किसी भी चीज़ की नींव मजबूत होनी चाहिए, चाहे वो देश हो, विचार हो या फिर सिद्धांत, अन्यथा उसे ढहते देर नहीं लगती। ढहने की उसकी प्रक्रिया संभावित खतरे के साथ-साथ एक संभावित निर्माण को भी अस्तित्व देती है। चीन के संदर्भ में भी कुछ ऐसा ही है। इस साम्यवादी देश की परिकल्पना और इसके साम्यवादी शासन के विचार, सिद्धांत, औद्योगिक क्रांति और विकास एक कमजोर नींव पर टीके हुए हैं जिनका भरभराकर गिरना आरंभ हो चुका है। चीन अभी Evergrande संकट और पूंजीपतियों के पलायन से उबरा भी नहीं था कि ऊर्जा संकट के कारण उसके इस्पात और रसायन के उद्यमों ने दम तोड़ना शुरू कर दिया है। चीन की यह परिस्थिति भारत के लिए वरदान के समान है। अपने ज्ञान और प्रबोधन से विश्व को प्रकाशित करने वाला “विश्वगुरू भारत” अब अपने श्रम और उद्यम शक्ति के बल से विश्व के रसायन और इस्पात संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति कर “विश्वनिर्माता भारत” बनने का बिगुल फूंक चुका है।
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भारतीय रासायनिक क्षेत्र पर प्रभाव
दरअसल, चीन की दमनकारी नीतियों ने ऊर्जा और तकनीकी क्षेत्र को वृहद रूप से प्रभावित किया है। कोयला उत्पादन पर अनैतिक और सरकारी एकाधिकार ने बहुतेरे उद्योगों की रीढ़ की हड्डी तोड़ दी, जिसमें रसायन क्षेत्र प्रमुख है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन में बिजली की बढ़ती कमी ने कई रासायनिक निर्माताओं सहित कई कारखानों में उत्पादन रोक दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि ऊर्जा संकट चीन में रासायनिक उत्पादन को 25 प्रतिशत तक प्रभावित कर सकता है और बदले में ‘भारतीय विशेष’ रासायनिक निर्माताओं को लाभान्वित कर सकता है।
चीन से कच्चे माल की सोर्सिंग करने वाला भारतीय रसायनिक क्षेत्र पहले से ही रसद की उच्च लागत के कारण मध्यवर्ती/प्रमुख कच्चे माल की उच्च आयात शुल्क से जूझ रहा है। ऐसे में चीन में ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के साथ चीनी कंपनियों के इन कच्चे माल की कुल लागत में वृद्धि होगी, इससे भारतीय निर्माताओं पर दोहरी मार पड़ सकती है। भारत में कार्बनिक रसायनों की कीमतें भी निकट अवधि में बढ़ सकती हैं, जिससे उद्योग में अल्पकालिक मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ सकता है।
इससे इतर चीन का ऊर्जा संकट और चीनी कंपनियों के बंद होने की संभावना या विनिर्माण पर प्रतिबंध भारतीय कंपनियों के लिए फायदेमंद साबित होंगे, क्योंकि उनके उत्पादों की मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में बढ़ने के लिए बाध्य है। इसके अलावा इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च एजेंसी का मानना है कि डाई, पिगमेंट, Pharmaceutical, Agrochemical (एग्रोकेमिकल) और ऐसे अन्य रसायनों के लिए घरेलू एंड-यूज़र उद्योग, उपभोक्ताओं को लागत में समग्र वृद्धि प्रदान करेंगे, जिससे उनकी लाभप्रदता बनी रहेगी। पिछले दो हफ्तों में Gujarat Alkalies and Chemicals Limited, India Glycols Ltd. , Meghmani Finechem Ltd ने इस क्षेत्र में तीव्रता से हाथ आजमाने शुरू कर दिये हैं।
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भारतीय इस्पात क्षेत्र पर प्रभाव
रसायन उद्योग की तरह ही इस्पात उद्योग में भी चीन की दुर्गति हो सकती है। चीन औद्योगिक कार्बन उत्सर्जन को कम करने और हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रयासरत है। इसके लिए चीन ने वर्ष 2021 के प्रथम अर्धवार्षिक में 560 मिलियन टन के कच्चे स्टील के उत्पादन में 10.5% वृद्धि को दर्ज करने के बाद, 2021 के द्वितीय अर्धवार्षिक में अपने स्टील उत्पादन में कटौती करने का मन बना चुका है। चीन के इस्पात उत्पादन में गिरावट और भारत के कच्चे इस्पात (क्रूड स्टील) उत्पादों के आयात से भारतीय इस्पात कंपनियों को कम आयात जोखिम होने और अधिक निर्यात अवसरों के माध्यम से लाभ होना निश्चित है। बिजली की कीमत से संबंधित चीन की ऊर्जा नीति में बदलाव से इस क्षेत्र के भीतर एक महत्वपूर्ण संरचनात्मक बदलाव आया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय और साथ ही घरेलू बाजारों में स्टील की कीमतों को समर्थन मिल सकता है।
इसके अलावा चीन का कम होता निर्यात, पश्चिमी दुनिया के साथ चीन का मौजूदा व्यापारिक तनाव, 2 ट्रिलियन डॉलर इंफ्रास्ट्रक्चर बिल के लिए बाइडन प्रशासन का प्रस्ताव और यूरोपीय संघ द्वारा गुणवत्तापूर्ण स्टील की मांग सामूहिक रूप से भारतीय स्टील निर्माताओं के लिए फायदेमंद साबित होगी। हालांकि, चीनी उत्पादन और उच्च लागत पर अंकुश के कारण स्टील की कुल कीमतें बढ़ेंगी, लेकिन उच्च रसद लागत और कंटेनर की कमी जैसी चुनौतियों के कारण भारतीय उद्यमियों का लाभ सीमित रह सकता है।
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वैश्विक परिप्रेक्ष्य में चीनी संकट के बीच भारत हमेशा संकटमोचक बनकर उभरा है। चीन ने कोरोना दिया, तो भारत ने कोरोना का टीका। चीन ने Evergrande का संकट दिया, तो भारत ने शेयर बाजार को मजबूती। अब चीन अंधकार देने पर आमादा है तो भारत विश्व को ऊर्जा देकर प्रकाशित करेगा। चीन इस परिस्थिति का लाभ उठाकर भले ही रसायन और इस्पात क्षेत्र में अभाव पैदा करने की कोशिश करे, परंतु भारत भी अपने प्रभाव और श्रम पराक्रम के माध्यम से रसायन और इस्पात क्षेत्र में प्रचुरता हेतु युद्धरत है।