अब जल्द ही इतिहास बन जाएगा हुर्रियत

हुर्रियत के ताबूत में आखिरी कील ठोकने की कोशिश में मोदी सरकार!

Hurriah Ban

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धारा 370 की तरह अब कश्मीर की अलगाववादी ताकतें, जिन्हें हुर्रियत के नाम से भी जाना जाता है, वो जल्द ही इतिहास बनने वाली हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार हुर्रियत से जुड़े सभी धर्मों को आतंकी फंडिंग के आरोप में UAPA के तहत प्रतिबंधित करने जा रही है। सरकार लगातार एक के बाद एक बड़ी कार्रवाई करते हुए हुर्रियत की ताकत को पूरी तरह कुचल रही है और अब सरकार द्वारा लगाया जा रहा यह प्रतिबंध हुर्रियत के ताबूत में आखिरी कील साबित होगा।

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रिपोर्ट के अनुसार सरकार आने वाले कुछ ही दिनों में निर्णायक फैसला कर सकती है। खबरों की मानें तो सरकार हुर्रियत के उग्रवादी और उदारवादी, दोनों पक्षों पर कार्रवाई करेगी। सरकार के पास जम्मू-कश्मीर सरकार और NIA की ओर से दिये गए डेटा और अन्य प्रमाण पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं, जिसके आधार पर UAPA के लिए वैधानिक पृष्ठभूमि पहले ही बनाई जा चुकी है।

हुर्रियत के दोनों धड़ों पर होगी कार्रवाई

केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रुप से धारा 370 हटाने के बाद अलगाववादी नेताओं पर टेरर फंडिंग के संबंधित कार्रवाई भी की है। इन नेताओं पर आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण केस दर्ज हुए हैं, जिससे हुर्रियत की शक्ति बिल्कुल समाप्त हो गई है। यही कारण था कि हुर्रियत के सबसे बड़े नेता और ब्रांड एंबेसडर सैयद अली शाह गिलानी की मौत पर भी हुर्रियत कोई जलसा नहीं कर सकी, जिसकी उम्मीद भारत विरोधी तत्वों द्वारा की जा रही थी।

गौरतलब है कि ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस (APHC) का गठन जुलाई 1993 में हुआ था, जब जम्मू-कश्मीर में उग्रवाद अपने चरम पर था। इस ‘अंब्रेला ग्रुप’ में 26 समूह शामिल थे, जिनमें कुछ पाकिस्तान समर्थक और प्रतिबंधित संगठन जैसे- जमात-ए-इस्लामी, जेकेएलएफ और दुख्तारन-ए-मिल्लत शामिल थे। इसके साथ ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और मीरवाइज उमर फारूक की अध्यक्षता वाली अवामी एक्शन कमेटी भी इसमें शामिल थी। अलगाववादी समूह साल 2005 में दो गुटों में विभाजित हो गया था, एक था मीरवाइज के नेतृत्व वाला हुर्रियत (जी) और दूसरा सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व वाला हार्ड-लाइन समूह हुर्रियत (एम)।

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कांग्रेस सरकार में हर्रियत नेताओं को मिल रही थी सुरक्षा

बताते चलें कि हुर्रियत को कांग्रेस सरकार में अनावश्यक सम्मान मिलता रहा! ऐसे अलगाववादी नेता जो बंदूक की लड़ाई से किनारा कर चुके थे, लेकिन राजनीतिक गतिविधियों के माध्यम से लगातार अलगाववादी विचार फैलाते रहें, आतंकियों के लिए फंडिंग जुटाते रहें, उन्हें भी कांग्रेस सरकार सुरक्षा देती रही। लोकतांत्रिक लड़ाई के नाम पर हुर्रियत का उदारवादी धड़ा, यहां तक कि PDP जैसे मुख्यधारा के राजनीतिक दल आतंकवादियों को वैचारिक संरक्षण देते थे, उनके लिए फंडिंग जुटाते थे! लेकिन मोदी सरकार ने सभी देशविरोधी तत्वों से सुरक्षा वापस ले ली और उनपर जबरदस्त कार्रवाई भी की गई। हाल ही में NIA ने इन सभी के जाल को तोड़ा और अब इन्हें अंतिम रूप से तिलांजलि देने का समय आ गया है।

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