Delhi Dialogue Effect: चीन प्रायोजित पाकिस्तानी पोर्ट को ठेंगा दिखाकर तालिबान ने थामा चाबहार का हाथ!

तालिबान ने चीन और पाकिस्तान की लंका लगा दी!

चाबहार बंदरगाह

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कुछ वर्ष पहले तक भारत की विदेश नीति दूसरों को खुश करने की अधिक होती थी। अब भारत ने विदेश नीति में कई वर्षों की निष्क्रियता को समाप्त करते हुए देश को एक वैश्विक ताकत बनाने पर काम किया है। इसका एक और उदाहरण तब मिला जब दिल्ली की सक्रियता की वजह से तालिबान को चीन समर्थित पाकिस्तानी बंदरगाहों को छोड़ फिर से चाबहार बंदरगाह से व्यापार शुरू करना पड़ा है। 

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अफगानिस्तान पर चर्चा के लिए हाल ही में संपन्न सम्मेलन में अपने स्पष्ट और रणनीतिक विदेश नीति का प्रदर्शन किया। हालांकि, इस सम्मेलन को चीन और पाकिस्तान ने बहिष्कार करके बाधा डालने का प्रयत्न अवश्य किया, लेकिन उसका उन्हें कोई लाभ नहीं मिला। 

जब से तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्जा जमाया है, तब से भारत द्वारा विकसित किए गए चाहबार पोर्ट की भूमिका कम होने लगी थी और वहां की ट्रैफिक भी कम हो चुकी थी। लेकिन इसी महीने दिल्ली में हुए Regional Security Dialogue में अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा प्रमुख था और इसी का परिणाम अब दिख रहा है, सभी देशों ने चाबहार बंदरगाह से दोबारा ट्रेड आरंभ कर दिया है। TOI ने एक अधिकारी के हवाले से कहा, “अफगानिस्तान में अस्थिरता के बावजूद चाबहार बंदरगाह में ट्रैफिक बढ़ रहा है।”

तालिबान ने किया पाक और चीन को डंप!

यही नहीं, तालिबान ने भी चीन समर्थित पाकिस्तानी बंदरगाह छोड़ कर चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापार करना शुरू कर दिया है। यहां ध्यान देने वाली बात है कि तालिबान ने यह आश्वासन दिया था कि वो भारत के साथ सकारात्मक राजनयिक और व्यापारिक संबंध चाहते हैं और वे क्षेत्रीय तथा वैश्विक व्यापार को सक्षम करने में चाबहार बंदरगाह की भूमिका का समर्थन करेंगे। इसी का परिणाम दिख रहा है कि ईरान स्थित इस बंदरगाह पर सामान्य संचालन फिर से शुरू हो रहा है। ये घटनाक्रम कुछ दावों को तथ्यों के रूप में स्थापित करते हैं:

पहला- तालिबान का इस पोर्ट का इस्तेमाल दिखाता है कि वह पाकिस्तान और चीन को डंप करने जा रहा है और दूसरा कि अफगानिस्तान में रूसी और ईरानी समर्थन के साथ भारत का प्रभाव बढ़ रहा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि लंबे समय से चीन इस रणनीतिक क्षेत्र पर अपनी नजर गड़ाए हुए है। रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी से प्रभावित होने के बाद अब बंदरगाह के ट्रैफिक में वृद्धि देखा जा रहा है। भारत के बाद, रूस भी इस पोर्ट पर अपने transit को बढ़ा रहा है। 

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अस्थिरता के बावजूद बढ़ रहा ट्रैफिक

तालिबान ने जब 15 अगस्त को काबुल पर नियंत्रण कर लिया, तब से बंद होने के बाद इस बंदरगाह पर 2 सितंबर से काम दोबारा आरंभ हुआ। अब यह बंदरगाह रूस, कतर, रोमानिया और ऑस्ट्रेलिया के कार्गो को संभाला चुका है। अगस्त के अंत में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के तत्कालीन प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकजई के भारत के विषय में वादे के बाद यातायात में वृद्धि हुई। इस साल सितंबर से, रूस ने चाबहार बंदरगाह को आठ शिपमेंट भेजे हैं, जिसमें 5.3 लाख टन गेहूं शामिल है।

पिछले 2 महीनों में, बंदरगाह ने संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और पहली बार बांग्लादेश को निर्यात की सुविधा प्रदान की है। नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बंदरगाह ने रूस, ब्राजील, थाईलैंड, जर्मनी, यूक्रेन, कतर, ऑस्ट्रेलिया, कुवैत, रोमानिया, बांग्लादेश और यूएई से शिपमेंट और ट्रांसशिपमेंट को संभाला है। 

चाबहार बंदरगाह को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए भारत और वैश्विक बाजार तक पहुंच प्राप्त करने के लिए एक अधिक “किफायती, स्थिर और सुरक्षित मार्ग” माना जाता है। परंतु, अफगानिस्तान में अस्थिरता के बावजूद, अब चाबहार बंदरगाह पर ट्रैफिक बढ़ना एक सकारात्मक विकास है।  

गौरतलब है कि बंदरगाह पर काम फिर से शुरू होने से दो दिन पहले 31 अगस्त को नई दिल्ली ने कतर में तालिबान के साथ पहली औपचारिक बातचीत की थी। कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्टैनिकजई से मुलाकात की थी तथा भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और शीघ्र वापसी के साथ-साथ अफगान अल्पसंख्यकों के लिए यात्रा की संभावनाओं पर चर्चा की थी। इस दौरान चाबहार पर भी बातचीत से इनकार नहीं किया जा सकता है। 

क्षेत्र को अस्थिर करने की पाकिस्तान और चीन की योजना

चीन, अफगानिस्तान के खनिज और प्राकृतिक संसाधनों में रुचि रखता है, जिसकी अनुमानित कीमत 3 ट्रिलियन डॉलर है। इसी कारण पाकिस्तान के माध्यम से चीन, अफ़ग़ानिस्तान पर नजर बनाए हुए है। पाकिस्तान और चीन दोनों चाहते हैं कि भारत का मध्य एशिया से प्रभाव समाप्त हो जाए। यही कारण है कि चीन ने चाबहार बंदरगाह से 172 किमी पूर्व में स्थित ग्वादर पोर्ट को विकसित करने में मदद की और उसे भारत द्वारा विकसित बंदरगाह के विकल्प के रूप में पेश किया। इन दोनों देशों ने तालिबान से भी बेहतर संबंध बनाने की कोशिश की, जिससे भारत को उस क्षेत्र से बाहर कर दिया जाए लेकिन एक बार फिर से भारत अपनी रणनीतिक विदेश नीति से इन दोनों ही देशों पर भारी पड़ा है। 

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बता दें कि इस क्षेत्र में भारत के समर्थन और क्षेत्रीय मध्यस्थता में भारत की भागीदारी के लिए ईरान और रूस का भी साथ मिला है। तेहरान और मॉस्को दोनों के साथ-साथ सभी मध्य एशियाई देश भारत की विशेष स्थिति को समझते हैं और इसलिए यह महसूस करते हैं कि तालिबान मुद्दे और अफगानिस्तान के भविष्य पर भारत के साथ काम करने से प्रयासों को व्यापक स्वीकृति मिलेगी। दिल्ली डायलॉग के जरिए, भारत ने पाकिस्तान और चीन को स्पष्ट संदेश दिया है कि वे भारत को हल्के में नहीं ले सकते।

अब चाबहार बंदरगाह से अच्छी खबर आ रही है। इसका अर्थ स्पष्ट है कि तालिबान ने स्वीकार किया है कि ईरान, रूस और मध्य एशियाई गणराज्यों जैसे देशों द्वारा स्थिरता और स्वीकृति हासिल करने के लिए उसे भारत के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करने की आवश्यकता होगी। चाबहार बंदरगाह के संबंध में ये सभी घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि कैसे Delhi Dialogue ने तालिबान को नई दिल्ली के साथ बेहतर संबंध रखने के महत्व का एहसास कराने के लिए मजबूर किया है। उसी का असर है कि तालिबान ने अपनी विदेश नीति में एक बड़े बदलाव का संकेत देते हुए चीन और पाकिस्तान को किनारे कर दिया है।

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