उत्तराखंड लैंड जिहाद : हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। काफी बड़ी संख्या में देश औऱ दुनिया के तमाम लोग हर साल यहां पहुंचते हैं। इसकी हसीन वादियां हर किसी को अपना दीवाना बना लेती हैं। पहाड़ियों, प्राकृतिक संसाधनों और संपदाओं की भूमि उत्तराखंड ऐतिहासिक स्थलों और कई महत्वपूर्ण जगहों के कारण भी प्रसिद्ध है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, ऋषिकेश, हरिद्वार समेत हिंदुओं के कई बड़े धर्मस्थल उत्तराखंड में ही हैं, इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। पिछले कुछ वर्षों से काफी बड़ी संख्या में हिंदुओं के साथ-साथ अन्य धर्मों के लोग भी उत्तराखंड में अपना ठिकाना बना रहे हैं। यहां अन्य समुदाय के लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन काफी तेजी से बढ़ती जा रही है।
उत्तराखंड में हिंदुओं की आबादी करीब 84 फीसदी है। ऐसे में अगर बड़ी संख्या में अन्य समुदाय के लोग उस राज्य में जाकर बस रहे हैं तो इसका सीधा असर वहां की सोशल डेमोग्राफी और कल्चर पर पड़ रहा है। इस वजह से कई लोग अपने क्षेत्रों से पलायन करने को मजबूर हो गए हैं, इससे सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने की संभावना भी काफी ज्यादा है। जिसे लेकर स्थानीय लोगों द्वारा चिंता जताई जा रही है। बीजेपी विधायक अजेंद्र अजय काफी पहले से ही इस मामले को लेकर मुखर रहे हैं। उन्होंने राज्य में हिन्दू धर्म से इतर अन्य धर्मों की बढ़ती आबादी पर चिंता जताई हैं। उन्होंने हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में ‘लैंड जिहाद’ के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की थी। अब उत्तराखंड सरकार ने इस मामले के निपटने के लिए अपनी तैयारियां तेज कर दी है।
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एक्शन में उत्तराखंड सरकार
अजेंद्र अजय के दावों पर काम करते हुए उत्तराखंड सरकार ने जांच में पाया कि यह फौरी तौर पर बोली जाने वाली बात नहीं है। इसे “लैंड जिहाद” करार देते हुए राज्य सरकार ने एक आधिकारिक संचार में कहा, यह संज्ञान में आया है कि “राज्य के कुछ क्षेत्रों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि के कारण जनसांख्यिकीय बदलाव आया है, जिसके दुष्परिणाम दिखने लगे है और यह कुछ समुदायों के लोगों के प्रवास के कारण जटिल होता जा रहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार एक आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है, “कुछ जगहों पर सांप्रदायिक माहौल खराब होने की संभावना है। सरकार ने स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए डीजीपी, सभी जिलाधिकारियों और एसएसपी को समस्या के समाधान के लिए एहतियाती कदम उठाने का निर्देश दिया है। सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों में शांति समितियों के गठन का आह्वान किया है। पुलिस और जिला अधिकारियों को ऐसे क्षेत्रों को चिह्नित करने और असामाजिक तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है। उन्हें अन्य राज्यों से आए आपराधिक इतिहास वाले लोगों की जिलेवार सूची तैयार करने के लिए भी कहा गया है।”
बीजेपी विधायक ने की थी समिति के गठन की मांग
दरअसल, अजेंद्र अजय ने ‘लैंड जिहाद‘ के मुद्दे के साथ-साथ पिछले महीने सीएम पुष्कर सिंह धामी के साथ अपनी बैठक में उत्तराखंड में बढ़ते पलायन और उसी धार्मिक समुदाय की आबादी में वृद्धि का मामला भी उठाया था। पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक आपदा की संभावनाओं के कारण ज्यादा आबादी होना चिंता का विषय है। सीएम को सौंपे पत्र में अजेंद्र अजय ने ‘लैंड जिहाद‘ मुद्दे के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने और नए कानून का मसौदा तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन की मांग की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री से “आध्यात्मिक और सुरक्षा कारणों” के कारण इस विषय पर ठोस निर्णय लेने का भी अनुरोध किया था। जिसके बाद अब राज्य सरकार इसके समाधान के लिए पूरी तैयारी में दिख रही है। यह मुद्दा उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा का अहम हथियार साबित हो सकता है।
क्या है लैंड जिहाद?
वैसे लैंड जिहाद मुख्यधारा के लिए नया शब्द है लेकिन भाजपा आसाम और उत्तराखंड में इसका प्रयोग करती रही है और इसे एक बड़ी चुनौती के रूप में बताया है। भाजपा के घोषणापत्र में लैंड जिहाद का जिक्र था और भाजपा ने इस जिहाद से असम को मुक्त करने का वादा किया था। असम की बीजेपी सरकार इस मसले पर काम भी कर रही है। अब आप सोच रहे होंगे ये लैंड जिहाद क्या है?
असम बीजेपी के उपाध्यक्ष स्वप्नील बरुआ ने दि प्रिंट को इसका स्पष्ट मतलब बताया है। उनके मुताबिक, “लैंड जिहाद लोगों को अपनी जमीन बेचने के लिए मजबूर करने का एक तरीका है- यह कहीं भी होता है जहां मुसलमान होते हैं। असम के सोरभोग, धुबरी और सीमावर्ती अप्रवासी-बहुल क्षेत्रों से ऐसे मामले सामने आए हैं।“
असम बीजेपी उपाध्यक्ष ने कहा, “वे कभी-कभी मवेशियों को चुराकर और मवेशियों के कटे हुए सिर को आंगनों में फेंककर, भूमि को निर्जन बना देते हैं, भूमि के मालिक को घेर लेते हैं। अंतत: मालिक को जमीन बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। एक तीसरा पक्ष खेल में आता है और जमीन की खरीद के लिए मालिक को एक प्रस्ताव दिया जाता है और फिर एक दलाल शामिल हो जाता है जिसके बाद जमीन पर कब्जा कर लिया जाता है।”
उत्तरखण्ड देवभूमि है। हिंदुओं की आस्था का निर्विवाद केंद्र है। हरिद्वार और ऋषिकेश जैसे तीर्थ है तो कुम्भ जैसा आयोजन। यहां जनसंख्या वृद्धि कर किसी प्रकार के जनसांख्यिकी परिवर्तन का प्रयास निश्चित ही निंदनीय है। इससे सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना बिगड़ेगी। अब सरकार ने इस मसले पर ध्यान देना शुरु कर दिया है और भविष्य की इस बड़ी चुनौती से निपटने में लग गई है।
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