राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं मुलायम सिंह यादव, अवसरवाद में नीतीश के बाद आता है उनका ही स्थान

आज 82 वर्ष के हुए अवसरवादी मुलायम!

मुलायम सिंह यादव अवसरवाद

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उत्तर प्रदेश के धरतीपुत्र नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, वर्तमान भारतीय राजनीति के सबसे बड़े चेहरों में से एक हैं। उन्होंने भारतीय राजनीति में एकछत्र राज किया है। वो देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। जमीनी स्तर पर उनकी पकड़ काफी बेहतरीन बताई जाती है। राज्य के कई इलाकों में समर्थक उन्हें पूजते भी हैं। वो राज्य के नेता होते हुए केंद्रीय नेताओं के बराबर महत्व रखने वाले नेता रहे हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनीति में मुलायम ने जो मुकाम हासिल किया है, वो अन्य नेताओं के लिए एक बड़ा उदाहरण है। मुलायम सिंह यादव इतने बड़े नेता हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक उपलब्धियों में हमेशा से ही एक चीज की कमी रही है और वह है कि मुलायम अवसरवाद की राजनीति करते रहे हैं।

जिंदगी भर सत्ता का आनंद उठाने के लिए उन्होंने राजनीतिक दलों ने कभी मीठे तो कभी खट्टे संबंध रखें! इसका लाभ उनके राजनीतिक करियर में भी देखने को मिला। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर इस आर्टिकल के माध्यम से उनके राजनीतिक रोलर कोस्टर यात्रा को विस्तार से समझेंगे।

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मुलायम सिंह ने दी थी केंद्र सरकार को चेतावनी

राजनीति में उनके उदय की शुरुआत एक लोकप्रिय क्षेत्रीय नेता के तौर पर हुई थी। साल 1989 में वो पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में चुने गए। पहले कार्यकाल के दौरान जब अधिकारियों ने मुलायम सिंह यादव को बताया कि तत्कालीन डिप्टी पीएम देवी लाल (जो कृषि विभाग भी संभाल रहे थे) ने यूरिया की कीमतों में भारी वृद्धि की घोषणा की है, तब उन्होंने काफी रोष में देवी लाल को फोन किया और अपनी नाराजगी व्यक्त की। साथ ही उन्होंने तुरंत घोषणा भी कर दी कि किसान बढ़ी हुई कीमतों पर भुगतान नहीं करेंगे, और अगर ये वापस नहीं हुआ तो उनकी सरकार राज्य में सब्सिडी नहीं देगी। यह एक ‘विद्रोही’ मुलायम थे, जिन्होंने केंद्र सरकार को चुनौती दी थी और किसानों के लिए उनके दृढ़ विश्वास के चलते उन्होंने बढ़ी हुई कीमतों को कभी लागू नहीं होने दिया था।

अपने घातक डकैतों के गिरोहों के लिए कुख्यात ‘चंबल के बीहड़ों’ के विश्वासघाती इलाके में कहा जाता है कि केवल जीवित रहने की प्रवृत्ति वाले ही जीवित रह कर आगे बढ़ सकते हैं, “बच्चीहो तब ही कुछ करी पहियो” (कुछ सार्थक करने में सक्षम होने के लिए आपको जीवित रहने की आवश्यकता है)। 79 साल पहले (21 नवंबर, 1939) को बीहड़ से सटे इटावा के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह यादव इस पुराने जंगल की कहावत के साथ बड़े हुए हैं!

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भाजपा के साथ मुलायम का संबंध

2019 लोकसभा चुनाव से पहले मुलायम सिंह यादव ने नरेंद्र मोदी के दोबारा प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश जाहिर की थी। एक प्यारे मुस्कान के साथ उनके इस बात को लेकर कई तरह के कयास लगाए जाने लगे थे। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि यह वहीं मुलायम सिंह यादव हैं, जिन्होंने मुस्लिम वोट बैंक का मत हासिल करने के कारसेवकों पर गोलियां चलवाई थी। उस समय रामरथ यात्रा के रूप में भाजपा अपने चरम पर थी।

भाजपा के हिंदुत्व वाले जय श्री राम के नारे के जवाब में सपा-बसपा के गठबंधन ने “मिले मुलायम कांशी राम, हवा में उड़ गए जय श्री राम” नारे का जोर-शोर से प्रचार प्रसार किया और इस गठबंधन ने भाजपा के राजनीतिक मार्च को सफलतापूर्वक रोक दिया। लेकिन, यह मिलन अधिक समय तक नहीं चला, राज्य अतिथि गृह में सपा के गुंडों द्वारा मायावती पर हमले के बाद यह गठबंधन बूरी तरह बिखर गया!

साल 1990 की यह घटना अतीत की तरह प्रतीत होती है, लेकिन उस साल की दो घटनाएं आज भी भारतीय समाज और राजनीति को प्रभावित करती हैं। उस समय मुलायम सिंह की कथित तौर पर दो मजबूरियां थी, पहला- मंडल आयोग की उस रिपोर्ट को जारी करना था, जिसे पिछली सरकारों ने वस्तुतः ठंडे बस्ते में डाल दिया था और दूसरा- इसकी प्रतिक्रिया के रूप में आया, क्योंकि मुसलमान इस कोटे से खुश नहीं थे और राजीव गांधी के कपाट खोलने वाले फैसले से भी मुसलमान रुष्ट थे।

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लेकिन पिछले गंठजोड़ के साथ, बाबरी मस्जिद स्थल पर अयोध्या में राम मंदिर के लिए आक्रामक अभियान के रूप में काम करके मुलायम सिंह यादव वोट बैंक बनाने में सफल रहे थे। हालांकि, अयोध्या में राम मंदिर के लिए अभियान आरएसएस प्रतिनिधि सभा के 1986 के प्रस्ताव के बाद से चल रहा था, लेकिन तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी द्वारा राष्ट्रव्यापी रथ यात्रा का नेतृत्व करने का फैसला करने के बाद इसे गति मिली थी। उस समय आरएसएस-भाजपा ने वीपी सिंह सरकार के मंडल आयोग के कदम को संदेह की नजरों से देखा था। उस आयोग की सिफारिशों ने नौकरियों में ओबीसी को जाति-आधारित आरक्षण दिया था और संघ ने इसे हिंदू समाज को विभाजित करने के प्रयास के रूप में देखा था।

कांग्रेस के साथ मुलायम के संबंध

भले ही यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस और सपा एक साथ आई और राहुल-अखिलेश की जोड़ी को लोग एक मजबूत ताकत के रूप में देख रहे थे, लेकिन एक समय था जब मुलायम सिंह यादव ने सोनिया गांधी को ठेंगा दिखा दिया था। 17 मई 1999 को लोकसभा में भाजपा की स्थिति खराब होने वाली थी, क्योंकि सोनिया गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति नारायणन से दावा किया था कि 272 संसद उनके पास हैं। साल 1996 की तरह इस बार भी अलर्ट जारी कर दिया गया था।

तब तमाम लोगों को चौंकाते हुए मुलायम सिंह यादव ने अटल बिहारी वाजपेयी को समर्थन दे दिया था। इसको भी अवसरवाद माना जा सकता है, क्योंकि भाजपा के साथ उस समय मुलायम सिंह यादव के संबंध अच्छे नहीं चल रहे थे। इसके अलावा एक समय क्षत्रियों से उनके संबंध खराब होने लगे थे। जिसे ठीक करने के लिए क्षत्रिय डिम्पल यादव को घर की बहु बनाकर मुलायम सिंह यादव ने अपने वोट बैंक को और मजबूत किया था!

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जब मुलायम ने दिया था पीएम को धक्का

मुलायम सिंह यादव एक दिलेर नेता हैं, जिनकी तस्वीरें कभी व्हीलचेयर पर दिखती है तो कभी रमजान में इफ्तार करते हुए। बताते चलें कि प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा को धक्का देने को लेकर भी मुलायम चर्चा में रह चुके हैं। जी हां! ये सत्य है कि जब एचडी देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री थे, तब मुलायम सिंह यादव ने उन्हें धक्का दे दिया था, उस समय शरद यादव और लालू प्रसाद भी वहां मौजूद थे।

दरअसल, मामला कुछ यूं था कि मुलायम सिंह यादव और लालू यादव के खिलाफ सीबीआई ने मामला दर्ज कर लिया था। इससे आहत होकर मुलायम सिंह और लालू यादव, शरद के पास पहुंचे और वहां से तीनों नेता प्रधानमंत्री देवगौड़ा के पास पहुंच गए। बताया जाता है कि तत्कालीन पीएम के साथ समझाइश से सहमत न होने के कारण मुलायम ने यह कदम उठा लिया था। आज उसी ऊंच-नीच संबंधों में चलने वाले मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन है। अच्छा हो या बुरा, यह कहना गलत नहीं होगा कि मुलायम सिंह यादव  अवसरवाद की राजनीति के बादशाह बन चुके हैं!

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