पूर्वोत्तर भारत की Extortion Industry जिसके बारे में बात करने से राष्ट्रीय मीडिया भी डरता है

असम, मेघालय, नगालैंड में एक्टिव हो रहा है वसूली माफ़िया

पूर्वोत्तर जबरन वसूली

पिछले कुछ समय में पूर्वोत्तर राज्यों का चहुमुखी विकास हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा लगातार इनफ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा रहा है। इससे इन राज्यों की कई समस्याओं का निदान हुआ है और कई समस्याओं का निदान होगा। हालांकि, अब भी कई समस्याएँ हैं जिनका निस्तारण आवश्यक है। इन समस्याओं में से सबसे प्रमुख है extortion industry यानी जबरन वसूली का कार्टेल। इस समस्या पर न तो कभी प्रकाश डाला जाता है और न कही कभी कोई मीडिया हाउस मुद्दा बनता है।

उग्रवादी संगठनों के अलावा ज्यादातर गैर-सरकारी संगठनों के रूप में स्व-घोषित कई समूहों द्वारा पूर्वोत्तर में जबरन वसूली कम रिपोर्ट की गई, लेकिन सच्चाई है।

राष्ट्रीय मीडिया की ओर से कोई ध्यान न दिए जाने के कारण, कई समूहों का पूर्वोत्तर में दशकों से प्रसार हुआ है। ध्यान देने वाली बात यह है कि उनमें से लगभग सभी खुद को ‘NGO’ के रूप में संदर्भित करते हैं। कुछ संगठन तो खुद को “Pressure Group” कहना पसंद करते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि यह NGOs उग्रवादी समूहों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। देखा जाए तो ये ही उग्रवादी समूह पूर्वोत्तर भारत के जबरन वसूली उद्योग के कर्ता-धर्ता हैं, जिनमें से सभी को उनका हिस्सा मिलता है।

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असम

असम राज्य में, जबरन वसूली उतनी ही बड़ी समस्या है जितनी पूर्वोत्तर के अन्य हिस्सों में है। जोरहाट के एक हालिया वायरल वीडियो से विभिन्न समूहों की असम में व्यवसायों से जबरन वसूली की वास्तविकता उजागर हुई थी। यदि व्यवसाय या उद्यम एक गैर-असमिया द्वारा चलाया जाता है, तो उनसे जबरन वसूली अनिवार्य हो जाती है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि पूर्वोतर के सभी राज्यों में, आदिवासी-गैर आदिवासी का विभाजन कई स्तर पर व्याप्त है। असम में इसी विभाजन का फायदा जबरन वसूली करने वाले समूह उठाते हैं।

कुछ दिनों पहले ही “वीर लचित सेना” के गुंडों ने असम के जोरहाट में एक व्यवसायी से जबरन वसूली की कोशिश की थी। दुख की बात है कि जिला प्रशासन या पुलिस ऐसे मामलों के प्रति अपने दृष्टिकोण में बहुत कमजोर रही है। अब मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि असम में रंगदारी या extortion industry को तुरंत समाप्त किया जाए। यदि इस समस्या को अभी समाप्त नहीं किया गया, जब भाजपा राज्य में सबसे मजबूत स्थिति में है, तो राज्य से जबरन वसूली करने वाले समूहों का उन्मूलन कभी नहीं हो सकता है।

यह किसी से छुपा नहीं है कि कैसे उल्फा, अपने तरीके से किसी भी व्यक्ति से जबरन वसूली करता है। यही कारण है कि पूर्वोतर के राज्यों में भारी उद्योगों की कमी है। अगर विकास करना है तो भारी उद्योगों की स्थापना महत्वपूर्ण है और उनके लिए सकारात्मक माहौल बनाने के लिए इस जबरन वसूली वाले उद्योग पर रोक लगानी होगी।

मेघालय

क्रिसमस का मौसम आ रहा है, और इसका मतलब है कि Pressure Group मेघालय में व्यापारिक समुदाय से, विशेष रूप से राजधानी शहर शिलांग में, जबरन वसूली के जरीय धन उगाहने के लिए तैयार हो रहे हैं। 80 और 90 के दशक में, जबरन वसूली के रैकेट का नेतृत्व गैरकानूनी उग्रवादी संगठन, HLNC ने किया था।

हालांकि, HLNC अब काफी कमजोर हो गया है, खासकर पिछले एक दशक में। मेघालय पुलिस द्वारा HNLC के पूर्व नेता Cheristerfield Thangkiew को मार गिराए जाने के बाद और हाल ही में शिलांग के बीचों-बीच संगठन द्वारा किए गए बम विस्फोट के साथ, यह समूह राज्य में फिर से अपना फन उठाने की कोशिश कर रहा है।

ऐसे में संगठन को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होगी, और निश्चित रूप से यह राज्य के व्यापारियों से ही आएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य के व्यापारियों को Ethnicity के नाम पर लक्षित किया जाता है। यही नहीं मेघालय में, छात्र संघों द्वारा जबरन वसूली की जाती है। यह आरोप लगाया जाता है कि सरकार को भी इस तरह के जबरन वसूली के पैसे का उचित हिस्सा मिलता है।

नगालैंड

देखा जाए तो पूर्वोत्तर में प्रत्यक राज्य की स्थिति गंभीर है। विडंबना यह है कि पूर्वोत्तर के आदिवासियों को आयकर का भुगतान नहीं करना पड़ता है, जबकि नागालैंड के उग्रवादी, विशेष रूप से NSCN-IM उस क्षेत्र में लगभग समानांतर टैक्स सिस्टम चलाते हैं, जिसे वे ‘नागालिम’ कहते हैं। इसलिए वे न केवल नागालैंड राज्य के भीतर, बल्कि मणिपुर और असम में भी जबरन वसूली करते हैं।

NSCN के दो गुट; IM और खापलांग गुट, दोनों क्रमशः 25 और 24 प्रतिशत की दर से लोगों (नागा और गैर-आदिवासी समान) से कर एकत्र करते हैं, जिससे इनकार करने पर भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

ऐसे समूहों की उपस्थिति के कारण ही कई राजमार्ग विकास परियोजनाओं के खिलाफ विरोध देखा गया। राजमार्ग विकास परियोजनाएं, इन समूहों के मौद्रिक हितों के लिए हानिकारक है। भारतीय सेना के मुताबिक नागालैंड में बिना किसी भेदभाव के सभी से टैक्स वसूला जाता है। इस साल जुलाई में इंडिया टुडे को एक भारतीय सेना अधिकारी ने बताया कि, “विद्रोही समूहों – मुख्य रूप से NSCN-KYA और NSCN-IM ने प्रति वर्ष प्रत्येक दुकान से 500-1,000 रुपये, ठेकेदारों से स्वीकृत राशि का 2-10 प्रतिशत प्रति वर्ष, प्रति वाहन 3,000-5,000 रुपये और प्रति परिवार 300-500 रुपये प्रति वर्ष का ‘कर’ लगाया है।”

अधिकारी ने बताया कि, “अगर रंगदारी की रकम नहीं चुकाई गई तो लोगों को अपहरण की धमकी दी जाती है। विद्रोही समूह मानसून की शुरुआत से पहले अधिकतम जबरन वसूली या कर संग्रह करने का इरादा रखते हैं।”

अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर

पूर्वोत्तर में, विशेष रूप से भारत-म्यांमार सीमा पर अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड में, उग्रवादी समूहों द्वारा जबरन वसूली और अवैध कर संग्रह के मामलों में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड -19 महामारी के कारण प्रमुख वित्तीय संकट के बाद विद्रोही समूहों ने अपनी जबरन वसूली गतिविधियों में वृद्धि की है। इससे पूरे पूर्वोत्तर में ऐसे समूहों द्वारा जबरन वसूली के मामलों में वृद्धि हुई है।

जब अरुणाचल प्रदेश की बात आती है, तो Tirap, Changlang, और Longding जिले में कोयले और लकड़ी की उपस्थिति के कारण विद्रोही समूहों के लिए पैसे की उगाही वाले मैदान हैं। यहां, ट्रांस-अरुणाचल राजमार्ग परियोजनाओं में लगे ठेकेदार जबरन वसूली के मुख्य निशाने पर रहते हैं। नागा उग्रवादी संगठनों द्वारा जबरन वसूली पड़ोसी राज्य मणिपुर में भी की जाती है, क्योंकि राज्य में नगा आबादी काफी है।

पूर्वोत्तर भारत में जबरन वसूली रैकेट में योगदान देने से इनकार करने पर कई व्यवसायियों को या तो मार दिया गया, या उन पर हमला किया गया  है। अधिकतर व्यवसायी केवल खुद को और अपने प्रियजनों को जीवित रखने के लिए इन संगठनों की मांग को मनाने के लिए बाध्य होते हैं।

पैसा ही विचारधारा है, पैसा कारण है, और पैसा ही है जो आज तक पूर्वोत्तर भारत में सभी Pressure Group और जबरन वसूली समूहों के कामकाज को वैध बनाता है। अफसोस की बात है कि पूर्वोत्तर की यह कहानी हमारे देश के राष्ट्रीय मीडिया का हिस्सा नहीं है।

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