किसी समय द हिन्दू देश के सबसे लोकप्रिय और भरोसेमंद समाचार पत्रों में से एक के रूप में गिना जाता था। परंतु अब इस समाचार पत्र की वास्तविकता सबके समक्ष उजागर हो चुकी है। ये समाचार पत्र वास्तव में एक कम्युनिस्ट मुखपत्र से अधिक कुछ नहीं है, जिसे भारत एवं भारतीय संस्कृति को अपमानित करने में विशेष आनंद मिलता है। परंतु हर कोई गाँधीवादी नहीं है, कि ‘द हिन्दू’ के निरंतर अपमान के बाद भी शिष्टाचार के नाम पर मौन व्रात धारण करे। असम में हाल ही में हुई हिंसा को लेकर एक संगठन ने ‘द हिन्दू’ पर एक आपत्तिजनक लेख को लेकर FIR दर्ज करवाई है।
विवाद का विषय –
हाल ही में असम में प्रबजन विरोधी मंच ने द हिन्दू के संपादक सुरेश नमबाथ, विश्लेषक अंगशुमन चौधुरी और सिंगापुर में बसे लेखक सूरज गोगोई के विरुद्ध गुवाहाटी के लतासिल पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। परंतु किसलिए? असल में ‘द हिन्दू’ पर सूरज गोगोई ने ‘The Scorching Rays of Assamese Nationalism’ के नाम से एक आपत्तिजनक लेख लिखा था, जिसमें उसने न केवल हाल ही में असम के Darrang जिले में हुई हिंसा के लिए स्थानीय असम निवासियों को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास, बल्कि उनकी निष्ठा और उनकी देशभक्ति पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया। ये तो कुछ भी नहीं था, ‘द हिन्दू’ पर अपने घटिया लेख में सूरज ने यहाँ तक दावा किया कि असम के विषैले राष्ट्रवाद के कारण ही सरकार की दमनकारी नीतियों को ‘बल मिल रहा है।’
द हिन्दू का विवादों से परिपूर्ण इतिहास
परंतु यदि आपको लगता है कि यह कोई पहली ऐसी घटना है, तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। द हिन्दू का इतिहास ऐसी घटनाओं से परिपूर्ण है। दुर्भाग्यवश इस घटिया समाचार पत्र को कई शैक्षणिक संस्थानों में यूपीएससी एवं अन्य आवश्यक परीक्षाओं के लिए ‘रिकमेंड’ किया जाता है। जबकि वास्तव में ये समाचार पत्र ‘हिन्दूओं’ तो दूर की बात, ‘भारत’ के हित में भी नहीं बात करता है। जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की वर्षगांठ को प्रमुखता से अपने प्रमुख पन्नों पर प्राथमिकता दे, उससे आप निष्पक्षता की कैसी आशा कर सकते हैं?
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इसके अलावा द हिन्दू अनेक विषयों पर अपने भ्रामक और घटिया कवरेज के लिए विवादों के घेरे में रहा है। पीएम मोदी को नीचा दिखाने के चक्कर में ये लोग भारत को सार्वजनिक तौर पर लज्जित करने से भी बाज नहीं आते, चाहे वो राफेल के मुद्दे पर हो, या फिर कोविड के प्रबंधन के मुद्दे पर। लेकिन इस बार तो द हिन्दू ने निर्लज्जता की सभी सीमाएँ लांघते हुए बिना किसी ठोस प्रमाण के असम हिंसा के लिए पूरा का पूरा दोष स्थानीय असम के हिंदुओं पर ही डाल दिया, ताकि अवैध बांग्लादेशियों को बुरा न लगे।
वर्तमान कदम सही दिशा में सही कदम
जिस प्रकार से असम के निवासियों ने इन नीच, निकृष्ट वामपंथियों को आड़े हाथों लेते हुए कोर्ट तक घसीटने का निर्णय लिया है, वो अपने आप में एक सराहनीय कदम है। ये एक संदेश है कि अब सनातनी अपनी संस्कृति का अपमान कदापि नहीं सहेंगे और उसके लिए वे किसी भी सीमा को लांघने को तैयार है, चाहे वो लोगों को प्रिय लगे या नहीं। ‘चिल्लर पार्टी’ नामक फिल्म में एक महत्वपूर्ण संवाद था, ‘हमें हर उस विषय के लिए सशक्त होना चाहिए जो सही है, चाहे वो लोगों को अच्छा न लगे।”