वाघा बॉर्डर पर हर शाम को होने वाले रिट्रीट सेरेमनी को तमाम लोगों ने देखा होगा। 15 मिनट तक चलने वाले इस कार्यक्रम से पूरे वातावरण में जोश भर जाता है। वाघा बॉर्डर पर होने वाली परेड को देखने के लिए देश भर से लोग आते हैं। यहां पर सेना के जवानों की परेड को देखना अपने आप में शानदार अनुभव है। अब ऐसे कार्यक्रम सिर्फ वाघा बॉर्डर तक ही सीमित नहीं रहेंगे। भारत ने शनिवार को गांधी जयंती के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित सुचेतगढ़ गांव के पास चुंगी सीमा चौकी पर वाघा-अटारी शैली में बीएसएफ “रिट्रीट समारोह” की शुरुआत की है। इस मौके पर जम्मू कश्मीर के LG मनोज सिन्हा ने कहा कि वाघा बॉर्डर पर किए जाने वाले समारोह की तर्ज पर यह समारोह सीमा सुरक्षा बल की महान विरासत और वीरता को दर्शाता रहेगा। जानकारी के लिए बता दें कि भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुचेतगढ़ स्थित ऑक्ट्रॉय पोस्ट पर अब हर शनिवार और रविवार को बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी का आयोजित की जायेगी।
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सीमा पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
LG सिन्हा ने कहा, “गांधीजी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के शुभ अवसर पर सीमा सुरक्षा बल ने एक नई शुरुआत की है जो सुचेतगढ़ को वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर रखने के अलावा केंद्र शासित प्रदेश में सीमा पर्यटन को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देना सुनिश्चित करेगा।” उन्होंने कहा कि सुचेतगढ़ के लोगों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा किया गया है। इसके साथ क्षेत्र की पर्यटन क्षमता का भी पूरी तरह से इस्तेमाल किया गया है, इससे क्षेत्र में आर्थिक विकास होगा।
मनोज सिन्हा ने सुरक्षा बलों की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा, “जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, हमें उन सभी शहीदों को याद करना चाहिए जिन्होंने देश की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है।” शनिवार को हुए समारोह में बीएसएफ जवानों ने अपने बेहतरीन कौशल का प्रदर्शन करते हुए दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं। इस मौके पर पर्यटन विभाग ने भी सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किया।
अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में भी होने चाहिए ऐसे कार्यक्रम
यह जम्मू कश्मीर के भीतर होने वाला पहला कार्यक्रम है जो सीमा पर हो रहा है। इससे भारतीय भावना से ओतप्रोत लोगों को घाटी में प्रेरणा और साहस मिलेगी। भारत ने बॉर्डर पर ऐसा करके सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण काम किया है। बॉर्डर पोस्ट पर ऐसे कार्यक्रमों से चौकसी बढ़ जाएगी और बॉर्डर में घुसने वाले लोगों के भीतर डर बना रहेगा। अलगाववादी नेताओं की तमाम कोशिशों पर पहले ही चाबुक चलाया जा चुका है, ऐसे कार्यक्रमों से उनकी वैचारिक जहर को भी खत्म कर दिया जाएगा। भारत को ऐसी ही कार्यक्रमों का आयोजन लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में भी करना चाहिए।
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