अल्पसंख्यक अधिकार के एक ज्ञानी हैं, उनका नाम विल किमलिका है! वह उदारवाद की परंपरा के भीतर अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए तर्क देते हैं। सामान्य तौर पर उदारवाद व्यक्ति को स्वायत्त और कार्य करने में सक्षम रूप में देखता है। उदारवादी सिद्धांत व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर ज्यादा जोर देता है। उसी के हिसाब से अधिकार भी दिए जाते हैं, लेकिन किमलिका का मानना है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता सबके लिए एक समान नहीं रहती है। उन्होंने जिंदगी भर बताया कि कैसे अल्पसंख्यक अधिकार, स्वतंत्रता, समानता, लोकतंत्र और नागरिकता जैसे व्यापक राजनीतिक मूल्यों और उदारवाद, समुदायवाद और गणतंत्रवाद जैसे व्यापक नियामक ढांचे से संबंधित हैं। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उन्हीं के चेले माने जाते हैं! उनका साल 2006 वाला बयान आप सबको याद होगा, राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में अपने संबोधन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने बयान में कहा था कि मुसलमानों का संसाधनों पर “पहला दावा” है। मौजूदा समय में कई मसलों में उनका यह बयान सच होते दिख रहा है।
‘संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला दावा’
तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था, “हमें यह सुनिश्चित करने के लिए अभिनव योजनाएं तैयार करनी होंगी कि अल्पसंख्यक, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक, विकास के फलों को समान रूप से साझा करने के लिए सशक्त हों। संसाधनों पर इनका पहला दावा होना चाहिए।” तब उन्होंने कहा था कि केंद्र के संसाधनों को बढ़ाया जाएगा और इस संबंध में राज्यों को अधिक जिम्मेदारी दी जाएगी। उन्होंने कहा, “केंद्र के पास असंख्य अन्य जिम्मेदारियां हैं, जिनकी मांगों को इसकी समग्र संसाधन उपलब्धता के भीतर फिट करना होगा।“
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उस समय भाजपा, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और आरएसएस ने मनमोहन सिंह के बयान की निंदा की थी और कहा था कि यह सांप्रदायिक रंग से भरा हुआ है। तब तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीसी की बैठक के समापन के बाद संवाददाताओं से कहा था कि “इस तरह का बयान प्रधानमंत्री जैसे वरिष्ठ नेता को शोभा नहीं देता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।“
अब समय बदल गया है और उस बयान को 15 साल से ज्यादा हो गए हैं। अब इस प्रकार की बयानबाजियां नहीं होती, लेकिन भाजपा इस समय कांग्रेस से भी ज्यादा उदारवादी हो रही है और विल किमलिका के विचारधार पर चल रही है! मौजूदा समय में ऐसी कई घटनाएं सामने आई है, जिसे लेकर बवाल मचा हुआ है और भाजपा पर लगातार सवाल भी उठ रहे हैं।
गुरुग्राम में सार्वजनिक जगहों पर नमाज
गुरुग्राम में पिछले कुछ हफ्तों से लोग सार्वजनिक भूमि पर नमाज अदा करने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। नमाज को बाधित करने के उद्देश्य से पुलिस ने कम से कम 30 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया है। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे हैं और तख्तियां पकड़े हुए हैं, जिन पर लिखा है: “मस्जिदों में नमाज अदा करो“, “गुड़गांव प्रशासन, अपनी नींद से जागो“ और “इसे रोको, इसे रोको“।
प्रशासन विरोध करने वालों को हिरासत में ले रही है, जबकि सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पढ़ने वालों को सुरक्षा प्रदान कर रही है। उचित तौर पर देखें तो उनके नमाज पढ़ने की जगह मस्जिद में है, लेकिन फिर भी प्रशासन का झुकाव उनकी तरफ ही है! सड़क, बिजली, अस्पताल ये सब धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण है, क्योंकि ये राज्य की संपति है और उसपर सभी का अधिकार है, लेकिन सार्वजनिक भूमि पर नमाज अदा करने की नौटंकी बीजेपी शासित हरियाणा में खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।
महाराष्ट्र में हंगामा
त्रिपुरा में कथित सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में कुछ मुस्लिम संगठनों द्वारा निकाली गई रैलियों के दौरान शुक्रवार को महाराष्ट्र के अमरावती, नांदेड़, मालेगांव (नासिक), वाशिम और यवतमाल में विभिन्न स्थानों पर पथराव हुआ था। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर पथराव किए, कई गाड़ियों और दुकानों को आग के हवाले कर दिया। भारत बंद के आह्वान ने महाराष्ट्र के नांदेड़ में प्रदर्शन ने हिंसक मोड़ ले लिया। जबरदस्ती दुकाने बंद करवाई गई हैं और पुलिस पर पथराव भी किया गया। जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज का सहारा लिया और अराजकता फैलाने वाले कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में भी लिया है। इस घटना के बाद से ही इलाके में तनाव का माहौल बना हुआ है। महाराष्ट्र के इन शहरों में हिंसा भड़काने में रज़ा एकेडमी का नाम सामने आया है। जिसके कारनामें तो पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से काफी मिलती-जुलती है, लेकिन अभी तक इसे प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
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पीएम को देना चाहिए स्पष्ट संदेश
ये तो सिर्फ दो घटनाएं हैं, इसके अलावा ना जाने कितनी ही घटनाएं रोज घटित हो रही हैं, जो हम तक नहीं पहुंच पा रही। ऐसे में गृह मंत्रालय को ऐसे मामलों पर एक्शन लेते हुए सख्त से सख्त कार्रवाई करना चाहिए और समाज को तोड़ने की मंशा रखने वाले लोगों को सख्त संदेश भी देना चाहिए। साथ ही पीएम नरेंद्र मोदी को भी संस्थागत हो रहे तुष्टिकरण पर सीधे अपना मत पेश करना चाहिए!
गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों में भाजपा ने अपनी जो छवि बनाई है, जमीनी स्तर पर अगर उसका कोई असर ही न दिखे, तो सवाल उठेंगे ही! देश में अल्पसंख्यकों को पहले से ही तमाम अधिकार मिले हुए हैं, देश का संविधान उन्हें कई मुद्दों पर सबसे ऊपर रखता है, लेकिन देश के सभी संसाधनों पर अगर वो अपना अधिकार जमाएंगे, तो देश का बहुसंख्यक समाज कैसे चुप बैठेगा? कोई भी यह नहीं चाहेगा कि देश का बहुसंख्यक समाज सड़कों पर उतर कर ऐसे कृत्यों के खिलाफ विरोध जताए, लेकिन जिस चीज के खिलाफ जाकर लोगों ने भाजपा को वोट दिया, पार्टी को उनके पुरुषार्थ का सम्मान करना चाहिए और उनके अधिकारों की रक्षा भी करनी चाहिए!