राजस्थान पुलिस द्वारा किसानों की ‘बर्बर’ पिटाई को मेनस्ट्रीम मीडिया ने केवल ‘मामूली’ बताया

लखीमपुर खीरी में हुए दर्दनाक हादसे के बाद देश भर की मीडिया ने योगी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था!

राजस्थान लाठीचार्ज

मीडिया को चौथे स्तंभ बनाने के रूप में पेश करने वाली मीडिया संस्थान सबसे अधिक पक्षपाती हैं। इसका प्रमाण क्या है? प्रमाण यह है कि हर खबर जिसको पढ़ा या लिखा जाता है, वह शब्दों का खेल है। जब दो विभिन्न समुदाय के लोग लड़े और एक खबर यह बने कि ‘किशोर सिंह ने जलालुद्दीन को मारा’ तथा दूसरी खबर यह बने कि “दो पक्षों में हुई मारपीट में एक व्यक्ति की मौत”, तो आपको समझ लेना चाहिए कि इसमें मात्र खबर नहीं है, बल्कि इसके पीछे संस्था और लेखक के भी विचार शामिल है। हो सकता है कि दूसरी खबर में जलालुद्दीन ने किशोर सिंह को मारा हो। इस पक्षपाती रवैये से मीडिया की स्वीकारिता हमेशा से सवालों के कठघरे में रही है। हाल ही में मुख्यधारा की मीडिया द्वारा जैसे राजस्थान में किसानों के आंदोलन पर हुए लाठीचार्ज को जैसे दरकिनार किया गया है, वह मीडिया के सिद्धांतों पर फिर से प्रश्नचिन्ह लगाता है।

ANI को छोड़कर किसी भी मीडिया ने इस लाठीचार्ज का प्रसारण नहीं किया है। यहां से मालूम चलता है कि किस प्रकार के मानसिकता से किसानों को मारा गया है। ANI ने बताया, “धान खरीदी शुरू करने की मांग को लेकर राजस्थान के हनुमानगढ़ में जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय पर धरना दे रहे किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया।”

मात्र दो मीडिया संस्थानों ने इस खबर को जगह दिया है और इन दोनों मीडिया संस्थानों ने भी पुलिस के इस बर्बरतापूर्ण कार्यवाही को ‘हल्के’ ताकत का प्रयोग बताया है। दोनों मीडिया समूह के हेडलाइन को पढ़कर आप अंदाजा लगा सकते हैं। न्यूज 18 ने अपने खबर में लिखा, “Rajasthan: Police Use Mild Force Against Protesting Farmers in Hanumangarh” यानी कि “राजस्थान: हनुमानगढ़ में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने हल्के ताकत का इस्तेमाल किया।” वहीं द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अपने खबर में लिखा, “Rajasthan: Police use mild force against protesting farmers in Hanumangarh”, एकदम पहले खबर की तरह इस खबर की भी हेडलाइन है। ANI द्वारा पेश किए वीडियो और इन मीडिया संस्थानों द्वारा पेश किए गए खबर में “हल्के ताकत” के प्रयोग को समझ पाना मुश्किल है क्योंकि दोनों खबर देखने से विरोधाभासी लगती हैं। खैर, इस न्यूज को छोटा दिखाकर और उत्तर प्रदेश के खबर को मानव संकट दिखाकर मीडिया अपने “निरपेक्षता” का प्रमाण देख रही है, जिसके गवाह हम सब व्यक्ति बन रहे हैं।

और पढ़े: सरकार की नई “Coal Block Surrendering” नीति उर्जा क्षेत्र की कंपनियों को खुश कर देगी

लखीमपुर खीरी में हुए दर्दनाक हादसे के बाद देश भर की मीडिया ने योगी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। खुद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि, शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों को भाजपा नेता के काफिले ने मार डाला और फिर विपक्षी नेताओं को पीड़ितों के परिवारों से मिलने से रोक दिया गया। गहलोत ने यह भी कहा कि भाजपा सरकार का अमानवीय चेहरा सामने आ गया है। उन्होंने कहा कि किसानों की मांगों को नजरअंदाज करना, किसान आंदोलन को रोकना, उनका दमन करना और फिर किसी विपक्षी दल को उनके साथ खड़ा नहीं होने देना अलोकतांत्रिक है। इस खबर को मुख्यधारा की मीडिया द्वारा बेचा गया लेकिन राजस्थान के हनुमानगढ़ में किसान आंदोलनों को खत्म करने के लिए जिस बर्बरतापूर्ण तरीके से लाठीचार्ज किया गया है, उसे मीडिया द्वारा एकदम से दरकिनार कर दिया गया है।

Exit mobile version