फ्रांस से सीख सकता है भारत Wokeism की बीमारी को दूर भगाने के उपाय

फ्रांस ने प्राचीन ग्रीक और लैटिन को बढ़ावा देने की घोषणा की है, भारत कब देवभाषा संस्कृत को बढ़ावा देगा?

वोक संस्कृति

क्या है ये वोक संस्कृति?

जब से अमरीका में जो बाइडेन की सरकार बनी है, तब से उदारवादी विचारधारा एकदम बेलगाम हो गई है। ANTIFA जैसी डेमोक्रेटिक पार्टी के बगलबच्चा अब ज्ञान की खूब उल्टी कर रहे है। अब ये बगलबच्चे वोक संस्कृति का नया बवाल शुरू कर रहे हैं। क्या है ये वोक संस्कृति? वोक संस्कृति, हिप्पी संस्कृति के बाद उदारवादियों का नया बखेड़ा है। इसमें ये हर एक चीज जिसके पीछे आधार है, नैतिकता है, उसका ये सीधे खण्डन करते हैं। जैसे शादी इनके लिए पुरुषों द्वारा हवस मिटाने का साधन मात्र है और शिक्षा केवल पैसे कमाने का एक तरीका ।

खैर, अमेरिका में चल रही इस मानसिक गन्दगी पर सामने से लड़ने के लिए फ्रांस तैयार है। फ्रांस ने तो खुले में एकदम से इन वोक लड़ाकों के खात्मे के एलान कर दिया है। अब इसी कड़ी में फ्रांस ने पूरी दुनिया को अपनी समझ दिखाते हुए ग्रीक भाषा, लैटिन भाषा की पढ़ाई पर जोर देना शुरू कर दिया है।

हाल ही में फ्रांस के शिक्षा मंत्री ने प्राचीन ग्रीक और लैटिन के शिक्षण को बढ़ावा देने की योजना की घोषणा की है, जो देश की युवा पीढ़ियों की “संस्कृति को विकसित करने” और वोक संस्कृति के प्रसार से लड़ने के प्रयास में देखा जा रहा है।

फ्रांस के “Woke” युद्ध में एक प्रमुख व्यक्ति और फ्रांस के शिक्षा मंत्री जीन-मिशेल ब्लैंकर ने सोमवार को कहा कि प्राचीन ग्रीक और लैटिन को अगले साल वोकेशनल पाठ्यक्रमों के छठे विषय के साथ-साथ मिडिल स्कूल के छात्रों के लिए उपलब्ध कर दिया जाएगा। ब्लैंकर चाहते हैं कि छात्रों को प्राचीन दार्शनिकों को पढ़कर “अपनी संस्कृति को विकसित करने” का अवसर मिले।

वोक अमेरिका में मृत भाषाओं का लक्ष्यीकरण सबसे प्रमुख रहा है। प्रिंसटन विश्वविद्यालय ने घोषणा की थी कि अब उसे प्राचीन ग्रीक और लैटिन का अध्ययन करने के लिए क्लासिक्स के छात्रों की आवश्यकता नहीं होगी।

प्रिंसटन में क्लासिक्स के एक सहयोगी प्रोफेसर डैन-एल पाडिला पेराल्टा ने दावा किया कि प्राचीन भाषाओं का इस्तेमाल 2,000 वर्षों से गुलामी, उपनिवेशवाद और फासीवाद के औचित्य के रूप में किया गया था।

इसी तरह के एक कदम में, मैसाचुसेट्स के एक हाई स्कूल ने दावा किया कि उसने होमर के ओडिसी को स्कूल के पाठ्यक्रम से हटा दिया था क्योंकि यह नस्लवाद विरोधी एजेंडे के साथ संघर्ष करता था। एक शिक्षक ने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह कहते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि हमने इस साल ओडिसी को पाठ्यक्रम से हटा दिया है।”

ब्लैंकर ने फूंका इस कुतार्किक मानसिकता के विरुद्ध बिगुल-

ब्लैंकर ने ले पॉइंट को बताया कि क्लासिक्स की ऐसी व्याख्याएं “पूरी तरह से दिमागी कुंठित मानसिकता” का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “दो सहस्राब्दियों से पहले के लेखन को एक समकालीन विश्व के दृष्टिकोण के साथ देखना बेतुकापन है।”

उन्होंने कहा आगे कहा कि पूर्वकालीन सभ्यताएं हमें “खुलेपन और सार्वभौमिक खोज” की ओर लेकर आती हैं।

मंत्री का मानना ​​​​है कि प्राचीन भाषाएं समकालीन यूरोपीय देशों के लिए एक सामान्य बंधन हैं। ब्लैंकर ने यह भी दावा किया कि यह क्लासिक्स लोगो के सवालों और मांग का जवाब देते हैं। एक ऐसी दुनिया में जहां “कारण की कमी जंगल की आग की तरह फैल रही है।”

आपको बताते चलें कि पिछले महीने शिक्षा मंत्री ने एक थिंक टैंक की स्थापना की थी, जो राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन के वोक युद्ध के लिए समर्पित था।

फ्रांस एक कदम और बढ़ गया है!

एक संयुक्त बयान  में, फ्रांस, इटली, साइप्रस और ग्रीस के शिक्षा मंत्रियो ने तय किया है कि वह लैटिन और प्राचीन ग्रीक पर अपने सहयोग को मजबूत करेंगे, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय भागीदारी को प्रोत्साहित और विकसित करेंगे, साथ ही साथ छात्र-शिक्षक बातचीत और गतिशीलता का भी वादा किया गया है।

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वोक संस्कृति के हिसाब से भारत की संस्कृत भाषा ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता, अभिजात्य वर्ग के शासन का प्रतीक है। ये सब हवा में जी रहे हैं और हवा में ही इनको मारने की तैयारी फ्रांस कर चुका है।

भारत के लिए भी फ्रांस से सीखने योग्य बहुत सी चीजें हैं। भारत को भी वोक संस्कृति की परवाह न करते हुए इनके कुतर्कों को लात मारते हुए ऐतिहासिक महत्व की पुस्तकों को पढ़ाना चाहिए।

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