राहुल द्रविड़-रोहित शर्मा की जोड़ी ने स्टाइल में स्थापित किया अपना दबदबा

आरंभ है प्रचंड!

द्रविड़ और रोहित

रिकी पोंटिंग और जॉन बुकानन, सौरव गांगुली और जॉन राइट तथा एमएस धोनी और गैरी किर्स्टन, ये जोड़ियां हैं, उन कप्तान और कोच की जिन्होंने अपनी टीम को स्वर्णिम दौर दिया। अब लगता है कि भारत एक बार फिर से रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ की जोड़ी के साथ स्वर्णिम युग में प्रवेश करने को तैयार है। इसकी कहानी न्यूज़ीलैंड के साथ समाप्त टी20 सीरीज की बेहतरीन अंत के साथ अरांभ हुई है।

बीते दिन रविवार को समाप्त हुए न्यूज़ीलैंड के साथ तीन T20 मैचों की सीरीज में भारत ने 3-0 से शानदार क्लीन स्वीप किया। यह जीत रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ के स्थायी टी20 कप्तान और कोच के पद पर नियुक्ति के बाद आई है। तीसरे और आखिरी मैच में पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने कप्तान रोहित शर्मा के 31 गेंदों में 56 रन और ईशान किशन ने 21 गेंदों में 29 की मदद से 184/7 रन बनाए। 185 रन के लक्ष्य का पीछा करने उतरी न्यूजीलैंड के रन-चेज़ को अक्षर पटेल (3/9) ने तीन विकेट लेकर खराब कर दिया। कीवी टीम इस झटके से उबर नहीं पाई और अंतत: 111 रन पर आउट हो गई। इससे पहले के दोनों T20 मैच भारत ने जीते थे।

इस सीरीज में जीत की समीक्षा करें, तो कई तथ्य सामने आते हैं। विश्व कप से बाहर होने के बाद टीम का मनोबल नीचे था। यह वही टीम है, जो टी20 विश्व कप 2021 से बाहर हो गयी थी। दोनों टूर्नामेंटों के दौरान टीम को देखें, तो मुख्य अंतर यह था कि विराट कोहली न्यूजीलैंड के खिलाफ टीम से अनुपस्थित थे।

ऐसे में टीम को एकजुट करते हुए उस टीम के खिलाफ क्लीनस्वीप करना जिसने विश्वकप में मात दी हो, टीम और कप्तानी दोनों की प्रतिबद्धता और प्रबंधन को स्पष्ट करता है। और दोनों ही पदों की ज़िम्मेदारी ऐसे व्यक्तित्वों के पास है, जिन्हें अपने क्रिकेट और रणनीति के लिए अधिक जाना जाता है न कि ऐक्टिविजम के लिए।

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अश्विन पर भरोसा

सीरीज की खास बात यह रही कि रोहित और द्रविड़ ने आर अश्विन पर पूरा भरोसा दिखाया और उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का पूरा मौका दिया। विराट कोहली द्वारा कई वर्षों तक अश्विन को क्रिकेट के इस छोटे फॉर्मेट से बाहर कर दिया गया था, लेकिन रोहित शर्मा की वजह से उनका विश्वकप में चुनाव हुआ और अब इस सीरीज में खुल कर गेंदबाजी करने का मौका मिला।

उन्होंने अश्विन को योजना के अनुसार अपना क्षेत्र निर्धारित करने और गेंदबाजी करने की अनुमति दी। अश्विन का 14 का औसत रोहित की कप्तानी का प्रमाण है। इसके अलावा, रोहित शर्मा, अश्विन के क्रिकेटिंग दिमाग का उपयोग फील्डिंग और अन्य रणनीतियों के लिए कर रहे थे। सीरीज जीतने के बाद उन्होंने स्पष्ट कहा कि “वह एक बेहतरीन गेंदबाज है, यह हम सभी जानते हैं। और अब जिस तरह से उसने दुबई में वापस आकर गेंदबाजी की है और यहां के दो मैचों में, यह उसकी गुणवत्ता को दर्शाता है।” उन्होंने कहा कि वह (अश्विन) अपने कप्तान के लिए हमेशा आक्रामक विकल्प होते हैं। जब आपके पास टीम में उनके जैसा कोई होता है, तो यह आपको हमेशा विकेट लेने का मौका देता है।

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स्थिर सलामी जोड़ी

सहवाग के संन्यास के बाद से रोहित और धवन की जोड़ी ने भारतीय टीम को स्थिरता प्रदान की थी, लेकिन धवन के आउट ऑफ फॉर्म होने के बाद से भारत की ओपनिंग जोड़ी भी डगमगाने लगी। विराट कोहली को रोहित के लिए उपयुक्त साथी नहीं मिला और उन्होंने रोहित के साथ जोड़ी बनाने के लिए अलग-अलग खिलाड़ियों को आजमाया। उन्होंने के एल राहुल, ईशान किशन और स्वयं खुद को आजमाया था। हालांकि कोहली की चॉप एंड चेंज पॉलिसी की वजह से कोई भी खिलाड़ी ओपनिंग स्लॉट में अपना स्थान पक्का नहीं कर पाया।

जैसे ही द्रविड़ और रोहित ने कार्यभार संभाला, उन्होंने के एल राहुल को ओपेनिंग स्लॉट पर स्थायी कर दिया। ईशान किशन ने तब ओपनिंग की, जब के एल राहुल तीसरे मैच में आराम कर रहे थे।

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बदली टीम की संस्कृति

रवि शास्त्री और विराट कोहली की नीतियों के कारण हुई टीम में अनुशासनहीनता अपने चरम पर थी, जिसका असर टीम इंडिया के प्रदर्शन पर पड़ा। वरिष्ठ खिलाड़ियों और प्रबंधन के प्रति खिलाड़ियों के मन में सम्मान खो रहा था। हालांकि, अब यह संस्कृति बदलने जा रही है और रोहित और द्रविड़ इसे बदल रहे हैं। जब अनिल कुंबले टीम के कोच थे, तो उन्होंने एक ऐसी संस्कृति शुरू की थी, जिसमें पदार्पण करने वाले खिलाड़ी को केवल पूर्व खिलाड़ी द्वारा उपनी पहली कैप दी जाती थी। हालांकि, शास्त्री-कोहली के दौर में ऐसा होना बंद हो गया था।

अब द्रविड़ और रोहित ने हर्षल पटेल को दिग्गज अजीत अगरकर से कैप दिलवाकर इस संस्कृति को वापस से शुरू किया है। इससे एक संदेश भी गया है कि भारतीय टीम के पुराने खिलाड़ियों को भुला नहीं जाएगा और उनका सम्मान किया जाएगा। इस तरह के सकारात्मक संदेश नए खिलाड़ियों के मनोबल को बढ़ाते हैं।

ऐसा लगता है कि इन दोनों के नेतृत्व में एक बार फिर से भारत का वही स्वर्णिम दौर आने वाला है, जो सौरव गांगुली और जॉन राइट तथा एमएस धोनी और गैरी किर्स्टन के दौर में था।

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