बीते दिन शुक्रवार को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने का ऐलान किया। जिसके बाद से ही सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है। लगभग 1 साल तक इस कानून को बनाए रखने के बाद एकाएक चिर निद्रा से जागते हुए मोदी सरकार ने यह फैसला लिया, उसके बाद से सरकार की जमकर थू-थू हो रही है। देश का एक बहुसंख्यक वर्ग और देश के असली किसान, सरकार द्वारा कानून वापस लेने के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं। आईटी सेल के बहादुरों की मानें तो पीएम का यह फैसला भी मोदी सरकार का मास्टरस्ट्रोक है, लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल परे है। मिला जुलाकर देखें तो यह कथित तौर पर एक स्वार्थी राजनीतिक दल की हार है! सरकार के इस फैसले के बाद अब इस बात पर चर्चा तेज हो गई है कि देश के असली किसान दिल्ली की सड़कों पर कानून वापस लेने के विरोध में आंदोलन कर सकते हैं।
घाटे में जाएंगे अब देश के असली किसान
अप्रत्यक्ष रूप से कथित तौर पर भीड़तंत्र के प्रति संवेदनशील रहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार और झटके के लिए तैयार रहना होगा, क्योंकि जिस कृषि कानूनों को नकली और पूंजीपति किसानों के दबाव में वापस लिया गया है, असल में वह 95% असली किसानों को उचित मूल्य और फायदा दिला रहा था। लेकिन मोदी सरकार के इस कदम ने मिट्टी पलीद कर दी है। देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, चुनावों के मद्देनजर मोदी सरकार ने भले ही ऐसा फैसला ले लिया हो, लेकिन असली किसान जो खेती कर रहे है, जो रोजी-रोटी के लिए खेत पर निर्भर है, वो अब नुकसान और घाटे में जाऐंगे।
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इसी मामले पर TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट करते हुए कहा, “कृषि विधेयकों को वापस लेना मोदी सरकार का अब तक का सबसे खराब काम है।
3 बातें जो सामने आई हैं-
- सरकार भीड़तंत्र के प्रति संवेदनशील है
- असली किसान ही असल में हारे हुए हैं, क्योंकि कानून उनके लिए फायदेमंद थे
- सिख तुष्टीकरण से काम नहीं चलेगा और यूपी में बीजेपी का कमजोर होना तय है।
दुखद दिन।”
Agri Bills rollback is the worst thing Modi government ever did.
3 takeaways:
1. The government is susceptible to mobocracy
2. Real farmers are the real losers because the laws were beneficial for them
3. Sikh appeasement won’t work and BJP is bound to get weak in UP.Sad day.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) November 19, 2021
किसानों को लाभ मिलना शुरु हो गया था
बताते चलें कि किसानों को इस कानून से एक नया विकल्प मिला था। जहां उन्हें APMC (कृषि उपज बाजार समिति) बाजार के बाहर अपनी उपज बेचने की आजादी थी। किसान अपनी उपज राज्य के भीतर या देश में कहीं भी बेच सकते थे और इस प्रकार के व्यापार पर कोई प्रतिबंध भी नहीं होता। इससे किसानों को लाभ होता और वो कहीं भी अधिक कीमत प्राप्त करते। एपीएमसी मंडी के बाहर व्यापार क्षेत्र में किसानों की कृषि उपज खरीदने के लिए व्यापारियों को किसी भी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि पैन कार्ड या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य दस्तावेज रखने वाले भी इस व्यापार में शामिल हो सकते थे। ऐसी तमाम चीजें थी, जिसका लाभ किसानों को मिलना शुरू हो गया था, लेकिन अब राजनीतिक लाभ के चक्कर में सबकुछ तबाह हो गया है।
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सरकार के इस फैसले के बाद इस बात की संभावनाएं बढ़ गई हैं कि अब असली किसान सामने आकर विरोध प्रदर्शन शुरु कर सकते हैं, क्योंकि अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के चक्कर में भाजपा ने बहुत से लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा पैदा कर दिया गया है! संभवतः यह भीड़ जो आक्रोशित होगी, उन्हें यह बखूबी पता चल गया है कि भीड़ के दमपर कुछ भी हो सकता है, वे अब दिल्ली के सड़को पर फिर से छोटा कस्बा बनाकर बैठ जाएंगे। सरकार तो वैसे भी भीड़तंत्र की आदि हो चुकी है, उनकी मांग को पूरा करने के चक्कर में फिर नया बवाल खड़ा कर देगी!