एक वृक्ष की आत्मकथा
देखे मौसम , देखी सदियां मूलों से ही जुड़ा रहा………. सबकों मैंने सांसे बांटी पर मेरी सांसो का मोल कहां था. जया पाण्डे ‘ अन्जानी’ द्वारा रचित यह काव्य रचना वृक्षों की आत्मकथा बताने के लिए काफी है. इस आत्मकथा (Autobiography of a Tree in Hindi) में बताया गया है कि एक वृक्ष जो ईश्वर द्वारा इस धरती को अमूल्य वरदान के रुप में दिया गया है.
जिसने प्रत्येक मौसम और सदियों को देखा है. यहां तक कि पक्षी अपना स्थान बदल सकते है पर वह एक जगह स्थिर रहकर लोगों की जरुरतों को पूरा करता रहा है.जहां मनुष्य सर्दियां नहीं झेल पाता न वर्षा न ही गर्मी वहां वह हर ऋतुओं के प्रकोप की पीड़ा को हंसते हुए लेता हूं.
कवि आगे कहता है कि मनुष्य ने पेड़ काटने में खुब पसीना बहाया है. आज धरती पर घटित हो रही प्रकृतिक आपदा का मुख्य कारण ये मनुष्य हैं वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पेड़ों को निरंतर काटता रहता है. मेरे टुकड़े होते देख दर्द मुझे भी होता है पर एक जगह खड़े होने के अलावा मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं होता.
इस संसार में सभी जीव जंतु के जीवन का आधार मैं ही हूं. पर जिन टेहनियों की छांव ये लोग लेते हैं आज उनके लिए में रोड़ा बन गया हूं.आज सड़के चौंड़ी करने के लिए वह निरंतर पेड़ो की कटाई कर रहा है.इस धरती पर सबसे पहले मेरा ही जन्म हुआ था. मेरा जन्म तो इस जगत के सभी जीवों के जीवन के भरन पोषण के लिए हुआ है. मुझसे नदियां हैं मुझसे ही प्राकृति है.
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Autobiography of a Tree in Hindi
हां मैं वो वृक्ष हूं जिस वृक्ष पर पक्षी अपना तिनका तिनका जोड़ कर घोंसला बना कर अपना एक परिवार बनाते हैं . अपने बच्चों की जिम्मेदारी वो मुझे सौंप कर जाते हैं और जब चिड़िया शाम को अपने घोंसले में दुबारा आती है तो वहां कुछ न पाकर बहुत दुखी होती है और में वहां पर उसकी कोई मदद नहीं कर सकता क्योंकि जिस वृक्ष पर इनकी घोंसला होता है वह पेड़ इंसानो द्वारा काट दिया जाता है.जब में छोटा पौधा था तो आस पास के बड़े पेड़ो को देख कर सोचा करता था कब में बड़ा होकर अपनी बड़ी बड़ी शाखाओं से आसमान छु पाऊंगा,कब में अपना योगदान इन जीवों के लिए दे पाऊंगा.
समय के साथ में बड़ा होता चला गया अब मेरी शाखाएं आसमान को छू रही थी .मेरे टेहनियां हरे पत्तों से ढक गये थे. मैं अन्य पेड़ों की तरह प्राकृति को हरियाली और पक्षियों को रहने के लिए घर और मानव को छाया देने लगा. प्राकृति को ,जीव-जन्तु,को यह सब देता देख में खुशी की अनुभूति कर रहा था.हर सुबह सुरज की पहली किरण,मन्द मन्द ठंड़ी हवा और पक्षीयों की मधूर आवाज से मैं झूम उठता.जहां सभी जीव जंतु हम पेड़ों के नीचे मस्ती करते हैं, अपने बच्चों को कला सीखाते हैं ये सब देख कर मुझे बहुत खुशी होती थी.
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Autobiography of a Tree in Hindi
आज मानव जाति की जनसंख्या बढने के साथ साथ उसकी जरुरते भी बड़ गई है . वह पहले की तुलना में हम पेड़ो की अधिक कटाई करने लगा गए है. जिससे धरती को तरह तरह की प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पढ़ रहा है.कटाई के कारण ही ग्लोबल वार्मिंग जिससे तापमान बढ़ रहा है. जो पेड़ इस संसार को इतना कुछ देता है वह खुद से अपने विनाश का कारण नहीं बल्कि तुम खुद को विनाश के मुंह में ढकेलते जा रहें हैं. शायद इन प्राकृतिक घटनाओं से जूझने के बाद मनुष्य अब हम पेड़ों के महत्व को समझे और हमारा संरक्षष करना शुरु कर दें. आशा करते है की वृक्ष की आत्मकथा (Autobiography of a Tree in Hindi ) पर हमारा लेख आपको पसंद आया होगा.