कांग्रेस और भारत विरोधी मीडिया के प्रोपेगेंडा के कारण WHO ने Covaxin को मंजूरी देने में की देरी

भारत बायोटेक ने भी यही संकेत दिया है!

कोवैक्सीन कांग्रेस

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पतन की दौर से गुजर रही देश की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नाम में भारतीय और राष्ट्रीय शब्द शोभा नहीं देता, क्योंकि कथित तौर पर कांग्रेस न तो विश्व पटल पर भारत की उपलब्धि देखना पसंद करती है और ना ही राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता में उसे विश्वास है! ऐसा हम नहीं कह रहे, दरअसल कांग्रेस पार्टी और उसके नेता आए दिन अपने कुत्सित बयानों से इसकी पुष्टि करते रहते हैं। इस बार भी मामला कुछ वैसा ही है, दुनिया के कई कोरोना वैक्सीन को दूसरे ट्रायल के बाद चंद दिनों में ही मान्यता मिल गई थी, जबकि भारत में निर्मित कोवैक्सीन को मान्यता मिलने में 4 महीनें से ज्यादा लग गए, क्योंकि कांग्रेस ने अपने मुंहबोले वामपंथी बुद्धिजीवी और वामपंथी मीडिया के साथ मिलकर कोवैक्सीन के बारे में काफी नकारात्मक खबरें फैलाई थी, जिसके कारण इतना विलंब हुआ! दशकों तक देश को कथित तौर पर लूटने वाली कांग्रेस पार्टी राष्ट्र की राजनीति में 0/सन्नाटा है ये सब जानते हैं, लेकिन देश की उपलब्धि और धरोहर पर धावा बोलकर कैसे देश और दुनिया को गुमराह करना है, इस मामले में उसके नेता पूरे निपुण हैं!

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मीडिया का नकारात्मक प्रचार

दरअसल, बीते दिन बुधवार को टाइम्स ऑफ इंडिया की सीनियर एडिटर भारती जैन ने एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने कहा, “Covaxin के लिए WHO की आपातकालीन स्वीकृति में देरी पर भारत बायोटेक के कृष्णा ईला ने बताया कि मीडिया के नकारात्मक प्रचार ने WHO को एक अजीब स्थिति में डाल दिया ऐसे माहौल के चलते समीक्षा को और अधिक तीव्र बनाया गया है, क्योंकि डब्ल्यूएचओ अब दोगुना सुनिश्चित होना चाहता है।

उस ट्वीट को रीट्वीट करते हुए TFI मीडिया समूह की संपादक शुभांगी भारद्वाज ने कहा, आज उपलब्ध सभी कोविड-19 टीकों में कोवैक्सिन सबसे अधिक जांच वाला टीका है। Covaxin की प्रभावशीलता के बारे मेंदोगुना सुनिश्चितहोने में WHO को चार महीने लग गए, जबकि डब्ल्यूएचओ ने कुछ ही दिनों में अन्य टीकों को मंजूरी दे दी थी।

वहीं, टाइम्स नाउ शिखर सम्मेलन के आयोजन में भारत बायोटेक के कृष्ण ईला ने बताया कि भारतीय मीडिया की वजह से विश्व स्वास्थ्य संगठन कोवैक्सीन को प्रमाण नहीं दे रहा था।

वामपंथी मीडिया ने उठाए थे सवाल

गौरतलब है कि कोवैक्सीन के सफल होने से सबसे ज्यादा नुकसान अन्य मेडिकल कॉरपोरेट और कांग्रेसी नेताओं को था। मोदी सरकार के शासनकाल में स्वदेशी वैक्सीन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से मान्यता ना मिले, इसे लेकर कथित तौर पर कांग्रेसियों ने कई पैंतरे अपनाए! दूसरी ओर मेडिकल कॉरपोरेट ने पैसों के जरिये कई मीडिया समूहों से कोवैक्सीन को लेकर भ्रामक प्रचार प्रसार कराया, ताकि कोवैक्सीन की अस्वीकृति और लोकप्रियता कम हो। इसके अलावा भारतीय मीडिया समूहों का वामपंथी विचारधारा के प्रति झुकाव सर्वविदित है। इन्होंने अपने नैरेटिव के कारण भारतीय उपलब्धि को ही निशाने पर ले लिया।

उदाहरण के लिए प्रिंट को ले लीजिए, उन्होंने एक लेख का शीर्षक लिखा, भारत के विवादास्पद कोविड वैक्सीन कोवैक्सिन के बारे में आपको सब कुछ जानने की जरूरत है। द प्रिंट ने इस लेख में बताया गया कि भारत के स्वदेशी कोविड -19 वैक्सीन कोवैक्सिन को भारत के ड्रग परीक्षण संस्थासेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) द्वारा नियुक्त विषय विशेषज्ञ समिति द्वारा प्रतिबंधित आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के लिए अनुशंसित किया गया है और कोई भी प्रभावकारिता डेटा जारी नहीं करने के बावजूद इसे लागू किया जा रहा है।

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BBC ने भी लेख एक लेख के माध्यम से इस पर सवाल उठाए थे। बीबीसी के लेख में कहा गया कि प्रभावकारी डेटा की अनुपस्थिति से उत्पन्न होने वाली तीव्र चिंताओं के साथ-साथ पारदर्शिता की कमी है, जो “समाधान से अधिक प्रश्न उठाएगी। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व की तमाम कोरोना वैक्सीन को एक दो ट्रायल के बाद इजाजत दे दी गई, लेकिन कोवैक्सीन को यह स्वीकृति मिलने में 4 महीनें से ज्यादा का समय लगा, क्योंकि देश के गए गुजरे नेताओं की लफ्फाजियों के साथ वामपंथी मीडिया की ओर से इसे लेकर काफी भ्रामक खबरें दिखाई गई थी।

कांग्रेस नेताओं ने की थी लीपा-पोती

दूसरी ओर जब बात लीपा-पोती करने की हो और कांग्रेस पार्टी और उसके नेताओं का नाम ना आये, ऐसा हो ही नहीं सकता! अपने वैज्ञानिकों के कुशलता पर प्रश्न चिन्ह उठाते हुए कांग्रेस ने भी कोवैक्सीन को खतरनाक बताया था।

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कोवैक्सिन को मंजूरी देने पर आशंका व्यक्त करते हुए कहा था कि अभी तक तीसरे चरण का परीक्षण नहीं हुआ है। शशि थरूर ने तब ट्वीट करते हुए कहा था कि, कोवैक्सीन का अभी तक तीसरे चरण का परीक्षण नहीं हुआ है। अनुमोदन समय से पहले है और खतरनाक हो सकता है। पूर्ण परीक्षण समाप्त होने तक इसके उपयोग से बचा जाना चाहिए। भारत इस बीच एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के साथ शुरुआत कर सकता है।

वहीं, कांग्रेसी दिग्गज जयराम रमेश ने भी यही चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि भारत बायोटेक एक प्रथम श्रेणी का उद्यम है लेकिन यह हैरान करने वाला है कि कोवैक्सीन के लिए चरण 3 परीक्षणों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्रोटोकॉल को संशोधित किया जा रहा है।” उन्होंने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन से इस मामले को स्पष्ट करने को कहा था।

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अब WHO से मिल गई है मंजूरी

बताते चलें कि कांग्रेस के इन आलोचनाओं का आधार ऐसे ही न्यूज पोर्टल रहे होंगे, क्योंकि साइटेशन लूप का चक्रव्यूह बनाकर एजेंडा फैलाना इनकी आदत है! आज वही कोवैक्सीन करोड़ो लोगों को लग चुकी है, उसी वैक्सीन को WHO से स्वीकृति भी प्राप्त हो गई है। तब यह जरूरी है कि हम ऐसे देशविरोधी ताकतों की पहचान करें, जिन्हें भारत की उपलब्धि से काफी दर्द होता है, जो भेड़ के रुप में भेड़िए के समान हैं! लेकिन कहा जाता है ना, हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फ़ारसी क्या! इनकी तमाम कोशिशों के बावजूद निर्णय भारत के ही उपलब्धि वाले पक्ष में आया है। यह दुख की घड़ी उनके लिए है, जिन्होंने कोशिश तो बहुत की थी लेकिन असफल रहे।

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