एक मजेदार कहावत है कि ‘भारत के दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों में एक ड्राईवर जितना हॉर्न बजाता है उतना तो यूरोप में कोई ड्राइवर साल भर में भी नहीं बजाता।‘ ये बात कितनी सच है ये शायद आपको बताने की जरूरत नहीं होगी। इसकी पहली सबसे बड़ी वजह हमारी मानसिकता है, क्योंकि हमें तो बचपन से बताया जाता है कि रोड पर सुरक्षित चलना है तो हॉर्न बजाना जरुरी है। इसकी दूसरी वजह देश की सड़कों पर गाड़ियों की भरमार और ट्रैफिक की हालत बताई जा सकती है। भारत में ट्रैफिक इतना ज्यादा होता है कि बिना हॉर्न के काम नहीं चल पाता। इससे इतर देश में लोग बिना मतलब के भी हॉर्न बजाते दिख जाते हैं।
उदाहरण के तौर पर हम ट्रक ड्राइवर्स को देख सकते हैं, उनकी गाड़ी का हॉर्न इतना तगड़ा होता है कि 100-200 मीटर की दूरी तक लोगों का दिमाग हिल जाए। हॉर्न का मसला सिर्फ ट्रक ड्राइवर्स तक ही सीमित नहीं है, यह समस्या हमारे देश में वाहन चलाने वाले लगभग सभी लोगों के साथ है। यह एक तरह से हमारे दिमाग पर भी काफी गहरा असर करता है। अब केंद्र सरकार वाहनों के हॉर्न को लेकर बड़ा फैसला लेने वाली है। चौंकिए मत, देश में Horn न बजाने का प्रस्ताव पास नहीं किया जा रहा है लेकिन केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी गाड़ियों में लगे हॉर्न और सायरन की टून को बदलने की बात सोच रहे हैं।
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हॉर्न में अब भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की ध्वनियों का होगा प्रयोग
नितिन गडकरी द्वारा हाल ही में दिए गए बयानों से पता चलता है कि केंद्र सरकार एक नया कानून पारित करने की तैयारी कर रही है जिसके तहत वाहनों के हॉर्न को भारतीय संगीत से बदल दिया जाएगा। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सोमवार को एक राजमार्ग उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए भारतीय संगीत को वाहन हॉर्न के रूप में पेश करने और हॉर्न से पारंपरिक ध्वनियों को छोड़ने की अपनी योजना के बारे में बताया। सरकार के इस योजना में एंबुलेंस और पुलिस के वाहन भी शामिल हैं।
केंद्रीय मंत्री के अनुसार वाहनों के हॉर्न को अधिक मधुर धुन मिल सकती है ताकि यात्रियों पर इसका सुखद प्रभाव पड़े। गड़करी, 1910 में बर्मिंघम में ओलिवर लुकास द्वारा विकसित किए गए मानक वाहनों के इलेक्ट्रिक हॉर्न को ‘भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों’ की कोमल ध्वनियों से बदलने की कोशिशों में लगे हैं। ‘भारतीय-ध्वनि वाली आवाज़’ का मतलब है वायलिन, माउथ ऑर्गन और यहां तक कि देसी-कोप्टेड यूरोप-आविष्कृत हारमोनियम। यह आने वाले समय में हार्न के मौजूदा टून की जगह ले सकती हैं।
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गाड़ियों की संख्या में हुई है बेतहाशा वृद्धि
बताते चले कि पिछले दो दशकों के दौरान देश में गाड़ियों की तदाद करीब 212 फीसदी बढ़ी है जबकि सड़कों की संख्या में मात्र 17 फीसदी की वृद्धि हुई है। जाहिर सी बात है कि सड़क पर गाड़ियों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही चली गई और गाड़ियों की संख्या के साथ-साथ लोगों के Horn बजाने की प्रवृति से देश कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इस लापरवाही का खामियाजा आम लोगों को सिर दर्द, चिड़चिड़ापन, काम में मन नहीं लगना, अनिद्रा व उच्च रक्त चाप जैसी समस्याओं के रूप में भुगतना पड़ता है। सरकार के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक हॉर्न से लोगों के दिमाग पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है लेकिन इसके बदलाव के बाद लोग बढ़िया और सुचारू रूप से सड़कों पर यात्रा कर सकेंगे, क्योंकि मधुर भारतीय ध्वनियों को Horn की जगह इस्तेमाल किया जाएगा और इससे ध्वनि प्रदूषण में भी कमी आएगी।