवान में देखा। अतः जब वो गलवान में हारा तो उसने साइबर आक्रमण कर मुंबई में ब्लैकआउट को अंजाम दिया। हमें समझना होगा कि भविष्य का रण जमीन पर न होकर कंप्यूटर के माध्यम से अन्तरिक्ष में लड़ा जाएगा। चीन इसके लिए तीव्र गति से तैयारी कर रहा है। भारत का ये सौदा उसे अभेद्य रक्षा कवच प्रदान करेगा और हमारे रक्षा प्रतिष्ठानों को उत्तम सुरक्षा मुहैया कराएगा।