नीतीश कुमार की ‘शराबबंदी’ अब तक की उनकी सबसे बड़ी नाकामी सिद्ध हुई है!

शराबबंदी के बावजूद बिहार में सबसे ज्यादा शराब की खपत!

बिहार शराबबंदी

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अक्सर ये देखने को मिलता है कि जिस किसी भी वस्तु, खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थों आदि से आम जनमानस को किसी भी तरह की समस्या होती है, तो केंद्र सरकार या राज्य सरकार सख्त कार्रवाई के साथ ही कुछ नीतिगत फैसले लेते हुए उस पर बैन लगा देती है। इससे कुछ हद तक लोगों को राहत तो मिलती है, लेकिन जिस किसी भी वस्तु पर प्रतिबंध लगाया जाता है, उसके काला बाजारी का काम भी शुरू हो जाता है। मौजूदा समय में बिहार में स्थिति भी कुछ वैसी ही है। बिहार सरकार शराबबंदी के नाम पर अपनी पीठ थपथपाते दिखती है, लेकिन राज्य में ऐसे कई शराब माफिया हैं जो प्रशासन के नाक के नीचे शराब का काला बाजार चला रहे हैं।

बेरोजगार लोग पैसे की लालच में उनके साथ काम कर रहे हैं और दूसरे राज्यों से शराब लाकर बिहार में बेच रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं राज्य में नकली शराब का धंधा भी अपने चरम पर है। पिछले एक वर्ष में नकली शराब पीने के कारण कई लोगों की जान जा चुकी है। अभी हाल ही में धनतेरस से लेकर दीपावली के बीच मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, सिवान और पश्चिम चंपारण समेत अन्य जिलों से भी जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत की खबरें सामने आई हैं। देखा जाए तो नीतीश कुमार की शराबबंदी, उनकी अब तक की सबसे बड़ी नाकामी साबित हो रही है।

2 जिलों में 33 लोगों की मौत

बिहार में जहरीली शराब के सेवन से 33 लोगों की मौत के बाद शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य में शराबबंदी को लेकर समीक्षा बैठक की। इतने दिनों तक सुप्त अवस्था में रहने के बाद सुशासन बाबू जागे हैं। नीतीश कुमार ने ट्वीट किया, ‘संकल्प’ पर शराबबंदी को लेकर समीक्षा बैठक की गई। गौर करने वाली बात है कि नीतीश कुमार शराबबंदी के बाद से ही ऐसी समीक्षा बैठक करते आ रहे हैं, लेकिन स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है।

दरअसल, बिहार के दो जिलों में पिछले कुछ दिनों में जहरीली शराब पीने से 33 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य बीमार हो गए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गोपालगंज और पश्चिमी चंपारण में ज्यादा मौतें हुई हैं। पश्चिम चंपारण जिले के मुख्यालय बेतिया के तेलहुआ गांव में गुरुवार को कथित तौर पर शराब पीने से आठ लोगों की मौत हो गई। जबकि गोपालगंज में संदिग्ध नकली शराब के सेवन की एक अन्य घटना में गुरुवार को मरने वालों की संख्या 16 हो गई, जबकि जिला अधिकारी ने छह और मौतों की पुष्टि की है।

गोपालगंज के पुलिस अधीक्षक आनंद कुमार ने बताया, “पिछले दो दिनों में जिले के मुहम्मदपुर गांव में कुछ लोगों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई है। उनकी मौत के कारण की पुष्टि नहीं की जा सकती क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अभी इंतजार है। तीन टीमें मामले की जांच कर रही हैं।”

बिहार में महाराष्ट्र से भी ज्यादा पी जाती है शराब

बता दें कि बिहार में 2021 के जनवरी महीने से लेकर नवंबर तक जहरीली शराब के 18 मामले सामने आ चुके हैं। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इस साल बिहार में जहरीली शराब पीकर मरने वालों की संख्या 100 से अधिक पहुंच चुकी है। बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से अब तक करीब 3 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। करीब 55 लाख लीटर देसी शराब और 100 लाख लीटर विदेशी शराब भी जब्त की गई है। मामले में 3 लाख 50 हज़ार अधिक लोगो को गिरफ्तार भी किया जा चुका है।

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गौरतलब है कि बिहार में शराबबंदी 2016 से लागू है, लेकिन इस सर्वे के आंकड़ों में तब से लेकर अब तक कोई खास बदलाव नहीं आया है। राज्य में शराबबंदी होने के बावजूद शराब की खपत प्रतिवर्ष बढ़ रही है। बिहार में शराबबंदी को राजनीतिक रूप से खूब प्रचारित और प्रसारित किया गया, लेकिन आज स्थिति यह है कि जिस बिहार में शराबबंदी का कानून लागू है, वहां महाराष्ट्र जैसे राज्य से ज्यादा शराब पी जा रही है।

शराबबंदी के बाद बिहार में बढ़ गई है ड्रग्स की खपत

पिछले वर्ष आई नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 ने बिहार में शराबबंदी की व्यवस्थाओं की पोल खोली थी। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-20 का आंकड़ा बताता है कि बिहार में आज भी 15.5 फ़ीसदी लोग शराब पीते हैं जो कई बड़े राज्यों से अधिक है। यह सर्वे 15 साल से अधिक उम्र के लोगों पर किया जाता है। ऐसे में संभावना यह भी है कि 15 से लेकर 17 साल का एक बड़ा नाबालिक वर्ग भी बिहार में धड़ल्ले से शराब के जाम छलका रहा है। शराब न मिल पाने की स्थिति में ये लोग अब अन्य तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगे हैं। शराबबंदी के बाद राज्य में ड्रग्स की खपत भी ज्यादा हो गई है।

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि बिहार में ड्रग्स की जब्ती में खतरनाक उछाल आया है, जो 2015 में नगण्य था। 2015 में हशीश की कोई जब्ती नहीं हुई थी, लेकिन 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 243 किलोग्राम हो गया था। पटना की संकरी गलियों के भीतर, सरकार की विफल नीति के परिणामस्वरूप दिन के उजाले में नशीली दवाओं का व्यापार फल-फूल रहा है। सिर्फ पटना ही नहीं बल्कि कई जिलों में यही हालात हैं। Rehab Center में नशीले पदार्थों के कारण बढ़ते केस इसी ओर इशारा कर रहे हैं।

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बिहार को गर्त में लेकर जा चुके हैं नीतीश कुमार!

यानी स्पष्ट है कि बिहार में शराब और नशीले पदार्थों की काला बाजारी बड़े स्तर पर हो रही है। यह नीतीश कुमार की विफलता ही है कि शराब तो बंद नहीं हुआ, लेकिन उस पर प्रतिबंध लगाने के कारण कालाबाजारी और नकली शराब का कारोबार अवश्य चरम पर पहुंच गया। इससे समाज को नुकसान को हो ही रहा है, साथ ही लोगों की जान भी जा रही है जिसका हमें प्रत्यक्ष प्रमाण देखने को मिला है। बिहार में शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार ने हमेशा अपनी पीठ ठोकी है। इसके चलते एक बड़ा महिला वर्ग उन्हें वोट भी देने लगा, परंतु अब यही कई लोगों के परिवारजनों की मृत्यु का कारण बन रहा है।

लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी बिहार में शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार को चेताया था। शराबबंदी के कारण शराब की तस्करी और रोजगार के अभाव में युवाओं का इस तरफ आकर्षण बढ़ना प्रमुख समस्या है। ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार को इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है लेकिन बावजूद इसके इतने वर्षों से इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी। नीतीश कुमार बिहार को उस गर्त में ले जा चुके हैं, जहां से इस राज्य को निकालने में कई दशक लग जाएंगे! स्वयं को सुशासन बाबू का तमगा दिये बैठे नीतीश कुमार ने इस राज्य के लिए कई बुरे निर्णय लिए हैं, लेकिन गौर किया जाए तो उसमे सबसे ऊपर शराबबंदी ही आएगा!

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