भारत को दुनिया का Good Boy बनना बंद कर देना चाहिए

प्रदुषण कम करने से लेकर अमेरिका को सहायता देने तक, कब तक ये एकतरफ़ा सहयोग चलता रहेगा?

“क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो,

उसका क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत सरल हो?”

कवि रामधारी सिंह दिनकर की यह पंक्तियाँ आज स्वाभाविक रूप से भारत की वर्तमान स्थिति पर एकदम सटीक बैठती है l यदि संसार एक कक्षा होती, तो भारत वो विद्यार्थी होता जिसमें योग्यता भी है और वह अनेकों कलाओं में निपुण भी है, परन्तु उसकी योग्यताओं का हर कोई अनुचित लाभ उठाता है, और बात-बात पर उसे ही नैतिकता के उपदेश भी दिए जाते हैं, चाहे उसकी गलती हो या नहीं l परन्तु क्या भारत को हमेशा ‘गुड बॉय’ ही बना रहना चाहिए? क्या भारत पर ही दुनिया भर की नैतिकता का बोझा ढोने का भार लादा जाना चाहिए?

जिस देश ने विश्व को कूटनीति का पाठ पढ़ाया है, उसे आखिर अपनी शक्ति का आभास क्यों कराना पड़ रहा है? आखिर देश क्यों सुने उस संसार की, जिसके लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश वैश्विक भूख मिटाने की दृष्टिकोण में भारत से भी आगे है? क्यों सुने उस पाश्चात्य जगत की, जिसके लिए स्वास्थ्य सुविधा से लेकर रचनात्मकता में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश तक भारत से आगे हैं? ऐसी कई रिपोर्ट हैं, जहाँ पर भारत को जानबूझकर कमतर आँका जाता है, चाहे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो, सांस्कृतिक विकास हो, शिक्षा हो या फिर मूलभूत संरचना होl जिस यूरोप का आधे से अधिक सर्विस उद्योग तक भारत पर निर्भर हो, वो भी कोरोना रोधी वैक्सीन पर भारत को उपदेश देता फिरता है l इतना ही नहीं अपनी वैक्सीन को वैश्विक स्वीकृति दिलाने के लिए भारत को अनेक प्रकार के पापड़ बेलने पड़े हैl

आक्रामकता ही प्रगति के मार्ग पर प्रथम पथ है, और भारत ने इस मार्ग पर अपने कदम बढाए भी हैं, परन्तु हमारे प्रयास पर्याप्त नहीं हैl COP26 सम्मिट में कार्बन एमिशन पर पश्चिमी देशों के दोहरे मापदंडों को पीएम मोदी ने अवश्य रेखांकित किया, पर क्या इससे विश्व में हमारी छवि बदल जाएगी? क्या लोग हमें फासीवादी, बलात्कारी कहना बंद कर देंगे? क्या लोग हम पर हिटलर समर्थक होने का झूठा आरोप लगाना बंद कर देंगे?

आज भी दुनिया के अधिकतर देशों के लिए भारत एक गरीब, पिछड़ा हुआ देश माना जाता हैl हम भले ही अपने विकास के बारे में चाहे जितनी बातें करें, परन्तु हमने कभी भी इसका आक्रामकता से प्रचार नहीं किया हैl एक समय तो ऐसा भी था जब हमें अपनी बात मनवाने के लिए SAARC जैसी सड़ी गली संस्थाओं के सामने याचना करनी पड़ती थीl आज हम उस स्थिति में तो नहीं है, परन्तु आज भी हमारे अन्दर से हमारे ही लिए हीन भावना पूरी तरह से नहीं गई हैl

पाश्चात्य जगत के अनुसार भारत दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में आता हैl लेकिन ये वे लोग कहते हैं, जिन्होंने अपने समय में औद्योगिक क्रांति के नाम पर संसार को जमकर प्रदूषित किया, और जब भारत ने अपने विकास की गति को बढाने की दिशा में आगे बढ़ने की सोची, तो उसे पीछे धकेलने के लिए नैतिकता का उपदेश देते हैं!

आज जो यूरोप कोरोनावायरस के Omicron वेरियंट से कराह रहा है, कल यही महाद्वीप भारतीय वैक्सीन को स्वीकारने से भी मना कर रहा थाl भारत ने जब यहाँ इनकी हेकड़ी का अपनी कूटनीति से मुंहतोड़ जवाब दिया है, तो बाकी जगह क्यों हिचक रहा है?

भारत आत्मनिर्भर राष्ट्र है l जो वह उगाता है, वही वह खा भी सकता है, इसके बाद भी वह संयुक्त राष्ट्र को अनुचित लाभ देता है, जबकि वह समय आने पर भारत के बचाव में भी नहीं आता है, और वास्तव में इसकी निरर्थकता के बारे में कुछ भी कहना मतलब अपने शब्द व्यर्थ करने  के सामान होगाl

परन्तु यह तो कुछ भी नहीं है l अभी वर्तमान में भारत ने अपने रणनीतिक रिज़र्व में से वैश्विक तेल कीमतों में राहत लाने के लिए 50 लाख बैरल तेल जारी किया है, जिसका उपयोग केवल युद्धकाल में किया जाता हैl ऐसा क्यों किया गया? ऐसा इसलिए, क्योंकि अमेरिका ने कहा था, जो अपने वर्तमान प्रशासन की अकर्मण्यता के कारण 30 वर्ष बाद महंगाई के भीषण संकट से जूझ रहा हैl तेल के दाम अमेरिका में आसमान छू रहे हैं, और ऐसे में भारत और जापान को अमेरिका की सहायता हेतु आगे आना पड़ा हैl

जापान की सहायता एक बार को समझ में भी आती है, क्योंकि अमेरिका ने उसकी सहायता की थीl परन्तु भारत को अमेरिका की चाटुकारिता करने की क्या आवश्यकता है? आखिर वाशिंगटन ने भारत के उत्थान के लिए आज तक क्या किया है? भारत के लिए अब तक अमेरिका ने कितने युद्ध लड़ लिए? कितने आतंकियों को धाराशायी करने में अमेरिका ने भारत की अब तक सहायता की? इन सब का केवल एक उत्तर है – शून्य, और इतिहास पर हमारा मुख मत ही खुलवाइए, क्योंकि फिर अमेरिका को सर छुपाने के लिए जगह नहीं मिलेगीl

भारत को अब पाश्चात्य संस्कृति के लिए अपना मोह त्यागकर अपने आत्मसम्मान के लिए लड़ना सीखना होगाl उसे आक्रामक होना होगाl जिसने विश्व को नैतिकता, धर्म और कूटनीति पर उपदेश दिया हो, उसी किसी भी राष्ट्र से इन बिन्दुओं पर तो उपदेश की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यदि सिंह लिखना सीख जाए, तो आखेटक कब तक डींग हांकेगा?

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