इस बार सर्दियाँ चीन के लिए विनाशकारी होंगी क्योंकि भारत टस से मस नहीं होने वाला

थलसेना और वायुसेना

भारत के साथ 13वें दौर की वार्ता के असफल होने के बाद चीन लगातार युद्ध का माहौल बना रहा है। हाल ही में चीनी संसद में एक विधेयक पारित किया गया है जिसके बाद चीनी सेना को अधिकार मिल गया है कि सीमा विवाद बढ़ने की स्थिति में वह शस्त्रों का प्रयोग भी कर सकती है। यह सीधे तौर पर भारत के साथ 1993 में हुए समझौते का उल्लंघन है। चीनी सेना का इरादा भारत सरकार पर दबाव बनाने का है, लेकिन भारतीय सेना भी चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हर तरह से तैयार है। सीमा पर चीनी जमावड़े को देखते हुए भारत ने भी अपनी थलसेना के साथ ही वायुसेना को भी एक्टिवेट मोड पर रखा है।

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एक गलती के कारण पिछले साल चीनी पीएलए ने सजा भुगती थी, अब  इस वर्ष भी चीनियों की क्लास लगनी तय है। सेना के जमावड़े में एंटी एयरक्राफ्ट गन L-70 तैनात हैं। साथ ही पिनाका रॉकेट सिस्टम और M-777 होवित्जर तोप तैनात है, इसके अलावा ऐसे ही पूरी ठंड के दौरान वायुसेना को सप्लाई के लिए तैनात रहने का आदेश दिया गया है।

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पश्चिम में लद्दाख और पूर्व में सिक्किम तथा अरुणाचल सेक्टर में थलसेना और वायुसेना दोनों साथ मिलकर काम कर रही हैं। शांति काल के दौरान दोनों देशों की सेनाएं नवंबर में ठंड बढ़ने के साथ ही सीमा पर से वापस लौटने लगती थीं, किंतु पिछले वर्ष माइनस 20 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी दोनों सेनाएं लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर डटी रही। इस वर्ष भारतीय सेना ने पूर्वी सेक्टर में इंटीग्रेटेड थियेटर कमांड को तैनात किया है जिसमें थलसेना और वायुसेना दोनों एक साथ मिलकर काम करेंगी।

चार दिवसीय कमांडर कॉन्फ्रेंस में एलएसी पर सेना की तैनाती को लेकर मंथन हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह है कि पिछले वर्ष चीन ने भारतीय वायु सेना पर दबाव बनाने के लिए अपने J20 विमान को भारतीय सीमा के समीप एयर बेस पर तैनात कर दिया था। इसके जवाब में इस वर्ष भारतीय वायुसेना ने हाशिमारा एयर बेस पर अपने अत्याधुनिक लड़ाकू विमान राफेल को तैनात कर दिया है।

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ठंड के दौरान भारतीय वायुसेना की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि बॉर्डर क्षेत्र में तैनात सैनिकों को रसद व अन्य आवश्यक सामानों की आपूर्ति के लिए पूरी तरह से वायु सेना पर निर्भर रहना पड़ता है। ठंड के दौरान बर्फबारी के कारण सीमावर्ती क्षेत्र पर स्थल मार्ग से पहुंचना नामुमकिन हो जाता है। ऐसे में भारतीय वायुसेना के आपूर्ति विमान और हेलीकॉप्टर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारतीय वायुसेना के पास C-17 ग्लोबमास्टर, II 76s, An 32s जैसे विमान हैं। तनाव बढ़ने की स्थिति में C-130 सुपर हरक्यूलिस विमान का प्रयोग किया जाएगा। वहीं, फॉरवर्ड बेस पर रसद की आपूर्ति के लिए Mi 17 व चीतल जैसे हेलीकॉप्टर मौजूद हैं। वहीं, चिनूक हेलीकॉप्टर भारी वस्तुओं जैसे होवित्जर तोप आदि को भी ऊंची पहाड़ियों तक पहुँचा सकता है।

वायु सेना की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष ठंड के शुरुआत से तुरंत पहले अक्टूबर महीने में IAF चीफ वीआर चौधरी ने लद्दाख के फॉरवर्ड बेस का दौरा किया था।

हाई एल्टीट्यूड वार फेयर में भारतीय वायुसेना का तजुर्बा चीनी वायुसेना से कहीं अधिक है। भारत ने कारगिल युद्ध के समय अपनी क्षमता का परीक्षण किया है। वहीं, बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद एवं पाकिस्तान के साथ सैन्य तनाव के अन्य मौकों के दौरान भी भारत की वायुसेना कश्मीर की ऊंची वादियों में गश्त करती रही है। ऐसे में भारतीय वायुसेना का तजुर्बा चीनी सेना से कहीं अधिक है, जिसका लाभ संघर्ष की स्थिति में भारत को होगा।

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