रबर उत्पादन के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध वियतनाम की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही है। वियतनाम का सबसे प्रमुख उद्योग ‘रबर उद्योग’ से दुनिया का भरोसा उठ रहा है। इसकी प्रमुख वजह रबर उद्योग में पारदर्शिता की कमी बताई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि पारदर्शिता की कमी से वियतनाम के रबर उद्योग का कमजोर होने का खतरा है क्योंकि वैश्विक खरीददार तेजी से ऐसी सामग्री की मांग कर रहे हैं जो कड़े नैतिक और कानूनी मानकों को पूरा करती हो। जिसमें वियतनाम असफल होता दिख रहा है। वहीं, कंबोडिया से आयातित असंसोधित रबर को अपने उत्पादित रबर में मिलाकर बेचने के कारण भी वियतनाम पर से अन्य देशों का भरोसा उठता दिख रहा है। भारत इस मौके का काफी अच्छा फायदा उठा सकता है, क्योंकि देश पहले से ही रबर उत्पादन के क्षेत्र में दुनिया में 5वें स्थान पर है। इस आर्टिकल में विस्तार से समझेंगे कि वियतनाम से दुनिया के अन्य देशों के उठते भरोसे को भारत कैसे लपक सकता है और फायदा कमा सकता है?
और पढ़े- कोयला संकट तो है बहाना, भारत है असली निशाना
रबर और वियतनाम
वियतनाम रबर की खेती की जमीन के लिहाज से दुनिया में पांचवें स्थान पर है और उत्पादन के लिहाज से तीसरे स्थान पर। वियतनाम ने साल 2020 में लगभग 926,000 हेक्टेयर भूमि पर लगभग 1.22 मिलियन टन रबर का उत्पादन किया है। जिससे वियतनाम में प्राकृतिक रबर सामग्री (रबर ब्लॉक, केंद्रित लेटेक्स, टायर, चिकित्सा आपूर्ति और जूते के तलवे) का बाजार 2015 में 2.9 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2020 में लगभग 5.5 बिलियन डॉलर हो गया। लेकिन स्थिति तब खराब हुई जब वियतनाम द्वारा रबर में मिलावट की खबरें सामने आई।
फ़ॉरेस्ट ट्रेंड्स के एक वरिष्ठ नीति विश्लेषक फुक जुआन टू के मुताबिक वियतनाम के अधिकांश रबर अच्छे नहीं है। इसके अलावा कंबोडिया और लाओस से असंसाधित रबर का आयात कर उसे घरेलू स्तर पर उत्पादित रबर में मिलाया जाता है। वियतनाम के इस कारनामें की खबर वैश्विक बाजार में फैल गई है, जिसके बाद से अब वियतनाम के उल्टे दिन शुरु हो गए हैं।
इसके अलावा वियतनाम के छोटे पड़ोसी देशों में रबर के बागानों के प्रबंधन पर कई तरह के सवाल सामने आए हैं। आयात-निर्यात के बेमेल आंकड़ों को लेकर वियतनाम इस समय कठघरे में खड़ा है। वियतनामी सीमा शुल्क डेटा से पता चलता है कि 2021 की पहली छमाही में, कंबोडिया से लगभग 392,000 टन असंसाधित रबर देश में आयात किया गया था। यह 2020 में आयात की कुल मात्रा का 1.5 गुना और 2019 की तुलना में लगभग 50 गुना बड़ा है। हालांकि, कंबोडियाई सीमा शुल्क डेटा ने इस वर्ष की पहली छमाही में देश के कुल रबर निर्यात को केवल 102,800 टन पर रखा है। अब या तो वियतनाम झूठ बोल रहा है या कम्बोडिया। दोनों राष्ट्रों के उत्पादकों के घालमेल से स्थिति बहुत जटिल हो गई है।
नाइकी और एडिडास जैसी प्रमुख कंपनियां कानूनी और पर्यावरणीय मानदंडों को पूरा करने के लिए फॉरेस्ट स्टीवर्डशिप काउंसिल (FSC) द्वारा प्रमाणित उत्पादकों से रबर की सोर्सिंग को प्राथमिकता देती हैं और वियतनाम के पास कोई FSC-प्रमाणित आपूर्तिकर्ता नहीं है। जिसके कारण अब ये कंपनियां भी वियतनाम से रबर लेने में कतरा रही हैं।
और पढ़े- कैसे रिलायंस ने अक्षय ऊर्जा पर चीन के एकछत्र राज के सपनों पर फेरा पानी ?
भारत उठा सकता है लाभ
मौजूदा समय में भारत रबर उत्पादों के निर्यात से सालाना 25,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है। भारत दुनिया में प्राकृतिक रबर का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और प्राकृतिक रबर का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता। केरल की कुल कृषिभूमि के 20 फीसदी से अधिक क्षेत्रफल में प्राकृतिक रबर की खेती होती है और देश का 77 प्रतिशत से अधिक उत्पादन यहीं होता है। इसके बाद कर्नाटक, तमिलनाडु और पूर्वोत्तर राज्यों असम, त्रिपुरा और मेघालय का नंबर आता है। भारत ने 2017 में 713,000 टन प्राकृतिक रबर का उत्पादन किया है। एक उत्पादक के रूप में भारत की वैश्विक प्राकृतिक रबर बाजार में 5.3% हिस्सेदारी है।
प्राकृतिक रबर की खपत में तेजी से वृद्धि के साथ-साथ टायर उद्योग भी तेजी से बढ़ रहा है। भारत में कुल प्राकृतिक रबर उपयोग का लगभग 79 फीसदी टायर उद्योग द्वारा किया जाता है। टायर उद्योग में तेजी से विकास ने प्राकृतिक रबर के उपयोग को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण भारत मुख्य रूप से मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया और वियतनाम से शुद्ध आयातक बन गया।
और पढ़े- PETA चाहता है दूल्हे घोड़ी पर चढ़ना बंद कर दे
रबर बोर्ड ने हाल ही में विदेशी बाजारों में उत्पादों की उचित स्थिति और आवश्यकता को रेखांकित किया है। रबर बोर्ड के कार्यकारी निदेशक केएन राघवन ने कहा है कि “विशेष रूप से MSME क्षेत्र में नए निर्माताओं को अपने उत्पादों को लगातार बढ़िया करने की आवश्यकता है, क्योंकि उन्हें लगभग निरंतर आधार पर सुधार, नवाचार और वृद्धिशील मूल्य वर्धन करने की आवश्यकता है।“
एक वर्चुअल व्यापार मेले का उद्घाटन करते हुए राघवन ने कहा कि “इस तरह के आयोजन रबर और रबर उत्पादों के विपणन के बदलाव का अग्रदूत बनेंगे। रबर मूल्य श्रृंखला के सभी हितधारक रबर उद्योग के विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं और वर्चुअल व्यापार मेला एक त्वरित मंच प्रदान करता है। यह क्रेता-विक्रेता बैठक, रबर और रबर उत्पादों को अपनी गुणवत्ता प्रदर्शित करने के लिए भी एक आदर्श स्थान होगा।“
रबर उत्पादन को बढ़ावा देने की जरुरत
बताते चले कि भारत मौजूदा समय में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रबर उत्पादक देश हैं। केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक में रबर का उत्पादन सबसे ज्यादा है। अब देश के पूर्वोतर राज्यों में भी इसका काफी तेजी से उत्पादन हो रहा है। असम और त्रिपुरा इस मामले में काफी आगे हैं। त्रिपुरा देश का दूसरा सबसे बड़ा रबड़ उत्पादक राज्य है। 2017-18 में राज्य में 6.94 लाख टन रबड़ का उत्पादन हुआ था, जो देश के कुल उत्पादन का करीब 10 फीसदी है। पूर्वोतर राज्यों में जमीन की कीमत कम है और रबर उत्पादन में लागत कम है, इसके अलावा राज्य सरकार भी रबर उत्पादन को बढ़ावा दे रही है।
रबड़ बोर्ड के डेटा के मुताबिक, रबड़ उत्पादन में सभी नार्थ ईस्ट राज्यों की कुल मिलाकर 23 फीसदी हिस्सेदारी है। यह पिछले 4 सालों में 5 फीसदी बढ़ी है। कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे गैर-पारंपरिक माने जाने वाले राज्यों में भी रबड़ के पेड़ों को लगाया जा रहा है। भौगोलिक स्थिति के अनुरुप भारत के कई ऐसे राज्य हैं जहां रबर का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है और अच्छा लाभ कमाया जा सकता है। ऐसे में अगर केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी इस उत्पादन को बढ़ावा दें, इसे लेकर लोगों को जागरुक करें तो देश काफी जल्द रबर उत्पादन के क्षेत्र में टॉप पर पहुंच सकता है।
और पढ़े- विरोध प्रदर्शन और प्रोपेगेंडा को छोड़िए, नया कृषि कानून भारत में ‘भुखमरी’ की समस्या को खत्म कर देगा