सुब्रमण्यम स्वामी, मेनका और वरुण गांधी की हरकतों पर बीजेपी ने लिया संज्ञान, दिखाई उनकी औकात

बीजेपी ने बागियों के कतरे पर!

Subramanian Swamy, Varun and Maneka

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कुछ ऐसे राजनेता हैं जो मीडिया का अटेंशन पाने के लिए कुछ भी बयान देते रहते हैं, और इस मामले में ये लोग इतना आगे निकल जाते हैं कि कई बार अपनी ही पार्टी को कटघरे में खड़ा कर देते हैं। भाजपा में भी कई राजनेताओं के साथ स्थिति कुछ ऐसी ही हैं, जिन्हें भाजपा ने लंबे समय तक झेला है। ऐसे नेताओं को सबक सिखाने के लिए भाजपा ने अब तीन बड़े नेताओं को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया है, जिनमें दिग्गज नेता सुब्रमण्यम स्वामी से लेकर मेनका गांधी और पीलीभीत से लोकसभा सांसद वरुण गांधी का नाम भी हैं। ये ऐसे नेता हैं जिनका बगावत का इतिहास रहा है, जिसके कारण अब इन्हें इनकी असल जगह दिखाई गई है।

पार्टी ने लिया बड़ा फैसला

भाजपा को लेकर कहा जाता है कि ये एक ऐसी पार्टी है, जहां बगावत करने वालों की भी सुनवाई होती है। हम सभी ने देखा है कि कैसे शत्रुघ्न सिन्हा से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू के बगावती बयानों के बावजूद पार्टी ने उन्हें तवज्जो दे रखी थी लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने स्वंय पार्टी छोड़ी दी। इसके विपरीत अब भाजपा ने पार्टी में बने रहने के बावजूद बगावत करने वाले नेताओं के खिलाफ एक्शन लिया है। ख़ास बात ये है कि इन नेताओं में मोदी सरकार की कैबिनेट की पूर्व मंत्री मेनका गांधी के साथ ही राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और पीलीभीत से लोकसभा सांसद वरुण गांधी का नाम भी है। भाजपा आलाकमान ने इन तीनों नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी  से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

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मेनका गांधी के अनेकों विवाद

मेनका गांधी को भाजपा में शामिल करने का मुख्य उद्देश्य गांधी परिवार की काट ढूंढना था, इसके लिए भाजपा ने प्रयास भी किए, किन्तु एक सहज बात ये है कि मेनका कभी भी भाजपा के लिए कुछ सकारात्मक नहीं कर पाई। सुल्तानपुर से सांसद मेनका गांधी के विवादित बयान हमेशा ही उनके लिए मुसीबत का सबब बने रहे हैं। मुस्लिमों पर उनके द्वारा की गई टिप्पणियां उनके साथ-साथ पार्टी के लिए भी नई मुसीबत लाई। यहीं कारण था कि मोदी कैबिनेट से उन्हें बाहर किया गया। मेनका को पार्टी में साइडलाइन करने की एक बड़ी वजह ये भी थी कि उन्होंने अपने बेटे वरुण गांधी को मंत्री पद दिए जाने और यूपी में उन्हें विशेष महत्व दिलाने के लिए प्रयास किए, जिसके कारण अब वह भाजपा में नजरअंदाज की जा रही हैं।

वरुण गांधी के कतरे  पर

अपनी मां की तरह ही वरुण गांधी का राजनीतिक करियर भी विवादित रहा है। उन्होंने अनेकों बार ऐसे बयान दिए जिसमें एक धर्म विशेष को लेकर उनकी नफरत दिखाई दी, जिसके चलते वरुण गांधी को जेल तक जाना पड़ा था। वहीं, इन कांडों से न केवल वरुण गांधी की छवि पर दाग लगे, अपितु भाजपा को भी राष्ट्रीय स्तर पर शर्मसार होना पड़ा। हाल ही में करनाल में हुए किसान आंदोलन के अराजकतावादियों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले एसडीएम के विरुद्ध वरुण गांधी ने सर्वाधिक मुखरता से आवाज उठाई थी, जो कि पार्टी लाइन के खिलाफ था। इसी तरह लखीमपुर खीरी कांड में भी वरुण के बयान पार्टी लाइन के विपरीत थे। इन सारे बयानों का नतीजा है कि अब वरुण गांधी को पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

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सुब्रमण्यम स्वामी को भी झटका

वित्त मंत्रालय के खिलाफ अगर विपक्ष से भी अधिक किसी नेता ने आवाज उठाई है, तो वो यकीनन सुब्रमण्यम स्वामी ही हैं। भाजपा के दिवंगत नेता अरुण जेटली के खिलाफ अगर किसी ने सर्वाधिक तीखे बयान दिए हैं, तो वो सुब्रमण्यम स्वामी ही हैं। देश की वर्तमान अर्थव्यवस्था को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठाने वालों में सुब्रमण्यम स्वामी सबसे आगे हैं, जिसके कारण ये तक कहा गया कि कांग्रेस से ज्यादा आलोचना तो स्वामी ही कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर पहले ही विपक्ष मोदी सरकार पर आक्रामक था, ऐसे में स्वामी की आवाज को विपक्ष का साथ मिलना ही उनके लिए पार्टी में झटका साबित हुआ है।

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से अचानक बाहर होने के बाद ये कहा जा सकता है कि सुब्रमण्यम स्वामी, वरुण गांधी और मेनका का पार्टी में होना या न होना एक समान ही है, क्योंकि इनके बगावती रुख के कारण पार्टी ने इनको किनारे करने के संकेत दे दिए हैं। इस बात की चर्चा भी तेज हो गई है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा इनका टिकट भी काट सकती है।

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