इंदिरा से लेकर वरुण तक, ‘गांधी उपनाम’ अभिशाप का पर्याय बन गया है

‘गांधी’ उपनाम

व्यक्ति जिस चीज पर कभी-कभी सबसे ज्यादा गर्व करता है, वही उसके लिए कैसे सबसे बड़ा अभिशाप बन सकती है, ये अगर किसी को देखना है, तो कृपया गांधी परिवार को देखिए।  कांग्रेस ‘गांधी’ उपनाम पर गर्व करती है, लेकिन ये ‘गांधी’ उपनाम ही कांग्रेस के लिए सिरदर्द बन गया है। मोहनदास करमचंद गांधी से लेकर इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल, प्रियंका सभी की राजनीतिक परिपक्वता बर्बादी का सबब है! ‘गांधी’ उपनाम का अभिशाप ही है, जो कि मतिभ्रष्ट कर देता है। इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है, कि जो भाजपा अपने ऐतिहासिक स्वर्णिम राजनीतिक काल में है, उसी भाजपा में मेनका से लेकर वरुण गांधी तक राजनीतिक बर्बादी की ओर निकल चुके हैं, एवं अपनी ही सरकार को कोसने लगे हैं। इसका कारण मात्र एक यही है कि इन दोनों के नाम के साथ भी ‘गांधी’ उपनाम का अभिशाप जुड़ा हुआ है।

वरुण, मेनका की मतिभ्रष्ट

हाल ही में भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी का ऐलान किया था, जो कि राजनीतिक रूप से भाजपा नेता मेनका और वरुण गांधी के लिए झटका था, क्योंकि पार्टी ने इन दोनों को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इतने बड़े स्तर की कार्रवाई के बावजूद वरुण गांधी के रुख में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। वरुण गांधी ने अपने लोकसभा क्षेत्र पीलीभीत में बिन मौसम आई बरसात से उग्र हुई बाढ़ के संबंध में अपनी ही भाजपा सरकार पर हमला बोल दिया है। उन्होंने कहा है कि यदि सरकार बाढ़ में लोगों की मदद नहीं कर सकती है, तो यूपी में सरकार का होना ही बेकार है।

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योगी सरकार पर भड़के वरुण

अपनी ही सरकार पर हमला बोलते हुए वरुण गांधी ने ट्वीट कर योगी सरकार को गैर जिम्मेदार बताया है। उन्होंने लिखा, तराई का ज्यादातर इलाका बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित है। बाढ़ से प्रभावित लोगों को सूखा राशन उपलब्ध कराया है, ताकि इस विभीषिका के खत्म होने तक कोई भी परिवार भूखा ना रहे। यह दुखद है कि जब आम आदमी को प्रशासनिक तंत्र की सबसे ज्यादा जरूरत होती है; तभी उसे उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है। जब सब कुछ अपने आप ही करना है तो फिर सरकार का क्या मतलब है।

ऐसा नहीं है कि वरुण गांधी पहली बार अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। इससे पहले वो लखीमपुर में हुए कथित किसानों की हत्या के मामले में भी मोदी और योगी सरकार के विरुद्ध बयान दे चुके हैं। हरियाणा के करनाल में किसानों के आंदोलन के दौरान जिस एसडीएम ने किसानों की अक्ल ठिकाने लगाई थी, उस एसडीएम के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग सबसे पहले वरुण गांधी ने की थी। इसी तरह आए दिन वरुण गांधी की मां और पूर्व केन्द्रीय मंत्री भी अजीबो-गरीब बयान देती रहती है। इसका नतीजा ये हुआ कि इन दोनों को ही भाजपा ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

गांधी उपनाम की हनक ?

भाजपा द्वारा वरुण और मेनका पर हुई कार्रवाई के बाद ये माना जा रहा था कि उनके व्यवहार में कुछ विशेष बदलाव देखने को मिलेगा। इसके विपरीत वरुण गांधी अभी भी अपनी सरकार के विरुद्ध हमलावर हैं। संभवतः उन्हें ये लगता है कि पार्टी उनके खिलाफ कोई खास कार्रवाई नहीं करेगी, क्योंकि उनके नाम के पीछे ‘गांधी’ लगा है। इसके विपरीत इन दोनों नेताओं के वर्तमान रवैए के चलते यदि कल को भाजपा इनकी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निरस्त कर दे, तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।  ऐसे में इन दोनों नेताओं के मन में ‘गांधी’ उपनाम को लेकर जो घमंड है, उसकी भी धज्जियां उड़ जाएंगी।

अभिशाप है गांधी उपनाम

इसे अचंभा ही कहेंगे कि जिस पार्टी का स्वर्णिम काल चल रहा हो, उसी के दो बड़े नेता अपनी हनक के चक्कर में बेवजह पार्टी की आलोचना कर रहे हैं। ऐसे में संभव है कि इनके इस बगावती तेवर के कारण इन्हें पार्टी से निकाला जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो ये इनका नहीं अपितु इनके साथ लगे गांधी उपनाम का अभिशाप होगा। ऐसा नहीं है कि ये आज से है, बल्कि इसकी शुरुआत मोहनदास करमचंद गांधी से ही हुई थी। भले ही उनकी देश के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष भूमिका रही हो, किन्तु एक सहज सत्य ये भी है कि उनकी राजनीतिक समझ शून्य थी। इसी का नतीजा था कि सरदार पटेल जैसे राष्ट्र प्रेमी के विपरीत गांधी ने जवाहर लाल नेहरू को देश का पहला पीएम चुना था।

मोहनदास करमचंद गांधी ने ही अपना ‘गांधी’ उपनाम पारसी Feroze Ghandy को दिया था, जो बाद में गांधी हो गया था। गांधी की तरह ही इंदिरा ने भी राजनीतिक रुप से आलोचनात्मक फैसले लिए। पंजाब में पहले राजनीतिक लाभ के लिए भिंडरावाले जैसे खालिस्तानी शख्स को शह दी, और जब वो इंदिरा पर ही वार करने लगा, तो इंदिरा ने स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानियों से बचाने के लिए Operation Blue Star को अंजाम दिया था। नतीजा ये हुआ कि इस Operation  से गुस्साए दो सिख युवकों ने इंदिरा की हत्या कर दी थी।

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इंदिरा के बाद बेटे राजीव गांधी को लेकर कहा जाता है कि वो देश के सबसे खराब पीएम थे, जो कि हिन्दुओं और मुस्लिमों का एक साथ तुष्टीकरण करने के साथ ही अनेकों घोटालों में मुख्य आरोपी थे। अपने मित्रों को निजी रिश्तों के कारण कैबिनेट में जगह देना ही दिखाता है, कि उनकी राजनीतिक परिपक्वता कितने निचले स्तर की थी। इस गांधी उपनाम का ही शाप था कि वो भी साजिश के शिकार हुए थे।

राजीव के बाद उनकी पत्नी सोनिया भले ही गांधी उपनाम के चक्कर में चुनाव जीतीं हो, किन्तु उनकी राजनीतिक समझ कम होने के चलते ही वो दस सालों के यूपीए कार्यकाल में प्रधानमंत्री का पद न पा सकीं। गांधी उपनाम का यह अभिशाप ही है, कि राहुल गांधी राष्ट्रीय मजाक का प्रतीक बन गए हैं, और उनके इस मखौल को विस्तार देने का काम राहुल की बहन प्रियंका गांधी वाड्रा कर रही हैं।

स्पष्ट है कि गांधी उपनाम कभी-भी किसी के लिए सकारात्मक नहीं रहा है। अब इसी उपनाम का ही नतीजा है कि सत्ता में होने के बावजूद वरुण गांधी और मेनका गांधी की मतिभ्रष्ट हो गई है, और वो अपनी ही पार्टी के विरुद्ध बयान दे रहे हैं। संभवतः इसका नतीजा यही होगा कि भाजपा दोनों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देगी।

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