भारत अब दुनिया के अग्रणी ऑटोमोबाइल मार्केट्स में शामिल होगा और Chevrolet और Ford जैसी कम्पनियां बहुत पछताएंगी

अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!

भारत ऑटोमोबाइल

भैया देखो! सौ बात की एक बात यह है कि अगर आपको कोई चीज बेचना है, तो आपको आपका बाजार मालूम होना चाहिए। अब घोड़ागाड़ी रेगिस्तान में बेचेंगे तो ऊंट बेचने वाला तो बाजार में मजबूत होगा ही। यह तो बाजार का अटल सत्य है और कई बार आपको सामने वाले बाजार के हिसाब से बदलना होता है। बहुत-सी कम्पनियां भारत में आकर बंद हो गई और इनमें प्रमुख नाम जनरल मोटर्स, फोर्ड और हार्ले डेविडसन है। ये कम्पनियां अपने नीतिगत मूर्खताओं के चलते भारत से बाहर हुई हैं और अब इनमें से दो कंपनियों को तो बहुत ज्यादा अफसोस होगा।

नरेंद्र मोदी सरकार के सबसे लोकप्रिय नेता नितिन गडकरी के बारे में एक बात विख्यात है। वह जिस शिद्दत से काम करते हैं, ऐसा लगता है कि विकास का जो सफर नरेंद्र मोदी ने तय करने का सुनिश्चित किया है। वह सफ़र वो अकेले तय करना चाहते हैं। दूसरी बात जो उन्हें लोकप्रिय बनाती है, वो यह है कि वह जुबान के पक्के हैं। अब उनका अगला महाभियान दुनिया में भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र को सबसे बड़ा बनाना है। इसके लिए वह सुनिश्चित कर रहे हैं कि भारत में जो भी कमियां है, वह जल्द से जल्द दूर हो जाएं। इसके सन्दर्भ में मोदी सरकार में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ब्लूप्रिंट तैयार करके सबको बताया।

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ऑटोमोबाइल क्षेत्र में भारत बनेगा आत्मनिर्भर

नितिन गडकरी एक वाहन स्क्रैपिंग और रीसाइक्लिंग इकाई का उद्घाटन करने के लिए नोएडा में मौजूद पहुंचे, वहां उन्होंने व्यापक लाभों पर जोर देते हुए कहा कि “वाहनों के कचरे का पुनर्चक्रण इस क्षेत्र (ऑटोमोबाइल) और समग्र अर्थव्यवस्था के लिए बहार ला सकता है।” सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने आगे कहा कि “भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिए, केंद्र सरकार ने 2026 तक ऑटोमोबाइल क्षेत्र के वार्षिक कारोबार को दोगुना करके 15 लाख करोड़ रुपये करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है।”

वर्तमान में, देश में ऑटोमोबाइल क्षेत्र का वार्षिक कारोबार 7.5 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें 3 लाख करोड़ रुपये का निर्यात शामिल है लेकिन वाहन स्क्रैपेज और रीसाइक्लिंग के विस्तार से लंबे समय में इनपुट लागत को कम करने और स्थानीय उद्योग को वैश्विक बाजारों में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने की अपार संभावनाएं हैं।

नितिन गडकरी ने अपने वक्तव्य में कहा, “सरकार द्वारा शुरू की गई स्क्रैपेज नीति, भारतीय ऑटोमोबाइल क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में और अधिक प्रतिस्पर्धी बना देगी क्योंकि सभी प्रमुख कच्ची धातुओं का अंततः पुनर्नवीनीकरण किया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप सामग्री लागत में कमी आएगी। स्टील, तांबा, एल्यूमीनियम, प्लास्टिक और रबर जैसे कच्चे माल की लागत में कमी आएगी। पुनर्चक्रण से हमारे आयात में भी कमी आएगी। यह हमारी सरकार के आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद करेगा।”

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आपको बताते चलें कि इस समय ऑटो निर्माताओं को रिकॉर्ड उच्च सामग्री लागत का सामना करना पड़ रहा है, जो उन्हें कीमतों में बार-बार वृद्धि करने के लिए मजबूर कर रहा है। देश की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता कंपनी मारुति सुजुकी के चेयरमैन आरसी भार्गव के मुताबिक कमोडिटी की कीमतों में तेज बढ़ोतरी से कंपनी की लागत में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है। सितंबर तिमाही के अंत में शुद्ध बिक्री के 80.4 प्रतिशत पर, सामग्री लागत MSIL के लिए अब तक के उच्चतम स्तर पर है।

भारत बनेगा विश्व का सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र

गडकरी ने आज कहा कि “वाहन कबाड़ नीति में बदलाव करके, विनिर्माण लागत में 33 प्रतिशत तक की कमी लाने और ऑटो बिक्री को 12 प्रतिशत तक बढ़ाने की क्षमता है। सरकार को अब स्क्रैपिंग और रीसाइक्लिंग क्षेत्र में 10,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त निवेश की उम्मीद है। अगले दो वर्षों के भीतर, मुझे विश्वास है कि भारत में 200-300 नई स्क्रैपिंग और रीसाइक्लिंग सुविधाएं होंगी। हमारा लक्ष्य हर जिले में ऐसे 3-4 केंद्र विकसित करना है। इससे न केवल 200,000 नौकरियां पैदा होंगी, बल्कि वाहनों की बिक्री से 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) संग्रह भी होगा।”

गौरतलब है कि भारत में फोर्ड कंपनी साल 1990 में आई थी। अपने 20 साल में फोर्ड ने भारतीय मार्केट में अपनी पकड़ मजबूत नहीं की और उसे भारी घाटा सहना पड़ा था, जिसके बाद कंपनी को भारत से वापस लौटना पड़ा। वहीं, जनरल मोटर्स को भी घाटे के चलते भारत से वापस जाना पड़ा था।

अब जब भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र में इतना बड़ा बदलाव हो रहा है तब जनरल मोटर्स और फोर्ड जसी कपनियों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि जिस बाजार को वह गरीब समझकर छोड़ गए थे, अब वो विश्व का सबसे बड़ा विनिर्माण केंद्र बनने जा रहा है। 15 लाख करोड़ मतलब 200 बिलियन डॉलर होता है और ये कम्पनियां भारत में इस क्षेत्र में बड़ी हिस्सेदार बन सकती थी लेकिन अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत!

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