मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण से निपटने के लिए बनाई गई अंतरसरकारी संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने पिछले सप्ताह आयोजित अक्टूबर 2021 के पूर्ण सत्र में मॉरीशस को अपनी ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया है। यह कदम मॉरीशस सरकार द्वारा तमाम नियामक नीतियों के बाद आया है। यह भारत के लिए बड़ी खबर है क्योंकि मॉरीशस एक टैक्स हेवन देश है और वहां से भारत में निवेश होता है।
मॉरीशस को FATF ने जनवरी 2020 में ग्रे लिस्ट (Jurisdictions under Increased Monitoring) में शामिल किया था। टास्क फोर्स ने पाया था कि एंटी मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकियों को धन मुहैया कराने के खिलाफ लड़ाई में मॉरीशस के न्याय अधिकार क्षेत्र में कुछ गंभीर कमियां थी, जिसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। ये कमियां खास तौर पर डेजिगनेटेड नॉन फाइनेंशियल बिजनेस एंड प्रोफेशन (DNFBPs) और नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन (NPO) सेक्टर में थीं। इसी को देखते हुए मॉरीशस को एक एक्शन प्लान दिया गया था जिसमें रिस्क बेस्ड सुपरविजन, कंपनियों की मालिकाना हक की लगातार जानकारी साझा करना और जांच एजेंसियों को ऐसे अपराधों की पहचान के लिये ट्रेनिंग देना आदि शामिल थे।
सूत्रों के मुताबिक बीते 20 महीनों में मॉरीशस के द्वारा उठाये गये कदम से मॉरीशस ग्रे लिस्ट से बाहर आया है। लिस्ट से बाहर आने पर रिजर्व बैंक सहित दुनिया भर के प्रमुख वित्तीय संस्थान मॉरीशस के रास्ते निवेश पर प्रतिबंधों में नरमी ला सकते हैं।
भारत के लिए बड़ी खुशखबरी!
मॉरीशस अब FATF की बढ़ी हुई निगरानी प्रक्रिया के अधीन नहीं है। कई विशेषज्ञों को लगता है कि यह विकास अप्रत्यक्ष रूप से मॉरीशस से भारत में विदेशी निवेश को प्रभावित करेगा। मॉरीशस से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वित्तीय वर्ष अप्रैल 2020-मार्च 2021 के दौरान गिरावट आई थी, जब मॉरीशस को FATF द्वारा निगरानी के अधीन किया गया था।
मुंबई के एक चार्टर्ड एकाउंटेंट धवल जरीवाला कहते हैं कि इस साल इस हालिया विकास के साथ निवेशकों को मॉरीशस से भारत में निवेश करने की सुविधा दी गई है।
मॉरीशस, जो FDI के सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक रहा है, हाल ही में, सिंगापुर, केमैन आइलैंड आदि जैसे अधिकार क्षेत्र से हार रहा थाl आंशिक रूप से भारत के साथ कर संधि में संशोधन के कारण और इसे FATF ग्रे लिस्ट पर रखे जाने के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई थी। ग्रे लिस्ट में शामिल होने के बाद, मॉरीशस से FDI प्रवाह 2019-20 में 57,785 करोड़ रुपये से गिरकर 2020-21 में 41,661 करोड़ रुपये हो गया था।
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मॉरीशस स्थित वैकल्पिक संपत्ति और कॉर्पोरेट प्रशासन सेवाओं की प्रदाता, सैन मॉरीशस की प्रमुख रुबीना तोरावा का कहना है कि ग्रे लिस्ट में रहने के दौरान झेले गए आर्थिक प्रभाव को देखते हुए मॉरीशस के लिए यह गर्व का क्षण है।
यह कदम भारतीय गैर-बैंकिंग और अन्य वित्तीय सेवा कंपनियों को मॉरीशस में अंतरराष्ट्रीय निवेशकों द्वारा शामिल किए गए धन और वाहनों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त करने में मदद प्रदान करेगा। यह परोक्ष रूप से द्वीप राष्ट्र से भारत में उच्च निवेश का कारण बन सकता है।
यह भी उम्मीद की जा रही है कि अब कस्टोडियन बैंकों द्वारा FPI और FDI के रूप में आने वाले मॉरीशस के वाहनों के ‘फायदेमंद स्वामित्व’ (BO) पर कम जांच होगी। मतलब मिला जुलाकर यह कहा जा सकता है कि विदेशी निवेश जो पहले से ही काफी तेजी से हो रहा था, भारत में उसकी गति अब और अधिक बढ़ जाएगी।