एयर इंडिया सरकारी व्यापारी संस्थाओं में से है जिन्होंने पिछले कई बरसों से लगातार हो रहे नुकसान के बाद भी अपना व्यापार जारी रखा। एयर इंडिया पर कुल 60,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। एयर इंडिया को सरकार ने 2020 में किसी प्राइवेट कंपनी को बेचने का निर्णय किया था। इसके लिए स्पाइसजेट और टाटा संस ने बोली लगाई थी और अब खबर सामने आ रही है कि एयर इंडिया के सारे अधिकार टाटा संस द्वारा खरीद लिए गए हैं, हालांकि, इसकी पुष्टी सरकार द्वारा अभी होनी बाकी है। यदि इन खबरों में सच्चाई है तो टाटा संस द्वारा एयर इंडिया का अधिग्रहण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वास्तविक रुप से एयर इंडिया की स्थापना टाटा समूह के संस्थापक JRD टाटा ने किया था, उस समय इस एयरलाइन का नाम टाटा एयरलाइन था।
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मीडिया रिपोर्टस के अनुसार ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि एयर इंडिया की बिक्री प्रक्रिया में टाटा समूह ने सबसे ज्यादा कीमत लगाकर बिड जीत ली है। हालांकि, सरकार का कहना है कि जब अंतिम फैसला होगा तो जानकारी दी जाएगी।
एयर इंडिया की स्थापना 1932 में जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा द्वारा की गई थी। शुरू में यह एयरलाइंस ब्रिटिश सरकार के डाक के वितरण का कार्य करती थी। 1938 में पहली बार इसने पैसेंजर फ्लाइट के रूप में उड़ान भरी थीं। 1962 में इस एयरलाइन कंपनी का नेहरू सरकार द्वारा राष्ट्रीयकरण कर लिया गया था। हालांकि, इसके संस्थापक JRD टाटा इसके पक्ष में नहीं थे।
इसके राष्ट्रीयकरण के बाद इसका नाम एयर इंडिया रखा गया। एयर इंडिया के निजीकरण का फैसला पहली बार अटल सरकार के दौरान हुआ था किंतु अटल बिहारी वाजपेयी सरकार अपने फैसले को लागू नहीं करवा सकी थी। हालांकि, वाजपेयी सरकार के समय एयर इंडिया लाभ की स्थिति में थी। सन 2001-02 से 2006-07 तक एयर इंडिया लाभ में रही, किंतु 2007-08 में इसपर 2200 करोड़ रुपए का कर्ज हो गया। 2008-09 में एयर इंडिया का कर्ज 5000 करोड़ हो गया, जबकि अगले साल तक एयर इंडिया पर कर्ज 12000 करोड़ रुपए हो गया था।
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उस समय लिए गये दो फैसलों के कारण भी एयर इंडिया को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। सबसे पहले यूपीए सरकार ने एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय का निर्णय किया, इससे एयर इंडिया को नुकसान हुआ। इसके बाद एयर इंडिया द्वारा 28 नए प्लेन खरीदे जाने के प्रस्ताव को बढ़ाकर अनावश्यक ही 68 नए प्लेन खरीदे गए। इससे भी एयर इंडिया को भारी आर्थिक बोझ झेलना पड़ा। यूपीए सरकार के दौरान 70,000 करोड़ रुपए की कीमत से 111 प्लेन खरीदने का समझौता हुआ था, इस संदर्भ में पहले ही सीबीआई जांच चल रही है।
हालांकि, एयर इंडिया इस मामले में समृद्ध है कि उसके पास बड़ी संख्या में प्लेन मौजूद हैं। एयर इंडिया के पास 140 प्लेन मौजूद हैं जिनमें 43 एयरबस A320s और 15 बोइंग 777s हैं, जो बिना रुके यूरोप और अमेरिका तक की यात्रा कर सकते हैं। एयर इंडिया के पास डेढ़ सौ मिलियन डॉलर की कीमत का रिपेयर और मेंटेनेंस यूनिट नागपुर में है, इन सब का टाटा एयरलाइंस को बहुत लाभ होगा।
बता दें कि टाटा कंपनी पहले से ही एयरलाइंस के व्यापार में एक बड़ा नाम है। टाटा के पास एयर एशिया के 84 फ़ीसदी शेयर हैं। बचे 16 फ़ीसदी शेयर फिलहाल मलेशिया एयरलाइंस के पास है, किंतु टाटा इस 16 फ़ीसदी शेयर को खरीदने के लिए बातचीत कर रही है। इसके अतिरिक्त टाटा के पास VISTARA एयरलाइंस में 51% फ़ीसदी की हिस्सेदारी है। शेष 49% की हिस्सेदारी सिंगापुर एयरलाइंस के पास है।
कंपनी के उच्च अधिकारियों का कहना है कि वह अपने सभी एयरलाइन कंपनियों का एक कंपनी के भीतर विलय करने वाले हैं। एयर इंडिया, एयर एशिया और Vistara यदि एक ही कंपनी के अंतर्गत कार्य करेंगे तो उनके पास एयरलाइंस मार्केट कि 26% हिस्सेदारी हो जाएगी।
टाटा अपनी पूर्ववर्ती दो कंपनियों के जरिए विमान उड्डयन व्यापार में पहले ही एक बड़ा नाम बना चुकी है। अब एयर इंडिया के संसाधनों के उपयोग से टाटा भारत को हमारी पहली विश्व स्तरीय एयरलाइन कंपनी देने वाली है।
टाटा और एयर इंडिया दोनों एक मामले में बिल्कुल एक समान हैं, कि दोनों ने ही अपने उपभोक्ताओं की सुविधाओं का पर्याप्त ध्यान रखा है। कस्टमर सर्विस के मामले में टाटा समूह का होटल ताज एक अद्वितीय उदाहरण है। ऐसे में यह मानने का पर्याप्त कारण है कि टाटा समूह उपभोक्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतरेगा।
हालांकि, टाटा समूह द्वारा एयर इंडिया जैसी नुकसान झेल रही कंपनी का अधिग्रहण एक जोखिम भरा कदम है, किंतु टाटा समूह के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उनका यह व्यापार भी सफल ही होगा।