‘कोई भी फाइल 4 हाथों से ज्यादा नहीं गुजरेगी’, पीएम मोदी ने दिया सरकारी बाबुओं को करारा झटका!

मोदी सरकार के पास है हर मर्ज की दवा!

चैनल ऑफ सबमिशन

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चैनल ऑफ सबमिशन“… यदि सरकारी तंत्र इतना अक्षम है कि समय पर अपील/याचिका दायर करने में भी असमर्थ है। इसके समाधान हेतु ऐसे अक्षम नौकरशाह विधायिका से अनुरोध कर सकते है कि वह सरकारी अधिकारियों को  उनकी घोर अक्षमता के कारण समय सीमा के अंदर मुकदमा दायर करने के लिए समय अवधि का विस्तार करे।  परन्तु, जब तक ऐसा क़ानून बना रहता है तब तक अपील/याचिकाएँ निर्धारित समय सीमा के के अंदर ही दायर की जानी चाहिए।” माननीय न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ द्वारा मध्यप्रदेश राज्य बनाम भेरुलाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह उदघोषित  किया गया था।

न्यायालय ने स्पष्ट रूप से दोहराया है कि सरकारी विभाग यह सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष दायित्व के अधीन हैं कि वे परिश्रम और प्रतिबद्धता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें। विलंब को माफ करना एक अपवाद है और इसका उपयोग सरकारी विभागों के लिए प्रत्याशित लाभ के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।  सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि कानून सभी को एक ही रोशनी में आश्रय देता है और कुछ के लाभ के लिए इसे घुमाया नहीं जाना चाहिए।

ज़रा सोचिए, जब सरकारी तंत्र इतना अक्षम है कि वो कानूनी पेंच में फंसे परियोजनाओं के निवारण हेतु समय सीमा के अंदर याचिका तक दायर करने में असमर्थ है, तो परियोजनाओं के प्रगति में विलम्ब का अंदाज़ा आप स्वयं लगा सकते है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बारंबार विभिन्न मंचों और माध्यमों से परियोजनाओं में होने वाली देरी के कारणों पर विस्तारपूर्वक चर्चा की और मुकदमेबाजी, लाल फीताशाही, प्रशासनिक जटिलता आदि पर चिंता भी जाहिर की। परन्तु, मोदी सरकार ने अब इस परेशानी का भी उपाय ढूंढ़ लिया है।

मोदी सरकार के पास है हर मर्ज की दवा

दरअसल, 6 साल तक सरकार में रहने के बाद अब नरेंद्र मोदी सरकार नौकरशाही के जरिए बड़े सुधार पर जोर देने वाली है। अगले महीने से केंद्र सरकार की कोई भी फाइल फैसले से पहले चार हाथ, अर्थात चार विभाग, कार्यालय या चरणों से अधिक प्रक्रियाओं से नहीं गुजरेगी। मंत्रालय भी अब एक-दूसरे को ई-फाइल जमा कर सकेंगे।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने मीडिया को बताया कि यह विचार निर्णय लेने में तेजी लाने और सरकारी कार्यालयों के कार्य-केंद्रित और व्यवसाय-उन्मुख बनाने के लिए एक सार्थक प्रयास है। यह व्यवस्था को सरल, सुगम और सक्षम बनाएगा। सरकार की नीयत साफ है ये हम सभी जानते हैं। विकास की परियोजनाएं और ब्लूप्रिंट भी कारगर है, बस समस्या है तो इनके कार्यान्वयन में। इसी को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया गया है।

वरिष्ठ सरकारी अधिकारी  के मुताबिक कुल 58 मंत्रालयों और विभागों ने फाइलों को चार स्तरों पर लाने के लिए एक “चैनल ऑफ सबमिशन” की समीक्षा की है और बाकी मंत्रालय भी उस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। अगले महीने तक उनके द्वारा ऐसा करने की उम्मीद है।

इससे पहले मोदी सरकार द्वारा 2015 में नीतिगत निर्णयों में गति लाने के लिए “चैनल ऑफ सबमिशन” को कम करने हेतु अभियान शुरू करने से पहले सरकारी फाइलें 6-7 या 10-12 स्तरों से गुजरती थी। जिसके कारण परियोजनाओं को अंतिम स्वरुप देने में कई साल लग जाते थे। जिसे देखते हुए अब सरकार ने इस महीने ई-ऑफिस 7.0 संस्करण शुरू किया है, जो पहली बार फाइलों के अंतर-मंत्रालय हस्तांतरण की अनुमति देता है। सभी मंत्रालय अब अपने प्रस्ताव ऑनलाइन जमा कर सकते हैं। उदाहरणार्थ  सिर्फ वित्त मंत्रालय को अब तक मंत्रालयों के अंतर-मंत्रालयी कार्य हेतु ई-ऑफिस की सुविधा थी। परन्तु,, अब सभी 84 मंत्रालयों और विभाग नवंबर से ई-ऑफिस 7.0 संस्करण में परिवर्तित हो सकते हैं। 32,000 से अधिक ई-फाइलें अब प्रतिदिन बनाई जा रही हैं और भारत में वर्तमान में अब लगभग 25 लाख ई-फाइलें हैं।

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2015 में शुरु हुआ था अभ्यास

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा कि अब “चैनल ऑफ सबमिशन” के लिए सिर्फ 4 प्रकार के सचिव स्तर के अधिकारी चिन्हित किए गए है। इनके पदानुक्रम है- सचिव, अतिरिक्त सचिव या संयुक्त सचिव, निदेशक या उप सचिव और अवर सचिव। विचार यह है कि एक श्रेणी के किसी अधिकारी द्वारा उसी श्रेणी के किसी अन्य अधिकारी को फाइल जमा करने की आवश्यकता नहीं है। सभी मंत्रालय इस पद्धति को उचित संशोधनों के साथ अपनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वे संयुक्त सचिवों और अतिरिक्त सचिवों और निदेशक, उप सचिव और अवर सचिव के बीच फाइल जमा करने की आवश्यकता को समाप्त कर सकें।

इसमें उचित स्तरों पर शक्तियों का प्रत्यायोजन भी शामिल है। यह भी प्रस्ताव है कि नियमित मामलों का निपटारा सिर्फ एक स्तर पर किया जाए। एक अधिकारी ने कहा कि यह अभ्यास 2015 में शुरू हुआ था और सभी मंत्रालयों को बोर्ड में लाने में इतना समय लगा। उन्होंने कहा, “अधिक लोगों को बोर्ड पर लाने के लिए फ़ाइल को ऊपर की ओर धकेलने की प्रवृत्ति हमेशा नौकरशाही में रही है। यह निर्णय लेने में देरी करता है ”।

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निष्कर्ष

आमतौर पर जटिलता सर्वदा विकृतियों को जन्म देती है और सरलता, सुगमता का मार्ग प्रशस्त करती है। समस्त सरकारी परियोजनाओं में लाल फीताशाही से सृजित होने वाली जटिलता इनके पीछे के उद्देश्यों को ध्वस्त कर देती है। सरकार जुमलेबाज घोषित हो जाती है और जनता स्वयं को छला हुआ महसूस करती है। लोकतंत्र की यही विडंबना है कि अत्यधिक सलाह-मशविरा भी असल उद्देश्यों को विलुप्त कर देती है। इससे भ्रष्टाचार, अराजकता और निरंकुशता का जन्म होता है, परियोजना और लागत राशि में वृद्धि होती है। व्यवस्था कलुषित होती है और भारत लाचार होकर देखता रहता है। परंतु, मोदी सरकार ने हमारे प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त इन सभी विषयों को अपने इस विधायी आदेश से समाप्त करने का निर्णय लिया है। सरकार का यह सार्थक प्रयास सराहनीय और प्रशंसनीय है। आशातीत परिणाम अपेक्षित है।

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