अरुणाचल प्रदेश का वो रणनीतिक शिखर जिसे हर स्थिति में जीतना चाहता है चीन

नितांत आवश्यक है चीन को सबक सिखाना!

अरुणाचल प्रदेश एलएसी

Source- Google

लगभग चार हफ्ते पहले भारतीय और चीनी सैन्य गश्ती दल अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर घंटों एक-दूसरे के खिलाफ आमने-सामने खड़े रहे। दोनों देशों के बीच विवाद की हड्डी थी, 17,000 फीट ऊंची उस चोटी पर नियंत्रण करना, जो सीमा के दोनों ओर कमांडिंग व्यू प्रदान करती है। भारतीय सेना पहले से ही इस चोटी पर नियंत्रण बनाए हुए है। सीमा के दोनों ओर के कमांडिंग व्यू का अर्थ यह है कि भारतीय सेना उस चोटी से ना सिर्फ चीनियों के किसी प्रकार के अतिक्रमण को नाकाम कर सकती है, बल्कि समयपूर्व  कर सकती है। ऊंचे स्थलों पर नियंत्रण का सामरिक महत्व हमें 1984 के सियाचिन युद्ध और 1999 के कारगिल यद्ध  में समझ में आया। कुछ हद तक 1962 के चीन के विश्वासघात को छिपाने में भी इसकी भूमिका रही। एक बड़े सैन्य ऑफिसर के कथनानुसार अगर हजारों फीट ऊंचाई पर बैठा दुश्मन एक पत्थर भी फेंकेगा, तो वह गोली के समान लगेगी।

इसी महत्व को समझते हुए अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास चीनियों द्वारा एक 17000 फीट ऊंची चोटी को कब्जाने का प्रयास भारतीय सेना द्वारा ना सिर्फ विफल कर दिया गया, बल्कि उस चोटी पर अपने नियंत्रण को और मजबूत कर लिया गया है। ये चीनी भी यदा कदा भारतीय सेना का रिहर्सल कराते रहते है। इस वजह से ना सिर्फ ये मार खाते है, बल्कि हम अपनी सुरक्षा और रणनीतियों को और चौकस कर लेते हैं। आपको याद होगा कि गलवान संघर्ष के दौरान भारतीय सेना ने कैसे रणनीतिक लिहाज से अहम ब्लैक टॉप को अपने नियंत्रण में ले लिया था।

और पढ़ें: अपने ही जीपीएस ‘BeiDou’ को चीन ने कहा गुडबाय, उसे डर है कि भारत सेंध लगा सकता है!

सामरिक मूल्य

अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साथ स्थित इस शिखर का अत्यधिक सामरिक महत्व है। यह सीमा के दोनों ओर कमांडिंग व्यू प्रदान करता है। खबरों के मुताबिक इस शिखर को चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने कब्जाने का लक्ष्य बना रखा है। हाल के तनाव के दौरान जब PLA ने तवांग से 35 किमी उत्तर पूर्व में यांग्त्से नामक क्षेत्र में घुसपैठ का प्रयास किया, तो उसे भारतीय सेना के एक पेट्रोलिंग दल से मुंह की खानी पड़ी। चीनी सैनिक चोटी के शीर्ष तक पहुंचने वाले मार्गों में से एक के करीब आ गए थे। परन्तु, भारतीय सेना द्वारा इस प्रयास को विफल कर दिया गया। यह क्षेत्र अब बर्फ में है और मार्च तक ऐसा ही रहेगा।

अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साथ स्थित इस स्थान का रणनीतिक महत्व इतना ज्यादा है कि भारतीय सेना और पीएलए, दोनों ने यांग्त्से क्षेत्र के दोनों ओर 3,000-3,500 जवानों को सुरक्षा पर लगाया है। इन इलाकों पर मानव रहित हवाई वाहन अर्थात ड्रोन नज़र रखते हैं और लंबी दूरी के सेंसर वास्तविक समय की छवियां प्रदान करते हैं। गश्ती दलों का मुकाबला करने के लिए दोनों पक्षों के पास LAC के साथ सड़कों और पटरियों का एक नेटवर्क भी है।

यह शिखर LAC के पार तिब्बत का एक कमांडिंग दृश्य प्रदान करता है। भारतीय सेना शीर्ष पर और चीनी सैनिकों के पहुंच मार्गों पर अपनी ओर से नियंत्रण बनाए हुए है।  यांग्त्से क्षेत्र भी इसके व्यापक “कमांडिंग व्यू” क्षेत्र का हिस्सा है, जिसे सैन्य शब्द ‘मागो-चुना’ कहते हैं। नूरानांग नदी जो तिब्बत से भारत में बहती है, वो भी इस पर्वत के निकट ही स्थित है।

औेर पढ़ें: 80 प्रतिशत चीनी मिसाइल हो सकती हैं ‘फुस्स’, अब चीनी रक्षा कान्ट्रैक्टर्स को भी संशय!

नितांत आवश्यक है चीन को सबक सिखाना 

बताते चले कि गश्ती दल साल में कई बार आमने-सामने आते हैं, क्योंकि चीन का साम्यवादी और साम्राज्यवादी शासन तंत्र इस जगह की रणनीतिक महत्ता को देखते हुए उसे कब्जाने का आदेश देता रहता है, पर भारतीय सेना के शौर्य के आगे उसे खाली हाथ लौटना पड़ता है । मार पड़ती है वो अलग! उसके बाद स्थिति को स्थापित प्रोटोकॉल और दोनों पक्षों की आपसी सहमति के हिसाब से प्रबंधित किया जाता है।

इस  शिखर का इतना महत्त्व है  कि यह चीन के संदर्भ में भारत के लिए सियाचिन का काम कर सकता है। चीन यह जनता है इसीलिए कुलबुलाया हुआ है! समीकरण देश के पक्ष में झुकी रहे, भारतीय सेना ये सदा सर्वदा सुनिश्चित करेगी। परन्तु, चीन की इस निरंकुश सत्ता और साम्राज्यवादी सेना को  सबक सिखाना भी नितांत आवश्यक लगता है।

Exit mobile version