आज के समाज में बहुसंख्यक विरोध एक प्रमुख मुद्दा है। जिधर नजर पड़े उधर ही बहुसंख्यक विरोध की बात सुनाई देती हैं। बात यहां तक पहुंच चुकी है कि अगर कोई अल्पसंख्यक बीच चौराहे पर भी नमाज पढ़ता है तो इसका विरोध करना अल्पसंख्यको को प्रताड़ित करने की सूची में डाल दिया जाता है और इस पर फिर बहुसंख्यक विरोध आरंभ हो जाता हैं।
अगर बहुसंख्यक विरोध करना है तो इसके लिए सबसे पहले अल्पसंख्यक बचाव करना प्रथम कर्तव्य माना जाता है। हालांकि, भारत की कथित धर्मनिरपेक्षता में अल्कसंख्यक बचाव के केंद्र में एक ही पंथ दिखाई देता है। Islamoleftists इस पंथ के बचाव में इतने निम्न स्तर पर जा चुके हैं कि अब वो खाने में थूके जाने का बचाव करने के लिए तर्क दे रहे हैं। यह काम वही अल्ट न्यूज और द प्रिंट जैसे मीडिया हाउस कर रहे हैं जिनके प्रोपेगेंडा से हम परिचित हैं लेकिन बचाव का तर्क इस अकल्पनीय स्तर पर गिर जायेगा इसका अनुमान कम था।
पिछले दिनो सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुई। वीडियो में कुछ लोग सफेद कुर्ता पायजामा पहने Skull Cap लगाए खाना परोस रहे थे। उसी दौरान बड़े बर्तन से खाना निकालने वाले एक व्यक्ति ने बर्तन में थूक दिया। इसके बाद फिर क्या था, बचाव करने वाले उतर गए मैदान में फैक्ट चेकिंग के नाम पर। ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने फ़ैक्ट-चेकिंग के बहाने भोजन पर थूकने की हरकत को सही ठहराने के लिए एक लेख प्रकाशित किया। ऑल्ट न्यूज़ के लेख में दावा किया गया था कि यह 15 दिसंबर, 2018 का एक पुराना वीडियो था। ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने ‘थूकने’ के कृत्य को भोजन पर ‘हवा देना बताया। जब जुबैर ने लेख शेयर किया, तो उसने दावा किया कि यह वीडियो हाल का नहीं था और कोविड से पहले की है। हालांकि, वीडियो में स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि एक व्यक्ति ने मास्क पहन रखा था।
WTF 🤢🤮
Kindly fact check this @zoo_bear, see if Maulana is spitting or what….
https://t.co/jiiMWfT2BM— BALA (@erbmjha) November 7, 2021
Do read this. https://t.co/lxEKMO3ZGH
— Mohammed Zubair (@zoo_bear) November 7, 2021
इस रिपोर्ट में लिखा गया कि “वीडियो में वास्तव में क्या हो रहा है, यह जानने के लिए हमने एक इस्लामिक विद्वान से संपर्क किया। विद्वान ने कहा, “इसे ‘फातिहा जलाना’ कहा जाता है। यह खाना पकाने के बाद किया जाता है। कुछ कुरान की आयतें भोजन के ऊपर पढ़ी जाती हैं जिसमें अल्लाह से बीमारियों को ठीक करने के लिए प्रार्थना किया जाता। कुछ हवा उड़ाते हैं और कुछ नहीं। यह फातिहा है जहां आप कुछ खाना निकालते हैं और बरकत (सौभाग्य) मांगते हैं।”
यहां ध्यान देने वाली बात यह थी कि अल्ट न्यूज ने उस विद्वान का नाम तक नहीं बताया था। एक अज्ञात इस्लामी विद्वान का हवाला देते हुए, ‘फैक्ट चेकिंग वेबसाइट’ ने भोजन में थूकने जैसे गंदे काम को सही ठहराया।
Alt News is explaining Islamic tradition of spitting in the food without condemning the practice as “dangerous” in corona times.
Pratik and gang have a well-defined job and they are doing the job quiet well 😂— Monica Verma (@TrulyMonica) November 8, 2021
पिछले साल, जब मुस्लिम सब्जी विक्रेताओं द्वारा सब्जियों पर थूकने का वीडियो वायरल हुआ था, तब भी Altnews ने थूकने की घटना को प्रमुखता ना देते हुए यह बताने की कोशिश की थी यह वीडियो पुराना है, जैसे कि मानो फरवरी में सब्जियों पर थूकना अच्छी बात है। इसी तरह कई बार हमें यह देखने को मिला है कि किसी भी असामाजिक कृत्यों की लीपापोती के लिए बौद्धिक ब्रिगेड पहले से ही ढाल लिए तैयार रहता है।
और पढ़े: गुरुग्राम पुलिस ने किया सार्वजनिक स्थल पर नमाज़ पढ़ने वालों का शर्मनाक बचाव
कुछ दिनों पहले हरियाणा के गुरुग्राम में सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ पढ़ने वालों की बढ़ती संख्या को लेकर बवाल हुआ था। साल 2018 में विवाद अधिक बढ़ने पर लोगों ने आपसी समझौते के बाद 37 स्थलों को खुले में नमाज के लिए तय किया था। हालांकि, समस्या तब शुरू हुई जब इन स्थलों पर धीरे-धीरे मुसलमानों की संख्या बढ़ने लगी। स्थानीय हिंदुओं का कहना था कि शुरू में 20 मुसलमान नमाज पढ़ने जुटते थे, जबकि अब 200 से अधिक मुसलमान नमाज पढ़ने आते हैं। इस कारण स्थानीय लोगों में असुरक्षा का माहौल बनने लगा था। इसके बाद हिंदुओं ने कड़ा विरोध किया, कुछ को तो जेल भी जाना पड़ा लेकिन स्थानीय जनता ने विरोध नहीं छोड़ा। अब प्रशासन को भी मजबूर होकर 8 जगहों पर खुले में नमाज की अनुमति देने वाले निर्णय को वापस लेना पड़ा है।
इस मामले के सामने आने के बाद The Print ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें यह तर्क दिया गया था कि क्यों हिंदुओं को नमाज पढ़ने वालों का बचाव करना चाहिए। इस लेख में यह भी लिखा गया था लेखक को चलती ट्रेनों में, व्यस्त सड़कों पर, अस्पतालों के गलियारों में और यहां तक कि हिंदू मंदिरों के अंदर भी नमाज अदा करने दिया गया।
यहाँ विडंबना यह नहीं है कि मंदिर में लेखर को नमाज़ अदा करने दी गई, बल्कि यह है कि अगर कोई हिंदू किसी मस्जिद में पूजा करना चाहे तो उसका चार्ली हेब्दो भी किया जा सकता हैं l हिंदुओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने मंदिरों में घरों में, सड़कों पर इन्हें किसी भी समय नमाज पढ़ने दे। पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने तो इस्लामिक शासन की क्रूरता, अत्याचार, बलात्कार, जबरन धर्मांतरण, लूटपाट और मंदिरों की तोड़फोड़ को छुपाने के लिए इतिहास के साथ लीपापोती की लेकिन आज के दौर में तो सोशल मीडिया के जरिये खाने में थूकने को तक सही ठहराने को कोशिश की जा रही है।
यानी हिंदुओं को नमाज़ के बचाव के लिए मजबूर करने से लेकर भोजन पर थूकने को जायज़ ठहराने तक, इस्लामोवामपंथी सबसे निचले स्तर तक गिर रहे हैं, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस्लामोवामपंथी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं, परंतु, प्रिंट और ऑल्ट न्यूज़ ने जो किया है वह सबसे निचले स्तर पर है।