मध्य प्रदेश में आदिवासी वोटरों की पहली पसंद बनती जा रही है BJP, कांग्रेस में मची हड़कंप

हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति किया!

रानी कमलापति स्टेशन

रानी कमलापति स्टेशन – मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बने विश्वस्तरीय हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर गोंड जनजाति से आने वाली रानी कमलापति के नाम पर रख दिया गया है। कल दिनांक 12 नवंबर 2021 को मध्यप्रदेश शासन के परिवहन विभाग ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर यह मांग की थी कि भोपाल स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदल दिया जाए। केंद्र सरकार ने एक ही दिन में परिवहन विभाग के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए स्टेशन का नाम बदल दिया।

केंद्र सरकार ने गोंड जनजाति को उचित सम्मान दिया

रानी कमलापति स्टेशन का विकास पीपीपी मॉडल के तहत किया गया है। पीपीपी मॉडल अर्थात् सरकार निजी कंपनियों के साथ मिलकर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के अंतर्गत परियोजनाओं को पूरा करती है। इस रेलवे स्टेशन के विकास में कुल 450 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस स्टेशन का नाम बदलने की मांग पहले भी उठाई गई थी। भोपाल से सांसद साध्वी प्रज्ञा और मध्य प्रदेश के भाजपा नेता जयभान सिंह पवैया ने पहले ही इस स्टेशन का नाम बदलने की मांग उठाई थी। उन्होंने इस विश्वस्तरीय स्टेशन का नाम पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर रखने की मांग की थी।

हालांकि, केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश के परिवहन विभाग की मांग को स्वीकार करते हुए स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखकर गोंड जनजाति को उचित सम्मान दिया है।

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मध्य प्रदेश में बिना जनजातीय वोट पाए कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकती

मीडिया में विशेष वर्ग द्वारा हमेशा से इस नैरेटिव को हवा दी जाती है कि भारतीय जनता पार्टी जनजातीय समुदाय के वोट हासिल करने में असफल रहती है। साथ ही यह भी नैरेटिव चलाया जाता है कि भाजपा हिंदुत्व के जिस राजनीतिक दर्शन पर चलती है वह भी कथित उच्च जातियों का दर्शन है, जबकि सत्य यह है कि भाजपा और संघ परिवार ने हमेशा ही जनजातियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए प्रयास किया है।

संघ द्वारा चलाए जाने वाले वनवासी छात्रावास और विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रम इसके उदाहरण है। बिना जनजातीय वोट के भाजपा झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सरकार बना ही नहीं सकती थी। मध्य प्रदेश में 21% जनजातीय वोट है और बिना जनजातीय वोट पाए कोई भी पार्टी सरकार नहीं बना सकती। जबकि भाजपा ने 2003 से 2018 तक, 15 वर्ष मध्य प्रदेश में सरकार चलाई है। हालांकि 2018 में मध्य प्रदेश में हुए आखिरी चुनाव में जनजातीय वोट को लेकर भाजपा कांग्रेस में कांटे की टक्कर हुई थी।

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सरकार अलगाव के प्रयासों को कमजोर कर रही है

भाजपा की समस्या यह है कि जनजातीय वोटर भाजपा के विरुद्ध चलाए जाने वाले दुष्प्रचार अभियान में फंस जाते हैं। यही कारण है कि वर्ष 2023 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव के पूर्व भाजपा यह सुनिश्चित कर लेना चाहती है कि जनजातीय वोट बैंक उसके पक्ष में खड़ा रहे।

यही कारण है कि भाजपा इस बार हर वो प्रयास कर रही है जिससे जनजातीय समुदाय को भ्रमित होने से बचाया जा सके। इसी क्रम में 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया गया है। साथ ही 15 नवम्बर को ही 3 लाख जनजातीय लोगों की उपस्थिति में प्रधानमंत्री भोपाल में रैली करेंगे। उसी दिन रानी कमलापति रेलवे स्टेशन में हुए विकासकार्यों का लोकार्पण होगा। अगर देखा जाए तो भाजपा द्वारा किए जा रहे कार्य सराहनीय हैं क्योंकि जनजातीय समुदाय को समाज के साथ ही इतिहास के मुख्यद्वार से अलग करने का प्रयास हो रहा है। ऐसे में महान ऐतिहासिक पुरुषों एवं महिलाओं को सम्मान देकर सरकार अलगाव के प्रयासों को कमजोर कर रही है।

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