तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है, जहां कि राजनीति भी समझ से परे है और राजनेताओं की प्रवृत्ति भी! संभवतः यही कारण की वहां के कई परत-दर- परत नए खुलासे होते रहते हैं। शिक्षा से लेकर विकास के कई प्रोजेक्ट्स पर इस राज्य की राजनीतिक पार्टियाँ केवल अपना उल्लू सीधा करने में लगी रहती हैं। आज जब पूरी दुनिया कोयले की कमी से जूझ रही है, स्वयं भारत में भी कोयले की कमी की खबरें सामने आ रही हैं तो तमिलनाडु का उल्लेख भी आवश्यक हो जाता है। इसके पीछे का कारण तमिलनाडु में रहस्मय तरीके से कोयले का गायब होना है और अब तक उसका पता नहीं लगाया जा सका है।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की नई रिपोर्ट सामने आई है जिसके अनुसार 135 ताप बिजलीघरों में 8 दिनों से भी कम का कोयला भंडार बचा है, जबकि10 बिजलीघरों में कोयले की मात्रा शून्य है। इस रिपोर्ट में कारण मानसून के चलते कोयला आपूर्ति में आई बाधा, भुगतान में गड़बड़ी और बिजली की बढ़ी हुई मांग को बताया गया है परन्तु तमिलनाडु में कोयले की काला बाजारी का उल्लेख भी इस रिपोर्ट में होनी चाहिए थी।
कोयले के गायब होने को लेकर तमिलनाडु की दो बड़ी पार्टियां- डीएमके और अन्नाद्रमुक विधानसभा एक-दूसरे से लड़ रही हैं, आरोप थोप रही हैं परन्तु किसी की तरफ से भी गंभीर कार्रवाई के लिए मांग देखने को नहीं मिल रही। कोयला गायब होने का सिलसिला शायद अभी भी जारी होगा बस मीडिया तक रिपोर्ट नहीं पहुंच पाती परन्तु जो मीडिया में सामने आया है उसपर भी एक नजर डाल लेते हैं।
कहां गायब है कोयला ?
सितंबर में ही राज्य के उर्जा मंत्री सेंथिल बालाजी (V Senthil Balaji) ने एक बड़े खुलासे में बताया था कि तूतीकोरिन थर्मल पावर स्टेशन से 71,857 टन कोयला गायब था। उन्होंने कहा था कि कोयला स्टॉक विसंगति की जांच करने वाली उच्च स्तरीय समिति की अंतिम रिपोर्ट के आधार पर लूट के लिए जिम्मेदार सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की जाएगी। वहीं बिजली मंत्री ने कहा कि ये पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि ये कितने वर्षों से अनियमितता का खेल चल रहा था। है। उत्तरी चेन्नई संयंत्र से बड़ी मात्रा में कोयले के गायब होने की जानकारी मिलने के बाद सरकार ने तूतीकोरिन थर्मल प्लांट में निरीक्षण के आदेश दिए थे।
इससे पहले उर्जा मंत्री ने बताया था कि उत्तरी चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन से 2.38 लाख टन कोयला गायब हो गया है । राज्य के उर्जा मंत्री ने तब अपने बयान में कहा था कि “अगर 5 टन या 10 टन कोयला गायब है, तो यह समझ में आता है। लेकिन 2.38 लाख टन गायब है, हालांकि, यह रिकॉर्ड में है। आगे की जांच की जाएगी, और हम पता लगाएंगे कि यह कैसे गायब हो गया, और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी…।”
तमिलनाडु से गायब होने वाले कोयले से संबंधित मामले को लेकर पिछले काफी समय से सवाल खड़े किए जा रहे थे, कि आखिर 85 करोड़ रुपए की लागत वाला 2.38 लाख टन कोयला कहां गया? अभी इस सवाल का जवाब मिला भी नही था कि तूतीकोरिन थर्मल पावर स्टेशन से भी कोयला गायब होने का मामला सामने आया ।
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तमिलनाडु सरकार पर राज्य में 100 प्रतिशत स्थायी ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition) के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने की बात कर रही लेकिन उस पर कोयले के गायब होने के गंभीर आरोप हैं।
सीएजी की रिपोर्ट क्या कहा?
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, 2014-19 के दौरान थर्मल पावर स्टेशनों पर प्राथमिक ईंधन के रूप में उपयोग किया जाने वाला कोयला, टैंगेडको की कुल उत्पादन लागत का 95.54% -98.41% था। खास बात ये भी हे कि 24 जून, 2021 को विधानसभा में पेश की गई कैग की रिपोर्ट में TANGEDCO के थर्मल पावर स्टेशनों में कोयला प्रबंधन के पहलुओं को दर्शाया गया है और कई खामियों की ओर इशारा किया गया है। इसको लेकर तमिलनाडु सरकार ने कोयले की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े किए हैं, जिसको लेकर सीएजी की रिपोर्ट भी सहमति दर्शाती है।
सीएजी ने अपनी 2021 की रिपोर्ट में ये भी कहा है कि, “कोयले की कमी के समय-समय पर आंकलन और उसकी वसूली के लिए कोई प्रावधान नहीं था। इसके परिणामस्वरूप, पिछले 18 वर्षों (2001-19) के दौरान हुई कोयले की कमी दर्ज नहीं की गई है। इस प्रकार, TANGEDCO कोयले की कमी का आंकलन करने में असमर्थ था।” रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि TANGEDCO ने खदानों में कोयले के वजन के अनुमान और उसे रिकॉर्ड करने के लिए कोई लॉगबुक का दस्तावेजीकरण या निर्माण नहीं किया था।
सीएजी की इस रिपोर्ट में भी तमिलनाडु सरकार के प्रबंधन पर सवाल खड़े किए थे, किन्तु सरकार इस रिपोर्ट तक को मानने से बच रही है। यही कारण है कि राज्य में लक्ष्य के अनुसार थर्मल पावर का उत्पादन नहीं किया जा सका है।
आरोप प्रत्यारोप का खेल
तमिलनाडु के बिजली मंत्री वी. सेंथिलबालाजी राज्य में कोयला गायब होने क मामले में पुरानी एआईएडीएमके सरकार पर आयोग लगाए हैं। उन्होंने कहा था कि पिछली राज्य सरकार ने अंतिम 9 महीनों में बिजली संयंत्रों पर कोई विशेष ध्यान ही नहीं दिया। वहीं तीन वर्षों तक रख रखाव के लिए उपकरण तक नहीं खरीदे गए। उस दौरान ही उन्होंने जांच के आदेश भी दिए थे।
कोयले के गायब होने का संगीन मुद्दे को लेकर विधानसभा में भी सत्ता पक्ष डीएमके और विपक्ष में बैठे एआईएडीएमके एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल कर रहे हैं, और खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। इस मामले में पूर्व बिजली मंत्री और अन्नाद्रमुक नेता पी. थंगमणि ने दावा किया कि कोयले की “कमी” का खुलासा अगस्त 2020 के दौरान किया गया था, जब वह राज्य को कोयले की आपूर्ति बढ़ाने के संबंध में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री से मिलने के लिए नई दिल्ली गए थे। उन्होंने कहा कि जब उन्हें दिखाए गए कोयले के स्टॉक और वास्तविक उपलब्ध कोयले के बीच अंतर के बारे में सूचित किया गया, तो उन्होंने जांच का आदेश दिया और एक समिति बनाई थी। हालांकि, सवाल वहीं आकर रुक जाता है कि इतना कोयला गया कहां ? तमिलनाडु सरकार को कैसे इतनी बड़ी मात्रा में गायब हुए कोयले की भनक तक नहीं लगी? क्या ये राजनीतिक पार्टियाँ ही कोयले की कालाबाजारी के पीछे हैं और एक दूसरे पर आरोप मढ़ मामले से जनता का ध्यान भटकाना चाहती हैं?
ऐसे में केंद्र सरकार को भी इस मामले की गंभीरता को समझते हुए राज्य सरकार से सवाल करने चाहिए क्योंकि आज जहाँ पूरा देश कोयले की भारी कमी से जूझ रहा उस समय में इस राज्य में कोयला गायब हो रहा.