“फर्जी किसानों” की भीड़ के सामने मोदी सरकार ने किया सरेंडर

अराजकतावादियों के आगे असहाय हो गई है मोदी सरकार?

निहंग सिख आंदोलन

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‘भय बिन होय न प्रीत’ श्रीरामचरितमानस के सुंदरकांड की ये पंक्ति दिल्ली की सभी सीमाओं पर बैठे तथाकथित किसानों द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन पर बिल्कुल ही चरितार्थ होती हैं, लेकिन इसके विपरीत सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि ये किसान मोदी सरकार के लिए ही भय की स्थिति ला चुके हैं। 26 जनवरी की जो घटनाएं मोदी सरकार के लिए अंतरराष्ट्रीय किरकिरी का सबब बनीं थी, उसके बाद अपराधियों पर सख्त एक्शन की आवश्यकता थी। लेकिन उस अराजकता पर सख्त कार्रवाई न होने का नतीजा ये है कि अब आंदोलन स्थल सिंघु बॉर्डर पर एक दलित सिख को नृशंसता से मारकर लटका दिया गया। ये काम भी उन्हीं निहंग सिखों का हैं, जिन्होंने 26 जनवरी को सर्वाधिक अराजकता मचाई थी और तलवारें लहरा कर दिल्ली की सड़कों पर डर का माहौल पैदा किया था। निहंग सिखों का मौजूदा कृत्य कहीं न कहीं मोदी सरकार को चुनौती देने के संकेत देता है।

आंदोलन के नाम पर गुंडागर्दी!

दरअसल, शुक्रवार सुबह जब पूरा देश दशहरा के त्योहार पर ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ का जश्न मनाने की तैयारियों में जुटा हुआ था, तो अचानक ही तथाकथित किसानों के आंदोलन स्थल सिंघु बॉर्डर से एक युवक की मौत की खबर आती है। ये मौत कोई साधारण नहीं थी, क्योंकि इस शख्स के शरीर के अंगों को काटा गया था और उसे तड़पा-तड़पा कर मारा गया था, जिसकी वीडियो सोशल मीडिया पर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। सिंघु बॉर्डर पर इस अज्ञात मृतक का शव पुलिस बैरिकेड से बंधा मिला, उसके हाथ कटे हुए थे, जिसे देख वहां दहशत का माहौल पैदा हो गया। आस-पास की भीड़ में से किसी को भी पीड़ित की मदद करते या मदद करने की कोशिश करते नहीं देखा गया, जो कि एक अजीबो-गरीब स्थिति को दर्शाता है।

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खास बात ये है कि किसानों द्वारा चल रहे आंदोलन के लिए जो मंच तैयार किया गया था, मृतक शख्स का शव उस मंच के पास ही लटकता हुआ मिला, अराजक किसान हरियाणा पुलिस को कानूनी कार्रवाई तक नहीं करने दे रहे थे। ये दर्शाता है कि इतने संगीन अपराध होने के बावजूद इन अराजकतावादियों की संवेदनाएं नहीं जागी थी। हरियाणा पुलिस ने इस मुद्दे पर जांच की बात कही है। इस मसले पर पुलिस का बयान भी सामने आया है, पुलिस की ओर से कहा गया, “हमें सुबह करीब 5 बजे घटना की सूचना मिली कि किसानों के विरोध स्थल के मंच के पास एक व्यक्ति मृत पाया गया, जिसके बाद पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची और वहां मौजूद प्रदर्शनकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन किसी ने उन्हें कुछ नहीं बताया। यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि इस अपराध के लिए कौन जिम्मेदार था, जांच  जारी हैं, अज्ञात हमलावरों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गय़ा है।”

अराजकतावादियों के आगे असहाय हो गई है मोदी सरकार?

इस मुद्दे पर पूरे दिन बयानबाजी चलती रही लेकिन नतीजा ‘ढाक के तीन पात’ ही रहा। वहीं, इस मामले में शाम तक जो हुआ, उसने भी सरकार पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। युवक की हत्या करने वाले निहंग सिख ने खुद ही सरेंडर कर दिया है। उसका कहना है कि गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी करने के बाद भागने के कारण उस युवक की हत्या की गई है। मृतक युवक का नाम लखबीर सिंह बताया जा रहा है। निहंग सिख ने आरोप लगाया है कि वो शख्स गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी करने के बाद भाग रहा था और पहचान न बताने पर पहले उसका हाथ काटा गया, फिर मार कर लटका दिया। आंदोलन स्थल पर दर्दनाक मौत और शाम तक आरोपी निहंग सिख का सरेंडर दोनों ने ही मोदी सरकार की छवि को धूमिल किया है, जो ये प्रतिबिंबित कर रही है कि मानों सरकार इन अराजकतावादियों के आगे असहाय हो गई है।

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तथाकथित किसान आंदोलन की विश्वसनीयता तो उसी दिन खत्म हो गई थी, जब 26 जनवरी को लालकिले पर इन किसानों ने अराजकता का तांडव किया था, और  दिल्ली की सड़कों पर निहंग सिखों की नंगी तलवारों ने भय का माहौल फैलाने के प्रयास किए थे। उस दौरान भी एक युवक की मौत हुई थी, जिसमें किसानों ने अपने अपराधों को मोदी सरकार के मत्थे मढ़ने का प्रयास किया था। कुछ उसी तरह अब ये निहंग सिख खुलेआम लोगों को निशाने पर लेकर मौत के घाट उतारने से बाज नहीं आ रहे हैं।

ऐसे में स्वाभाविक प्रश्न यहीं रह जाता है कि जो मोदी सरकार सुरक्षा और शांति के मुद्दे पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाने का तर्क देती है, उसके होते हुए इतने बड़े और नृशंस अपराध देश की राजधानी में कैसे हो रहे हैं? ये कहीं न कहीं इस ओर इशारा करता है कि क्या मोदी सरकार ने इन अराजकतावादी कातिल तथाकथित किसानों के सामने सरेंडर तो नहीं कर दिया है, क्योंकि इसी आंदोलन स्थल सिंघु और गाजीपुर के बॉर्डर से महिलाओं के रेप से लेकर पत्रकारों के साथ अश्लील हरकतों की खबरें सामने आई थी। उस वक्त भी मोदी सरकार चुप थी, और आज भी स्थिति कुछ हद तक वैसी ही है।

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