वैश्विक स्तर पर स्टील मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में चीन की हिस्सेदारी छीन रहा है भारत

स्टील मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में जल्द ही इतिहास बन जाएगा चीन!

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भारत विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। दुनिया भर में धातु की कीमतों में भारी उछाल के बाद हाल के दिनों में हम चीन को अधिक इस्पात उत्पादन में नाकाम होते हुए देख रहे हैं। टाटा स्टील के एमडी और सीईओ, टीवी नरेंद्रन की राय है कि अगर चीन उत्पादन में कटौती करता है, तो उसका निर्यात कम होगा और इससे स्टील की कीमतों में स्थिरता आएगी और वास्तव में वैश्विक इस्पात प्रवाह को बाधित करने की चीन की क्षमता भी कम होगी ।

उन्होंने आगे कहा, चीन के बाहर खपत बढ़ेगी, खपत में वृद्धि चीन के बाहर के बाजारों से अधिक प्रेरित होगी और मैं भारत में इस उद्योग के आशातीत सफलता के बारे में अधिक सकारात्मक हूं।”

साल 2030 तक टाटा स्टील द्वारा अपनी क्षमता कम से कम 35-40 मिलियन टन तक बढ़ाने की योजना है और आने वाले वर्षों में कम से कम एक बिलियन टन की क्षमता के साथ ‘अधिक स्क्रैप-आधारित सुविधाएं’ स्थापित करने पर कंपनी विचार कर रही है।

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इस्पात मांग में गिर रही है चीन की हिस्सेदारी

टाटा स्टील के एमडी ने कहा, “साल 2030 तक उत्पादन 40 मिलियन टन तक जाने की महत्वाकांक्षा है और मुझे लगता है कि 2025 तक कलिंग नगर स्टील प्लांट के तीसरे चरण के विस्तार के साथ-साथ अंगुल विस्तार की योजना भी पूर्ण हो चुकी होगी।”

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि टाटा स्टील ने इस साल अगस्त में हरियाणा के रोहतक में 0.5 एमटीपीए स्टील रीसाइक्लिंग प्लांट चालू किया है। नरेंद्रन ने कहा, “हम हरियाणा और पंजाब की सरकारों से बात कर रहे हैं और साथ ही स्क्रैप आधारित स्टील बनाने वाली इकाइयां स्थापित करने के लिए भागीदारों के साथ भी बात कर रहे हैं।”

नई कंपनियों के उच्च मूल्यांकन और बीएसई (बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज) में प्रवेश करने के साथ, 1.54 लाख करोड़ रुपये के मार्केट कैप वाली भारत की सबसे पुरानी मिश्र धातु निर्माता कंपनी टाटा स्टील ने बताया कि बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित करना ही बाजार में बने रहने की कुंजी है। नरेंद्रन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि वैश्विक इस्पात मांग में चीन की हिस्सेदारी पिछले कुछ वर्षों से गिर रही है और विश्व स्तर पर, अधिकांश मांग विकसित देशों से आ रही है। उनका कहना है कि भारत स्टील का एक अच्छा और बड़ा निर्यातक है, जिसमें भारत और रूस दुनिया में स्टील के सबसे कम लागत वाले उत्पादक हैं।

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जल्द ही इस क्षेत्र में भी अलग-थलग पड़ जाएगा चीन

इन्वेस्टमेंट इंफार्मेशन एंड क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ऑफ इंडिया (ICRA) ने कहा, चीन में स्टील की कमजोर मांग के बीच वैश्विक स्तर पर भारतीय और चीनी स्टील कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा तेज हो सकती है। इक्रा के अनुसार, साल 2020-21 में चीन भारत से स्टील का सबसे बड़ा आयातक बनकर उभरा। हालांकि, चालू वित्त वर्ष में चीनी स्टील की मांग में गिरावट के साथ, भारतीय मिलों द्वारा चीन को स्टील निर्यात का हिस्सा चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 30 प्रतिशत से घटकर केवल 8 प्रतिशत रह गया है।

इस रेटिंग एजेंसी ने भी इस बात पर प्रकाश डाला कि वैश्विक इस्पात मांग में चीन की हिस्सेदारी पिछले कुछ वर्षों से गिर रही है और विश्व स्तर पर अधिकांश मांग विकसित देशों से आ रही है।

बताते चलें कि भारत स्टील का एक अच्छा और बड़ा निर्यातक है, जिसमें भारत और रूस दुनिया में स्टील के सबसे कम लागत वाले उत्पादक हैं। स्टील निर्यातक देश अपने निर्यात को कम कर रहे हैं और भारत के पास इस अंतर को भरने का अवसर है। अगर भारतीय कंपनियां इसमें कामयाब होती हैं, तो चीन इस क्षेत्र में भी इतिहास बन जाएगा!

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