जब ग्रेट ब्रिटेन ही नहीं रहा तो काहे का Commonwealth, भारत ने दिये Commonwealth से निकलने के संकेत

"इंग्लैंड नहीं सुधरा तो जल्द ही कॉमनवेल्थ खेल भी इतिहास बन जाएगा"

कॉमनवेल्थ गेम्स

Source- Google

प्राचीन भारत में एक बहुत प्रचलित कथन है ‘शठे शाठ्यं समाचरेत:’, अर्थात जो आपसे जैसा व्यवहार करे, आप उसका उत्तर वैसे ही दें। इस कला को बीच में भारतीयों ने भुला दिया था लेकिन कई ऐसी वर्तमान घटनाएं सामने आई हैं, जिनके उत्तर में भारत ने स्पष्ट किया है कि उसे अब भी इस कथन का स्मरण है और समय आने पर अपने आत्मसम्मान को चुनौती देने वाले शत्रु को मुंहतोड़ जवाब भी दे सकता है। इसी प्रकरण में भारत ने अब अपने निर्णयों से घमंडी ग्रेट ब्रिटेन को ये संकेत दे दिया है कि जब बात आत्मसम्मान की हो, तो कॉमनवेल्थ जैसे अप्रासंगिक संगठनों से भी जुड़कर कोई लाभ नहीं। भारत जल्द ही इस संगठन को टाटा, बांय-बांय बोल सकता है।

हॉकी टीम ने दिखाया Commonwealth खेलों को ठेंगा

वो कैसे? असल में इस व्यापक बदलाव की ओर संकेत देते हुए हॉकी इंडिया ने अपनी दोनों ही टीम [पुरुष और महिला] को अगले वर्ष ग्रेट ब्रिटेन के बर्मिंघम में होने वाले कॉमनवेल्थ खेलों में भेजने से मना कर दिया है। हॉकी इंडिया के वर्तमान अध्यक्ष ज्ञानन्द्रो निनगोमबम ने भारतीय ओलंपिक महासंघ के वर्तमान अध्यक्ष एवं FIH के पूर्व अध्यक्ष नरिंदर बत्रा को पत्र लिखकर यह स्पष्ट किया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा कि “इस समय हॉकी इंडिया के लिए कॉमनवेल्थ गेम्स से ज्यादा महत्वपूर्ण एशियाई खेल हैं, जहां स्वर्ण पदक जीतने पर भारतीय हॉकी टीम को बिना किसी समस्या के पेरिस ओलंपिक 2024 का डायरेक्ट टिकट मिल जाएगा और ऐसे में वे कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे गैरजरूरी कार्यक्रम में भेजकर अपनी टीम का लय नहीं बिगाड़ना चाहते।” हाल ही में भारतीय हॉकी टीम ने टोक्यो ओलंपिक में हॉकी के दोनों प्रारूपों के सेमीफाइनल में प्रवेश कर इतिहास रचा। पुरुष टीम ने जर्मनी को 5-4 से पराजित कर 41 वर्ष के पदक के सूखे को भी खत्म किया और कांस्य पदक भी प्राप्त किया।

 

परंतु, बात यहीं पर खत्म नहीं होती। हॉकी इंडिया के अध्यक्ष अपने पत्र में आगे लिखते हैं, “यहां पर इस बात का उल्लेख करना अति आवश्यक है कि वर्तमान कोविड-19 की स्थिति को देखते हुए इंग्लैंड ने कुछ अधिनियमों को लागू किया। जिसके तहत आपने टीकाकरण कराया हो या नहीं, आपको जबरदस्ती 10 दिन तक क्वारंटीन में रहना होगा। ऐसे भेदभावपूर्ण अधिनियम तो टोक्यो ओलंपिक में कदापि लागू नहीं हुए थे और ये हमारे खिलाड़ियों के मानसिक प्रदर्शन पर भी असर डालेगा। हमें लगता है कि ये पाबंदी भारत के विरुद्ध पक्षपाती रूप से लागू हुई, जो बहुत ही दुखदायी हैं”।

और पढ़ें : “भारतीयों को अनुमति नहीं है”, ब्रिटेन के नए वैक्सीन रूल ब्रिटिश राज की याद दिलाते हैं

क्यों है कॉमनवेल्थ संगठन?

कहीं न कहीं अपने इसी पत्र से हॉकी इंडिया ने कॉमनवेल्थ संगठन की अप्रासंगिकता पर भी प्रहार किया है। कॉमनवेल्थ संगठन 54 देशों का समूह है, जिसका अध्यक्ष ग्रेट ब्रिटेन है और जिसमें अधिकतर कई ऐसे देश शामिल हैं, जिन पर पूर्व में ब्रिटिश साम्राज्य ने कब्जा जमाकर रखा था। क्या यह एक प्रकार से इस बात का प्रमाण नहीं है कि हम अपनी परतंत्रता पर गर्व महसूस करते हैं और उसका उत्सव मनाते हैं?

इसके अलावा अगर कॉमनवेल्थ खेलों के स्तर पर भी ध्यान दें, तो यहां खेलकर हमारे खिलाड़ी का कोई मान-सम्मान नहीं बढ़ता। यहां मेडल जीतना, गली क्रिकेट में ट्राय बॉल पर छक्का मारने के बराबर है क्योंकि इससे तगड़ी प्रतिस्पर्धा तो अनेक प्रकार के विश्व चैम्पियनशिप, यहां तक कि एशियाई खेलों में भी देखने को मिलता है। उदाहरण के लिए यहां शूटिंग हो, कुश्ती हो या एथलेटिक्स, यहां पर स्वर्ण पदक जीतने से आपकी योग्यता की पहचान नहीं होती, उससे उलट आपकी क्षमता का ह्रास होता है।

ऐसे में चाहे राजनीति हो या खेल, अब कॉमनवेल्थ अप्रासंगिक हो रहा है। हॉकी के जरिए भारत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि यदि इंग्लैंड अपनी औपनिवेशिक मानसिकता से ऊपर नहीं उठा तो जल्द ही कॉमनवेल्थ खेल भी इतिहास बन जाएगा।

और पढ़े- भारत की ‘जैसे को तैसा’ कार्रवाई के बाद वैक्सीन सर्टिफिकेट पर बदले ब्रिटेन के सुर

Exit mobile version