चंद्रबाबू नायडू फूट-फूट कर रो रहे, जगन मोहन मिशनरी के पीछे पागल है और आंध्र प्रदेश पिस रहा है

तुष्टीकरण की राजनीति कर रहें हैं CM जगनमोहन रेड्डी!

कहा जाता है कि ‘कभी- कभी अपराध से ज्यादा खतरनाक होती है गंदी राजनीति’ ऐसे में, अगर कोई यह समझना चाहता है कि राज्य सरकार द्वारा विपक्ष को कैसे नपुंसक बनाया जा सकता है, तो उन्हें आंध्र प्रदेश की राजनीति पर ध्यान देना चाहिए। पिछले कुछ दिनों से आन्ध्र प्रदेश का राजनीतिक माहौल अस्थिर रहा है। एक ईसाई मिशनरी समर्थक और आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने अपने क्रूर और अलोकतांत्रिक आदेशों के माध्यम से चंद्रबाबू नायडू को राज्य में अप्रभावी बना दिया है।

मामल यह है कि अपने राजनीतिक जीवन के सबसे दुर्लभ क्षणों में जगन सरकार द्वारा बार-बार प्रताड़ित किए जाने के बाद चंद्रबाबू नायडू को अकेला छोड़ दिया गया था। आंध्र विधानसभा में सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ वाकआउट करने के बाद नायडू मीडिया से बात कर रहे थे। विधानसभा में प्रक्रियात्मक गड़बड़ी के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने दावा किया कि उनके निजी जीवन पर सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्यों द्वारा हमला किया गया है।

सदन में हुआ चंद्रबाबू नायडू का अपमान

चंद्रबाबू नायडू के अनुसार, उनकी पत्नी भुवनेश्वरी को आंध्र सरकार के लोगों की ओर से कठोर और अपमानजनक टिप्पणियाँ सुनाई गई। पत्रकारों से बात करते हुए नायडू ने कहा, “पिछले ढाई वर्षों से मैं अपमान सह रहा हूं लेकिन मैं शांत था। आज उन्होंने मेरी पत्नी को भी निशाना बनाया है, जो कभी राजनीति में भी नहीं आई हैं। मैं हमेशा सम्मान के साथ और सम्मान के लिए जीता हूं।” विधानसभा के अंदर की कार्यवाही का विवरण देते हुए नायडू ने कहा कि सत्तारूढ़ YSRCP और विपक्षी नेताओं के बीच जुबानी जंग के दौरान, उनकी पत्नी के खिलाफ ‘अपमानजनक टिप्पणी’ की गई है। उन्होंने शिकायत की कि जब उन्होंने अपनी पत्नी का बचाव करने की कोशिश की, तो उन्हें बोलने के किसी भी अवसर से वंचित कर दिया गया क्योंकि स्पीकर तम्मिनेनी सीताराम ने उनका माइक काट दिया था।

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इस तथ्य पर जोर देते हुए कि विधानसभा में उनका अपमान किया गया था, नायडू ने कहा कि “मुझे की गई टिप्पणियों पर एक बयान देने का अवसर नहीं दिया गया है। इसलिए, मैं विधानसभा से बहिर्गमन करता हूं। मैं मुख्यमंत्री के रूप में वापस नहीं लौटूंगा। सदन में मेरा अपमान किया गया है।” नायडू के अनुसार, उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी इतना प्रताड़ित महसूस नहीं किया था। भावुक नायडू ने विधानसभा के अंदर की कार्यवाही की तुलना महाभारत से की और घोषणा कर दी कि वह विधानसभा में वापस नहीं लौटेंगे।

तुष्टीकरण की राजनीति कर रहें हैं सीएम जगन मोहन रेड्डी

गौरतलब है कि जब से जगन मोहन रेड्डी सरकार सत्ता में आई है, तब से उनकी पार्टी नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और अन्य विपक्षी दलों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन कर रही है। हाल ही में, YSRCP के माफियाओं ने अपने हिंसक हमलों के लिए विशेष रूप से TDP के कार्यालयों को निशाना बनाया था। वहीं, लगातार प्रताड़ना सह रहे नायडू ने लड़ाई को लेकर नरेंद्र मोदी की सरकार से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। राष्ट्रपति शासन की अपनी मांग के पीछे के कारणों पर विस्तार से बताते हुए, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने राज्य में कानून-व्यवस्था की पूर्ण विफलता और संवैधानिक तंत्र की विफलता को राष्ट्रपति शासन के औचित्य के रूप में उद्धृत किया था।

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साथ ही, उन्होंने पत्र में मांग करते हुए लिखा कि “केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI ) से उनकी पार्टी के कार्यालयों पर हमलों की जांच और राज्य के विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं के कार्यालयों के लिए केंद्रीय पुलिस बलों से सुरक्षा की आवश्यकता है।” सिर्फ अराजकता ही नहीं, ईसाई मिशनरियों के माफिया को खुश करने के लिए जगन मोहन रेड्डी की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति भी राज्य के लिए हानिकारक साबित हुई है। इतना ही नहीं, ईसाई धर्म के प्रसार हेतु अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए, रेड्डी सरकार ने राज्य में हिंदू त्योहारों के दौरान मंदिरों की लूट, धर्मांतरण और ईसाई धर्म के विज्ञापन की अनुमति दी है।

ईसाई मिशनरियों से लगाव और हिन्दुओं से पक्षपात क्यों?

आंध्र प्रदेश की राजनीति इस बात का अनोखा उदाहरण है कि कैसे एक मजबूत और हिंदूवादी नेता की अनुपस्थिति राज्य को तबाह कर सकती है। वर्तमान में, आंध्र मे YSRCP का शासन है जो साल 2019 के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर सत्ता में आई थी। YSRCP ने 175 सीटों में से 151 सीटों पर जीत हासिल की थी। दूसरी ओर, नायडू की TDP 175 में से केवल 23 सीटें ही हासिल कर पाई थी। पवन कल्याण की जन सेना पार्टी (JSP) ने कुल 173 सीटों पर लड़ने के बावजूद केवल 1 सीट जीती थी। वहीं, इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य सभी दल खाता भी नहीं खोल पाए थे।

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विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद बीजेपी को राजनीतिक रूप से अस्थिर पवन कल्याण की पार्टी से हाथ मिलाना पड़ा था। ऐसा इसलिए क्योंकि गठबंधन दोनों पार्टियों के लिए हितकारी साबित हो सकता था। आंध्रप्रदेश में एक अभिनेता के रूप में पवन कल्याण की भारी लोकप्रियता है और ऐसे में भाजपा को राज्य में राजनीतिक विस्तार मिलने की उमीद थी।

एक ओर, प्रदेश में पवन कल्याण, जगनमोहन रेड्डी की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति से असंतुष्ट हिंदू मतदाताओं के बीच कुछ वोट हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि, यह हिंदुओं को समझ नहीं आता है कि एक व्यक्ति जिसने खुद ईसाई से शादी की है, वह राज्य में ईसाई मिशनरियों के खिलाफ क्या ही कार्रवाई करेगा? दूसरी ओर, पवन कल्याण एक राजनीतिक फ्रीलांसर हैं। 2019 के आम चुनावों के दौरान, उन्होंने भाजपा के राजनीतिक रथ का विरोध करने के लिए महागठबंधन नामक विभिन्न दलों के अपवित्र गठजोड़ का पक्ष लिया था।

राज्य में जरुरी है टीडीपी और भाजपा का गठबंधन!

राज्य में हिंदुओं को बचाने के लिए टीडीपी और भाजपा का गठबंधन ही एकमात्र रास्ता है। यह बीजेपी और टीडीपी दोनों के लिए बेहतर होगा, अगर दोनों पार्टियां राज्य में अगला विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए गठबंधन करती हैं। नायडू लंबे समय से राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का अहम हिस्सा रहे हैं। हालांकि, 2019 के आम चुनाव के दौरान उनके अपने अहंकार के कारण उन्होंने संभावित प्रधानमंत्री पद के लिए NDA को छोड़ दिया था। बाद में उन्होंने अपने फैसले पर खेद जताया था।

चूंकि आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की व्यापक लोकप्रियता है, इसलिए भाजपा नायडू की टीडीपी के साथ गठबंधन करके इसका फायदा उठा सकती है। अगर दोनों पार्टियां अपने दम पर YSRCP से लड़ना चाहती हैं, तो यह थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि YSRCP लोकतांत्रिक आधार पर नहीं लड़ती है। सबसे पहले तो राज्य में YSRCP के नेतृत्व वाली अराजकता के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नायडू को केंद्र में एक मजबूत पार्टी के समर्थन की आवश्यकता है। वहीं, आंध्र के हिंदुओं के हितों को देखते हुए यह बेहतर होगा कि नायडू की टीडीपी के साथ गठबंधन करने के लिए भाजपा पवन कल्याण को दरकिनार कर दे।

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