बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार है, लेकिन गठबंधन के बावजूद कई मुद्दों पर बीजेपी और जदयू आमने-सामने हैं। बिहार में साल 2016 से ही शराबबंदी लागू है, लेकिन पुलिस की नाक के नीचे राज्य में अभी भी महाराष्ट्र से ज्यादा शराब की खपत होती है। ऐसे में यह कहा जाए कि शराबबंदी का फैसला नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर के सबसे खराब फैसलों में से एक था, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। इसी बीच बिहार के मधुबनी जिले के बिस्फी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक हरिभूषण ठाकुर ने शराबबंदी के बावजूद बिहार में हो रहे शराब की खपत को लेकर नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोला है और शराबबंदी कानून को निरस्त करने की मांग की है।
केंद्र द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा के कुछ दिनों बाद, अब बिहार में शराबबंदी कानूनों को निरस्त करने की मांग सामने आ रही है। मीडिया से बात करते हुए भाजपा नेता हरिभूषण ठाकुर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से शराबबंदी कानून को वापस लेने का आग्रह किया, जैसे पीएम मोदी ने कृषि कानूनों को वापस लिया है। विधायक हरिभूषण ठाकुर ने अपने आग्रह को स्पष्ट करते हुए कहा कि यह बिहार में एनडीए सरकार की छवि को प्रभावित कर रहा है, क्योंकि पुलिस प्रशासन भ्रष्टाचार में शामिल है।
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बिहार में धड़ल्ले से बेची जा रही शराब
बीजेपी विधायक ने कहा कि “युवाओं का बड़ा समूह तस्करी में शामिल हो गया है। कुल मिलाकर यह कानून नई पीढ़ी को बचाने के बदले बर्बाद कर रहा है।” हरिभूषण ठाकुर ने पुलिस प्रशासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि “बिहार में शराब तस्करों से पुलिस मिली हुई है, पुलिस की हामी से ही राज्य में शराब बिक रही है। बेचने वाले के यहां पुलिस नहीं जा रही और जो इस कार्य से नहीं जुड़ा है, उसे धमकी दी जा रही है।”
हरिभूषण ठाकुर ने कहा, “जिस तरह सुंदर कृषि कानून (जो किसानों को लाभ के लिए बनाए गए थे) को प्रधानमंत्री द्वारा वापस ले लिया गया था, मैं मुख्यमंत्री से इस कानून को वापस लेने का अनुरोध करता हूं।”
भाजपा सांसद ने आगे कहा, “जो लोग वास्तव में शराब की बिक्री और खरीद में शामिल हैं, उन्हें छोड़ दिया जा रहा है, जबकि जो लोग निर्दोष हैं, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें निशाना बनाया जा रहा है और दिन में 5 बार पूछताछ की जा रही है।”
भाजपा विधायक का बयान ऐसे समय में सामने आया है, जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराबबंदी के मुद्दे को गंभीरता से देख रहे हैं। हाल ही में हुई बैठक में नीतीश कुमार ने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए थे और कहा था कि “आबकारी निषेध और पंजीकरण विभाग, साथ ही साथ पुलिस को हर दिन एक बैठक आयोजित करनी चाहिए और निषेध से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए। पिछले कुछ दिनों में, जहां कहीं भी घटनाएं हुई हैं, वहां गहन जांच की जानी चाहिए और जो दोषी पाए गए हैं, उनपर कार्रवाई होनी चाहिये।”
राज्य में चरम पर है कालाबाजरी और नकली शराब का कारोबार
आपको बताते चलें कि बिहार में शराब पर प्रतिबंध साल 2016 से लगाया गया है, लेकिन स्थिति आज भी जस की तस बनी हुई है। बिहार सरकार शराबबंदी के नाम पर अपनी पीठ थपथपाते दिखती है, लेकिन राज्य में ऐसे कई शराब माफिया हैं जो प्रशासन के नाक के नीचे शराब का काला बाजार चला रहे हैं। राज्य में शराबबंदी होने के बावजूद शराब की खपत प्रतिवर्ष बढ़ रही है। बिहार में शराबबंदी को राजनीतिक रूप से खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया, लेकिन आज स्थिति यह है कि जिस बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, वहां महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब पी जा रही है। दूसरी ओर बिहार में शराब और नशीले पदार्थों की काला बाजारी बड़े स्तर पर हो रही है। यह नीतीश कुमार की विफलता ही है कि शराब तो बंद नहीं हुआ, लेकिन उस पर प्रतिबंध लगाने के कारण कालाबाजारी और नकली शराब का कारोबार अवश्य चरम पर पहुंच गया है।
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वहीं, दूसरी ओर राज्य के आंचलिक क्षेत्रों में अभी भी देसी शराब बनाने की प्रथा जोरों पर है। यह ऐसा काम है, जो लगातार हो रहा है और इसका कोई तोड़ नही है, कथित तौर पर प्रशासन के संरक्षण में इसे अंजाम दिया जा रहा है! इस नेटवर्क और सिंडिकेट के चलते ही बिहार में हिंसा भी कम नहीं हो रही है। यानी जिस मूल समस्या को खत्म करने के लिए नीतीश कुमार द्वारा यह कानून बनाया गया था, 5 साल बाद भी वो समस्या अभी वैसी ही बनी हुई है। ऐसे में अब शराबबंदी को लेकर अपनी ही सरकार पर सवाल उठाकर भाजपा विधायक ने स्पष्ट कर दिया है कि नीतीश कुमार को अब शराबबंदी कानून को वापस लेने पर विचार करना चाहिए।