पूर्व IPS अधिकारी के. राधाकृष्णन की कहानी बताती है कि जब पूरा राजनीतिक नेक्सस किसी एक राजनीतिक दल का गुलाम हो जाता है, जो तानाशाही मानसिकता का शिकार होता है, तो सामान्य व्यक्ति क्या बड़े से बड़ा अधिकारी भी असहाय हो जाता है। इस समय के. राधाकृष्णन एक निजी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं और गुमनामी का जीवन जी रहे हैं, जिससे वह सुरक्षित रह सकें।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार के. राधाकृष्णन को रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाओं से वंचित कर दिया गया है। उनका अपराध यह था कि उन्होंने फजल हत्याकांड में अपनी जांच के दौरान तात्कालिक कम्युनिस्ट सरकार के नरेटिव को अस्वीकार करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों पर मुकदमा दर्ज नहीं किया था।
के. राधाकृष्णन पुलिस महकमे के सबसे योग्य अधिकारी थे
के. राधाकृष्णन कन्नूर में डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस के पद पर कार्यरत थे। उसी दौरान फजल, कम्युनिस्ट पार्टी छोड़कर विपक्षी पार्टी NDF में शामिल हो गए थे, जिसके बाद उनकी हत्या कर दी गई थी। कन्नूर के DIG अनंतकृष्णन ने इस मामले की जांच के. राधाकृष्णन को सौंपी थी। उनकी एक 20 सदस्य टीम गठित की गई थी, जिसे हत्याकांड की जांच करनी थी। के. राधाकृष्णन पुलिस महकमे के सबसे योग्य अधिकारियों में माने जाते थे और उन्होंने तत्कालीन अत्यंत कठिन मामलों की जांच सफलतापूर्वक की थी।
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फज़ल की हत्या के अगले दिन CPM ने एक प्रदर्शन आयोजित किया और RSS के चार लोगों को हत्या का आरोपी बताया। न्यू इंडियन एक्सप्रेस में छपे के. राधाकृष्णन के बयान के अनुसार उन्होंने बताया कि “फजल की हत्या के अगले ही दिन, CPM ने एक विरोध सभा आयोजित की थी, जिसमें क्षेत्र सचिव करयी राजन ने चार RSS कार्यकर्ताओं का नाम लिया, जिनके बारे में उनका दावा था कि वे हत्या में शामिल थे। मैंने उन सभी को हिरासत में लिया, उनके बयान दर्ज किए और घटना से पहले और बाद में उनकी सभी गतिविधियों पर नज़र रखी। दूसरे दिन गृह मंत्री कोडियेरी बालकृष्णन ने मुझे पय्यम्बलम गेस्ट हाउस बुलाया और 7 दिनों के अंदर केस फाइल करने का निर्देश दिया। जैसा कि मुझे विश्वास था कि RSS के लोग हत्या में शामिल नहीं थे, मैंने उन्हें रिहा कर दिया, जिस बात ने CPM नेतृत्व को नाराज कर दिया।”
झूठे आरोपों में सस्पेंड हुए थे पूर्व IPS के. राधाकृष्णन
के. राधाकृष्णन ने बताया कि “उन्होंने 300 से अधिक लोगों के मोबाइल फोन रिकॉर्ड की जांच की।” जांच के दौरान कम्युनिस्ट पार्टी के कई कार्यकर्ता संदेह के घेरे में आ गए, जिसके बाद तत्कालीन गृह मंत्री ने राधाकृष्णन को पुनः अपने फार्म हाउस पर बुलाकर यह निर्देश दिया कि “यदि वह इस मामले में किसी पार्टी कार्यकर्ता के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने का विचार कर रहे हैं तो इसकी सूचना मंत्री महोदय को दी जानी चाहिए।” इसके बाद के राधाकृष्णन की पुलिस टीम के कर्मचारी ही भयभीत हो गए और 10 दिनों के भीतर के. राधाकृष्णन को केस से हटा दिया गया। के. राधाकृष्णन ने बताया कि मामले से जुड़े दो महत्वपूर्ण गवाहों, जिन्होंने हत्या से जुड़े कई आवश्यक जानकारी उन्हें दी थी, उनकी रहस्यमई परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। फजल की पत्नी द्वारा मामले को हाईकोर्ट में उठाया गया, जिसके बाद इस जांच को केरल पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने 2012 में जो चार्जशीट दायर की, उसमें CPM के 8 कार्यकर्ताओं को हत्या का दोषी बताया गया था।
15 दिसंबर 2006 को IPS अधिकारी के राधाकृष्णन को कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा बुरी तरह पीटा गया, जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी। उन्हें डेढ़ वर्ष अस्पताल में बिताने पड़े थे। इसके बाद साल 2016 में के. राधाकृष्णन को झूठे आरोपों में सस्पेंड कर दिया गया। उन्होंने अपनी बहाली के लिए साढ़े चार साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। अपनी बहाली के बाद वह मात्र 8 महीने ही नौकरी कर सके किंतु उनकी सेवानिवृत्ति के एक दिन पहले उन्हें डिपार्टमेंट की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई का एक नोटिस थमा दिया गया, जिससे सेवानिवृत्ति के बाद उनकी पेंशन और अन्य सुविधाएं रोकी जा सके।
गुमनामी का जीवन जी रहे हैं पूर्व IPS के. राधाकृष्णन
के. राधाकृष्णन की कहानी भारतीय लोकतंत्र के उस दुखद अध्याय का एक भाग है जो बताता है कि भारत में कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा कितना मजबूत है। एक पुलिस अधिकारी को इसलिए प्रताड़ित किया जाता है क्योंकि वह निष्पक्षता से एक हत्या की जांच कर रहा था। DSP स्तर के अधिकारी को एक पार्टी के गुंडे पीटते हैं, मामले के 15 साल बाद भी उसका मानसिक शोषण बंद नहीं किया जाता है। अपनी रिटायरमेंट के बाद उसे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करनी पड़ती है और गुमनामी का जीवन जीना पड़ता है, जिससे वह अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा कर सके।
गौरतलब है कि इस पूरे प्रकरण पर IPS एसोसिएशन एक शब्द नहीं बोला, ना ही के. राधाकृष्णन की लड़ाई के लिए सहानुभूति दिखाई। ध्यान देने वाली बात है कि देश का IPS एसोसिएशन तब जागता है, जब कोई पत्रकार UPSC जिहाद की बात उठाता है, लेकिन किसी को तब कोई फर्क नहीं पड़ता जब एक पुलिस अधिकारी को अपनी जान बचाने के लिए दूसरे राज्य में शरण लेनी पड़ती है!