आज के डिजिटल युग में युद्ध का क्षितिज असीमित हो चुका है। आज युद्ध सिर्फ बॉर्डर पर ही नहीं लड़ा जाता, बल्कि यह आम जनता के घरों यानी समाज के मूल तक पहुंच चुका है। भारत विरोधी तत्व देश की सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने का हरसंभव प्रयास करते हैं। ऐसे प्रयासों के लिए कई तरह के NGO बनाए जाते हैं, जिससे समाज में उथल-पुथल मचाया जा सके। जिसे देखते हुए देश की आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी भी कई गुना बढ़ चुकी है। इसी तरह की सुरक्षा खतरा पर अब अजीत डोभाल ने सबका ध्यान आकर्षित किया हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कहा है कि युद्ध के नए मोर्चे सिविल सोसाइटी हैं, जिन्हें देश के हितों को चोट पहुंचाने के लिए तोड़ा जा सकता है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि सामाजिक ताने बाने को तोड़ने का काम विदेश से फंडिंग पा रहे कई NGO करते हैं। ऐसे ही NGO कभी मानवाधिकार के नाम पर, तो कभी अल्पसंख्यक उत्थान के नाम पर समाज को अस्थिर करने का काम करते हैं, जिसका उदाहरण हमें CAA विरोधी हिसंक आंदोलन के दौरान देखने को मिला था।
डोभाल ने जताई चिंता
शुक्रवार को हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एसवीपी एनपीए) में IPS probationers के 73वें बैच के पासिंग आउट परेड में डोभाल ने कहा, “युद्ध के नए मोर्चे, जिसे आप चौथी पीढ़ी का युद्ध कहते हैं, वह नागरिक समाज है।” उन्होंने कहा कि युद्ध राजनीतिक या सैन्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक प्रभावी साधन नही रह गया है। उनकी कीमत महंगी है और साथ ही, उनके परिणाम के बारे में अनिश्चितता है।
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डोभाल ने आगे कहा, “यह नागरिक समाज है जिसे किसी राष्ट्र के हितों को चोट पहुंचाने के लिए विकृत, अधीनस्थ, विभाजित, अस्थिर किया जा सकता है। आज के दौर में यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे पूरी तरह से सुरक्षित हैं।”
गौरतलब है कि ऐसे तत्व जो समाज को विभाजित करते हैं या एक विभाजनकारी आइडिया को बढ़ावा देते हैं, वो देश के अंदर ही व्याप्त हैं। उन्हें विदेशी भारत विरोधी तत्वों से फंडिंग मिलती है जिससे वे यहां समाज को विकृत करने का काम आसानी से कर सके। ये काम NGO या जॉर्ज सोरोस की Open Society Foundation जैसे सिविल सोसाइटी के जरिए आसानी से होता है।
पहले भी दिया था इस बात पर जोर
कुछ दिन पहले भी NSA अजीत डोभाल ने पुणे इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सुरक्षा पर पुणे डायलॉग (पीडीएनएस) 2021 में इसी बात पर जोर दिया था और कहा था कि “युद्ध अब अपने आयाम बदल कर क्षेत्रीय सीमाओं से हटकर सिविल सोसाइटी में आ चुका है। आम लोगों की सोच, उनकी धारणा, स्वास्थ्य, कल्याण की भावना और उनकी सरकार के प्रति उनकी धारणा का महत्व बढ़ गया है।”
डोभाल ने कहा कि सूचना क्रांति के युग में झूठे और प्रोपेगेंडा से लोगों की रक्षा करना भी नितांत आवश्यक हो गया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा योजना को इन सभी चुनौतियों और रणनीतियों को अधिकतम अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए ध्यान में रखना चाहिए।
हर्ष मंदर जैसे लोगों के समर्थन से मजबूत हो रही इनकी जड़ें!
लगातार दो मौकों पर NSA द्वारा सिविल सोसाइटी पर चिंता जताना कोई आम बात नहीं है। उन्हें पहले से यह पता है कि कैसे जॉर्ज सोरोस जैसे माफिया आपके फाउंडेशन और फंडिंग का इस्तेमाल किसी भी सिविल सोसाइटी को अस्थिर करने के लिए करते हैं। भारत में भी ऐसे माफिया की जड़ें मजबूत हैं और हर्ष मंदर जैसे लोगो के समर्थन से वह ऐसा करने में सफल भी रहा हैं। CAA के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन के दौरान हमने देखा कि कैसे झूठ के आडंबर पर सामाजिक तानेबाने को जड़ से झकझोरा जा सकता है। दिल्ली दंगों से पहले हर्ष मंदर का भाषण तो वायरल भी हुआ था। अफजल गुरु को बचाने के लिए दया याचिका दायर करने वाले हर्ष मंदर के Deep State Kingpin जॉर्ज सोरोस से गहरे रिश्ते हैं।
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मंदर Open Society Foundation के Human Rights Initiative Advisory Board में भी हैं। यह फ़ाउंडेशन जॉर्ज सोरोस द्वारा संचालित किया जाता है, जिसने भारत की मोदी सरकार जैसी राष्ट्रवादी सरकार के खिलाफ कदम उठाने के लिए 1 बिलियन डॉलर लगाने का ऐलान किया था। शाहीन बाग के दौरान सबसे आगे रहने वाली संस्था Karwana-e-Mohabbat भी हर्ष मंदर का ही NGO है।
जमीनी स्तर पर हमने देखा है कि किस तरह से किसी भी विकास प्रोजेक्ट को रोकने के लिए NGO सामने आते हैं। Sterlite कॉपर फैक्ट्री का बंद होना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। ऐसे न जाने कई एनजीओ हैं, जो विदेशों से फंडिंग पा कर समाज को किसी भी प्रकार से अस्थिर करना चाहते हैं, चाहे वो भारत द्वारा चीन के साथ लगे बॉर्डर पर रोड बनाने को लेकर विरोध प्रदर्शन कर के ही क्यों न करना पड़े।
NSA अजीत डोभाल अच्छी तरह इन threats को समझते हैं और अब उनका इस तरह से सार्वजनिक स्तर पर बोलना समाज को एक संदेश है कि अब जनता को सामाजिक स्तर पर ऐसे threats से सावधान होने की आवश्यकता है, जो देश विरोधी हितों को अंजाम देने के लिए प्रोपेगेंडा का सहारा लेते हैं।