वर्ष 1838 में, एक फ़कीर (मुस्लिम पुजारी) महाराष्ट्र के एक शिरडी गांव में आता है। किसी अन्य नाम के अभाव में स्थानीय सुनार उन्हें साईं बाबा कहते हैं। शिरडी एक छोटा सा गांव है, एक समय में इस गांव में जीर्ण-शीर्ण घर हुआ करते थे। गांव वालों को अपने गांव में ऐसे अजनबी व्यक्ति को देख आश्चर्यचकित होना स्वाभाविक था। गांव में ज्यादातर किसान थे। बाबा के आध्यात्मिक विषयो में ज्ञान के चलते उनकी खूब प्रशंसा हुई। लेकिन आजकल शिरडी में लोगों ने खेती की जगह अपना ध्यान एक ही फ़कीर पर लगा रखा है और वो हैं साईं बाबा उद्योग! साईंं इस शहर का व्यवसाय है। धीरे-धीरे उस जगह का प्रभाव इतना ज्यादा होने लगा कि वह धर्मगुरु हो गए। ऐसे में, इनका शख्सियत और धर्म स्पष्ट होना चाहिए लेकिन वो नहीं हुआ क्योंकि साईं बाबा किस धर्म से आते हैं, यह किसी को पता नहीं था।
वैसे तो अधिकतर लोग उनका संबंध इस्लाम से बताते हैं। बाद में चंद गद्दार हिंदुओ की वजह से उनकी लोकप्रियता हिंदुओ में भी बढ़ गई। हिंदुओ की वजह से इतनी प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले साईंं ट्रस्ट ने हाल ही में एक ऐसा काम किया है, जो आपको चिंतित कर सकता है।
एक फ़कीर बाबा कभी हिंदू नहीं था!
हाल ही में एक चित्र सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वायरल हो रही है, जिसमें साईं बाबा के नीचे भगवान श्री जग्गनाथ की तस्वीर रखी हुई है। एक पंथ के तौर पर शुरू होने वाले शिरडी के बाबा का कद उनके अनुयायियों में इतना बड़ा हो गया है कि वह पहले फ़क़ीर हुए, फिर सन्त, फिर सिद्धपुरुष और अब भगवान हो गए हैं। शिरडी के बाबा का जो क्रमिक विकास है, वह अद्भुत है। वह ईसाईंंमिशनरियों के तर्ज पर आगे बढ़ रहे हैं। जैसे संस्थागत तरीकों से ईसाईंंमिशनरी आगे बढ़ते हैं, वैसे ही इस ट्रस्ट द्वारा इनको बढ़ाया जा रहा है।
No disrespect to Sai bhaktas, but I have often seen Sai bhaktas trying to equate Sai with other Hindu Gods. Just see in this particular picture, Prabhu Jagannatha (a God) is placed at the feet of Sai (a human).@TheAtulMishra @tfipost @Bibhunandan5 @simplysappie pic.twitter.com/NcYpmao0FQ
— Saswat Routroy (@SaswatRoutroy) November 26, 2021
हमने पहले कुछ गद्दारों की बात की थी। पहले उनके द्वारा इस पाखंड के खेल को समझने की कोशिश करते हैं। दाभोलकर, देशपांडे और सागरबुद्धे के तिकड़ी ने लगभग सौ साल पहले साईं बाबा की मूर्ति पूजा का फला-फूला व्यवसाय शुरू किया था। यदि कोई आलोचनात्मक रूप से प्रचारित कहानियों और मिथकों का विश्लेषण करने की कोशिश करता है, तो कोई संदेह करना शुरू कर देगा कि क्या ऐसा व्यक्ति वास्तव में जीवित था। कहीं यह भोले-भाले जनता को लूटने के लिए कुछ गैंगस्टरों की कल्पना तो नहीं थी। एक फ़क़ीर दूर-दराज के गांव में आता है, वो मस्जिद में रहता है और अल्लाह का नाम लेता है। इसका मतलब है कि वह व्यक्ति कभी हिंदू था ही नहीं।
कई घोटालों में लित्प है श्री साईंं ट्रस्ट
उनके जीवनी के माध्यम से उनको जानने पर यह विश्वास हो जाता है कि दाभोलकर, देशपांडे, दासगानू आदि द्वारा साईं बाबा को एक हिंदू संत के रूप में पेश करने का जानबूझकर प्रयास किया गया। उसी प्रतिष्ठित गैंग ने अपने निहित स्वार्थों को पूरा करने के लिए साईंं को भगवान का दर्जा दिया। यह धंधा फलफूल भी रहा है। एक क्रमिक विकास के तहत पहले हिंदुओ के मन में जगह बनाने हेतु साईं बाबा को हिन्दू फ़क़ीर बताया गया। थोड़ी प्रसिद्धि प्राप्त हुई तो उन्हें संत बताया गया और अब तो ये भगवान भी हो गए हैं। यहां समस्या, भगवान श्री जग्गनाथ को नीचे रखने से नहीं है। समस्या यह है कि एक व्यक्ति भारत में इतने तौर-तरीके अपनाकर भगवान कहलाने लगा और इसपर किसी का ध्यान भी नहीं गया!
इसी मानसिक अबोधता के कारण आज श्री साईंं ट्रस्ट करोड़ो की सम्पति पर कब्जा करके बैठा है। घोटाले पर घोटाले हो रहे हैं। 2015 वाला घोटाला तो याद ही होगा? जब शिरडी के ‘श्री साईंं संस्थान ट्रस्ट’ ने 2015 में नासिक में आयोजित सिंहस्थ कुंभ मेले में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस द्वारा की गई मांग के अनुसार सुरक्षा सामग्री खरीदी थी। RTI अधिनियम के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह सामग्री पुलिस अधीक्षक, अहमदनगर के कार्यालय द्वारा प्रदान की गई अनुमानित लागत की तुलना में अत्यधिक लागत पर खरीदी गई थी। उदाहरण के लिए, मनीला रस्सी (10,000 मीटर लंबी) की कीमत 60,000 रुपये है लेकिन इसे 19 लाख 50 हजार रुपये में खरीदा गया था।
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कैसे एक फ़क़ीर भगवान से बड़ा हो गया?
इसी तरह 400 रुपये के रिचार्जेबल टॉर्च 3000 रुपये में खरीदे गए। उपरोक्त खरीद के लिए भुगतान किए गए 66,55,997 रुपए स्पष्ट रूप से खरीद में हुए भ्रष्टाचार को दर्शाते हैं। इस मामले में, महाराष्ट्र सरकार ने 16 दिसंबर 2016 को ‘श्री साईंं संस्थान ट्रस्ट’ को एक पत्र भेजकर स्पष्टीकरण मांगा था; लेकिन इतने दिनों बाद भी कोई जवाब नहीं भेजा गया है। इस प्रकार, संदेह पैदा होता है कि सभी अवैध कार्यों को दबाया जा रहा है। गौरतलब है कि आज शिरडी में एक नहीं सैकड़ो मंदिर है, जहां धर्म का व्यवसाय हो रहा है। ऐसे में, चेतना शून्य और अबोध हिन्दू, गर्व से वहां करोड़ो रूपये लुटा रहा है। इनके नामसझी के कारण ही आज एक फ़क़ीर भगवान से बड़ा हो गया है।