भारत का संविधान हमें अनुच्छेद-26 के तहत अपने धर्म को मानने एवं उसका प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है। भारतीय संविधान के अंतर्गत स्वैच्छिक धर्म-परिवर्तन की अनुमति है परंतु धर्मांतरण प्रतिबंधित है। धर्मांतरण को लेकर राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर कानून बनाए हैं लेकिन मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा गरीब हिंदुओं के धर्मांतरण का मामला काफी लंबे समय से सामने आ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण निषेध कानून की मांग लगातार उठ रही है। पहले हिंदू संगठनों द्वारा इसकी मांग की गई थी और अब सिख समुदाय को भी धर्मांतरण का डर सताने लगा है। पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (SGPC) द्वारा धर्मांतरण को रोकने हेतु अभियान चलाया जा रहा है।
पंजाब के गांव-गांव तक पहुंचेंगे सिख उपदेशक
धर्मांतरण को रोकने और लोगों को जागरुक करने के लिए गुरुद्वारा प्रबंधक समिति द्वारा “घर-घर अंदर धर्मशाला” अर्थात हर घर के अंदर एक तीर्थ है नामक अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान के अंतर्गत उपदेशकों के 150 दल को पंजाब के अलग-अलग गांवों में सिख धर्म जागरण हेतु भेजा जाएगा। प्रत्येक दल में 7 सदस्य होंगे, जिनमें उपदेशक, ढाड़ी और कविसर अर्थात लोकगायक शामिल हैं। प्रत्येक दल हर गांव में 7 दिनों का प्रवास करेंगे, इस दौरान उपदेशक धर्म सभा का आयोजन कर उपदेश देंगे और लोक गायक अपने गायन शैली से लोगों को सिख धर्म इसके इतिहास,परंपराओं, संस्कृति, गुरु ग्रंथ साहिब आदि को लेकर जागृति फैलाएंगे। इससे व्यापक स्तर पर बच्चों और युवाओं को जोड़ा जाएगा। अप्रैल 2021 में अकाल तख्त द्वारा आयोजित धर्म सम्मेलन में धर्मांतरण पर चिंता व्यक्त की गई थी और अब इसको रोकने हेतु अभियान चलाने पर सहमति बनी है।
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पंजाब में लगातार कम हो रही है सिखों की संख्या
गौरतलब है कि धर्मांतरण की घटनाएं पंजाब में व्यापक पैमाने पर चल रही है। हाल के दिनों में इस मामले ने काफी तूल पकड़ा था। राज्य के दलित सिख मुख्यमंत्री चन्नी के भी ईसाई होने की चर्चाएं शुरु हो गई थी। 2001 की जनगणना के मुताबिक पंजाब में सिखों की आबादी 59.9 फीसदी थी, जबकि ईसाई 1.2 फीसदी थे। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य में सिखों की जनसंख्या में अप्रत्याशित गिरावट देखी गई तो वही ईसाइयों की जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ोत्तरी।
2011 की जनसंख्या के अनुसार पंजाब में सिखों की आबादी घटकर 57 फीसदी हो गई, जबकि ईसाइयों की संख्या बढ़कर 1.26 फीसदी हो गई थी। 2021 की जनगणना होनी बाकी है, लेकिन सिखों की संख्या में गिरावट और भी तेज होने की उम्मीद है। ऐसे में अब सिख समुदाय को भी धर्मांतरण को लेकर चिंता सताने लगी है। जिसका नतीजा साफ दिख रहा है कि लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से भी ईसाइयों द्वारा छलपूर्वक गरीब, दलित और पिछड़े सिखों के धर्मांतरण को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की जाती रही है। कुछ मामलों में तो इस संगठन ने उनके घर वापसी का अभियान भी चलाया है।
धर्मांतरण के मुद्दे पर सिख नेता ने उड़ाया था हिंदुओं का माखौल
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जब धर्मांतरण निषेध कानून की मांग उठी तब शिरोमणि अकाली दल के नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने हिंदुओं का माखौल उड़ाया था। उन्होंने कहा था कि “वह धर्म तो बड़ा ही कमजोर होगा, जिसे अपना अस्तित्व बचाने हेतु धर्मांतरण निषेध कानून की आवश्यकता पड़ रही है।“ अब इतने वृहद स्तर पर ऐसे मामलों को देखते हुए आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सिरसा की यह सोच कितनी बचकानी थी।
दूसरी ओर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन समिति ने भी काफी लंबे समय तक धर्मांतरण के मुद्दे पर चुप्पी साध ली थी। तब सिख समुदाय से आने वाले बीजेपी प्रवक्ता आरपी सिंह ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की आलोचना करते हुए निशाने पर लिया था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को हिंदू राष्ट्र के लिए कोसने वाली यह समिति ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा किए जा रहे धर्मांतरण अभियान को लेकर चुप है, जो कि घृणित और निंदनीय है।
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हालांकि, अब गुरुद्वारा समिति की ओर से धर्मांतरण के विरोध में लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इसके लिए विदेशी आर्थिक सहायता की मदद से चल रहे ईसाई धर्मांतरण अभियान को जिम्मेदार ठहराया है। वहीं, पंजाब क्षेत्र के बिशप इमैन्युअल मसीह ने ईसाइयों पर धर्मांतरण के लगे आरोपों को निराधार बताया है। उन्होंने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि पंजाब में ईसाई बहुत गरीब है। वह धर्मांतरण हेतु किसी को पैसे और सुविधा देने में बिल्कुल असमर्थ हैं। अतः इस तरीके का कोई भी आरोप तथ्यहीन है।
धर्मांतरण निषेध कानून की मांग
बताते चले कि धर्म परिवर्तन स्वैच्छिक और संविधान प्रदत्त है जबकि धर्मांतरण धर्म में व्याप्त विकृति को दर्शाता है और यह साम-दाम-भेद-दंड-छल और बल के आधार पर कराया जाता है। यह समाज, राष्ट्र और संविधान तीनों के लिए घातक है। यह समस्या जितनी बड़ी हिंदू समुदाय के लिए है उतनी ही विकट सिख समुदाय के लिए भी है। कहावत है- “जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई”। देर सवेर ही सही परंतु सिख समुदाय भी अब हिंदू समुदाय की भांति धर्मांतरण संबंधी पीड़ाओं से अवगत हुआ है और इसके विरोध में अभियान की शुरुआत कर दी है। उम्मीद जताई जा रही है कि अब राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण निषेध हेतु राष्ट्रव्यापी कानून की मांग जोर-शोर से उठाई जाएगी। केंद्र सरकार को भी धर्मांतरण जैसे गंभीर मसले पर ध्यान देना चाहिए और इसके रोकथाम के लिए सख्त से सख्त कदम उठाना चाहिए।
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