मानव जीवन में जिम्मेदारियों का अहम महत्व होता है, जब आप एक जिम्मेदार संस्था में कार्यरत हों तब आपकी कई ऐसी जिम्मेदारियां होती हैं जिसे पूर्ण करने के लिए आप बाध्य होते हैं। जिम्मेदारी अपने साथ ताकत लेकर आती है, इस बात से हम सब भली-भांति परिचित हैं किन्तु यहां समस्या है कि भारत में लोग अपने पदों का उपयोग जनता के लाभ के लिए कम करते हैं। वहीँ कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी जिम्मेदारियों से परिचित होकर जनता के हित में काम करते हैं। NCPCR के प्रमुख प्रियंक कानूनगो ऐसे लोगों में से एक हैं, जो अपनी निष्ठा और जनता के प्रति जवाबदेही देकर यह सुनिश्चित करते हैं कि राष्ट्रीय महत्व के विभाग सिर्फ चाटूकारिता तक ही सीमित ना रहे। वो जनता और समाज के हित में अपने कर्तव्यों का प्रभावी ढ़ंग से निर्वहन कर रहे हैं।
कौन हैं प्रियंक कानूनगो ?
प्रियंक कानूनगो इस समय राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के प्रमुख हैं। आपको बता दें कि NCPCR संसद के एक अधिनियम बाल अधिकार संरक्षण आयोग (CPCR) अधिनियम 2005 द्वारा स्थापित एक भारतीय वैधानिक निकाय है।
आपको पश्चिमी आधुनिकता से परिपूर्ण NCERT का टीचिंग मैन्युअल याद होगा, जिसे लेकर पूरे देश में NCERT की आलोचना की गयी थी। उसके बाद, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने अपने लिंग अध्ययन विभाग के तीन वरिष्ठ संकाय सदस्यों में से दो का स्थानांतरण कर दिया था, जिन्होंने स्कूलों में ट्रांसजेंडर बच्चों को शामिल करने पर पहला शिक्षण मैनुअल विकसित करने में मदद की थी।
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NCPCR के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो का काम करने का तरीका है बेहद शानदार!
गौरतलब है कि 2 नवंबर को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने NCERT को मिली एक शिकायत पर अपनी टिप्पणी मांगने के लिए एक नोटिस जारी किया था। प्रोफेसर मोना यादव, जो विभाग का नेतृत्व कर रहीं थी और प्रोफेसर पूनम अग्रवाल जो वर्ष 2015-18 के बीच HOD थी, को क्रमशः विशेष आवश्यकता वाले समूहों के शिक्षा विभाग और केंद्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान में स्थानांतरित कर दिया गया है।
आपको बताते चलें कि NCERT की प्रशिक्षण नियमावली का उद्देश्य “शिक्षकों को लैंगिक मामलों के विभिन्न पहलुओं के बारे में संवेदनशील बनाना है, जो ट्रांसजेंडर बच्चों को केंद्र स्तर पर रखते हैं।”
अन्य सुझावों के अलावा, NCERT प्रशिक्षण नियमावली ने सुझाव दिया था कि शिक्षक बच्चों के लिए यौवन अवरोधक (बच्चों में यौवन को स्थगित करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं) की सिफारिश करें। मालूम हो कि यौवन अवरोधक दवाएं बच्चों के शारीरिक विकास को रोकने का काम करती हैं। इसके प्रभाव अक्सर स्थायी होते हैं और इससे अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।
हालांकि, इस मुद्दे पर NCPCR ने जो प्रहार किया है, उससे वोक जनता जल भुन गई है। यह पहली बार नहीं है कि इतने मुखर तरीके से NCPCR काम कर रहा है। प्रियंक कानूनगों की अध्यक्षता में यह काम लम्बे समय से हो रहा है।
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देशहित में NCPCR के कामों की हो रही है सराहना
ट्विटर विवाद
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) के रडार पर अब ट्विटर भी आ चुका है। ट्विटर जैसे मंच पर चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री की उपलब्धता को लेकर ट्विटर के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज नहीं करने के मामले में आयोग ने तो दिल्ली पुलिस की साइबर सेल तक को स्थानांतरित कर दिया है। एक समय में, जब माइक्रोब्लॉगिंग प्लेटफॉर्म ट्विटर और इसकी परेशानियां लगातार बढ़ रही थी, तब NCPCR ने ट्विटर इंडिया के विरूद्ध झूठ बोलने और झूठी जानकारी देने के लिए प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की थी।
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मदरसा विवाद
इसी वर्ष NCPCR ने 23,487 अल्पसंख्यक स्कूलों के राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के आधार पर 10 अगस्त को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। ऐसा करके NCPCR अल्पसंख्यक संस्थानों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया था।
“अल्पसंख्यक समुदायों में बच्चों की शिक्षा पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21A के संबंध में अनुच्छेद 15 (5) के तहत छूट का प्रभाव” नामक रिपोर्ट को देश में अल्पसंख्यक स्कूलों के मूल्यांकन के लिए एक डॉक्यूमेंट तैयार किया गया था। NCPCR ने सरकार को इन स्कूलों को शिक्षा के अधिकार (RTI) और सर्व शिक्षा अभियान दोनों के अंतर्गत लाने का सुझाव दिया था। “
नेटफ्लिक्स विवाद
कैजुअल सेक्स में लिप्त नाबालिगों के अलावा नेटफ्लिक्स अब नाबालिग बच्चों में ड्रग कल्चर को सामान्य करने का काम रहा है। नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध सीरीज ‘बॉम्बे बेगम‘ में बच्चों को नशा करने वाले और नासमझ चित्रित किया गया है।
हालांकि, 2021 का भारत ऐसे असामाजिक सामग्री निर्माताओं और प्रकाशकों की लंबी श्रृंखला से थक गया है, यही कारण है कि NCPCR ने इस मुद्दे को संज्ञान में लेते हुए बॉम्बे बेगम की स्ट्रीमिंग को शीघ्र रोके जाने के लिए कहा है।
ऑल्ट न्यूज़ कांड
AltNews के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर द्वारा twitter पर की गई एक पोस्ट को हटाने से नकारने के बाद, NCPCR ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनका ट्वीट विभिन्न कानूनों का उल्लंघन करता है और इसे हटाये जाने की आवश्यकता है। इस मामले पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली पुलिस ने NCPCR प्रमुख प्रियंक कानूनगों की शिकायत पर अगस्त 2020 में जुबैर के विरूद्ध मामला दर्ज किया था।
अन्य आयोगों को NCPCR के काम करने के ढ़ंग से सीख लेने की जरुरत है
प्रियंक कानूनगों ने बार-बार यह सिद्ध करके दिखाया है कि व्यवस्था को सुचारू रूप से कैसे संचालित करते हैं। उनके निर्देशन में जिस तार्किकता को आधार बनाकर काम हो रहा है, वह प्रशंसनीय है। भारत के अन्य आयोग जो दलाली का अड्डा बनकर सीमित रह गए हैं, उन्हें प्रियंक कानूनगो और NCPCR के काम करने के ढ़ंग से सीख लेने की जरुरत है।