“हर महीने 1-2 किलो मांस खाने के बजाय, आधा किलो खा लें। हम 2 किलो टमाटर खरीदते हैं और उनमें से आधे कूड़ेदान में चले जाते हैं। ठीक है, चलो 2 टमाटर लेते हैं।” ये कथन तुर्की के सांसद ज़ुल्फ़ु डेमिरबास के हैं, जो राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन की एकेपी पार्टी से संबंधित हैं। उन्होंने यह बयान तुर्की की करेंसी लीरा के पूर्ण पतन और आर्थिक संकट के आलोक में दिया है। एर्दोगन आलोचकों और सलाहकारों की आलोचना एवं सलाह के बीच लीरा के पतन को रोकने की नाकाम कोशिश कर रहें हैं।
शीर्ष अधिकारियों और विश्लेषकों के अनुसार, राष्ट्रपति एर्दोगन (R.T. Erdogen) द्वारा विपक्षियों, सलहकारों और यहां तक कि अपनी सरकार के भीतर से भी नीति को उलटने की अपीलों को नजरअंदाज करने के बाद तुर्की मुद्रा “लीरा” की यह हालत हुई है। इस गिरावट ने तुर्की को एक गहरे आर्थिक संकट की ओर धकेल दिया है, जहां से निकलना लगभग असंभव प्रतीत होते दिखे रहा है।
तुर्की मुद्रा ‘लीरा’ ऐतिहासिक रूप से निम्नतम स्तर पर पहुंच चुकी है। CNBC के अनुसार, तुर्की में मुद्रास्फीति अब 20 फीसदी के करीब है, जिसका अर्थ है कि बुनियादी वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं और तुर्की की स्थानीय मुद्रा का गंभीर रूप से अवमूल्यन हो रहा है।
और पढ़ें: तुर्की से टूटा याराना तो कटोरा लेकर सऊदी के दरवाजे पहुंचा पाकिस्तान
विरोध का दमन करते एर्दोगन
तुर्की सरकार ने एर्दोगन की आर्थिक नीतियों के खिलाफ तुर्की के विभिन्न हिस्सों में हुए विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए क्रूर उपाय किए हैं। बीते बुधवार को यह खबर सामने आई कि पुलिस ने राजधानी की सड़कों पर चल रहे विरोध प्रदर्शन को बलपूर्वक कुचल दिया। प्रदर्शनकारी शहर के एशियाई हिस्से में स्थित इस्तांबुल के कदिकॉय जिले में इकट्ठा होना शुरू कर रहे थे, जब पुलिस ने हस्तक्षेप किया। खबरों की मानें तो प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे और राष्ट्रपति एर्दोगन से इस्तीफे की मांग कर रहे थे। जिसके बाद पुलिस ने बैरिकेड्स लगा कर प्रदर्शनकारियों को खदेड़ दिया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक बीते बुधवार को हुए विरोध प्रदर्शन में 30 लोगों को हिरासत में लिया गया था। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, “लोगों को घृणा के लिए उकसाने और सड़कों पर नागरिकों को हिंसा का उपयोग करने के लिए तुर्की में सैकड़ों सोशल मीडिया खातों को बंद कर दिया गया है।” आपकों बता दें कि विगत 2 वर्षों में केन्द्रीय बैंक के 2 अधिकारियों को एर्दोगन ने हटा दिया, क्योंकि उन्होंने एर्दोगन के मनमाने नीतियों को लागू करने से मना कर दिया था।
और पढ़ें: तुर्की के पर कतरने के लिए भारत ने निकाला “आर्मेनिया नामक अस्त्र”
कट्टरता की राह पर तेजी से बढ़ रहा है तुर्की
गौरतलब है कि इस कठिन घड़ी में जब अर्थव्यवस्था ढहने की कगार पर है, तब एर्दोगन अपनी नव-तुर्की महत्वाकांक्षाओं के गौरव को बचाने के लिए नए हथियारों के सौदों का विज्ञापन करते दिख रहे हैं। हाल के दिनों में राष्ट्रपति एर्दोगन के शासन ने तुर्की को कट्टरता की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ाया है और तुर्की की धर्मनिरपेक्ष और उदरवादी छवि को तहस-नहस कर दिया है। ये सिर्फ एक कहानी या वैचारिक राय नहीं, बल्कि वास्तविकता है।
उदाहरण के तौर पर देखें तो न्यायिक प्रक्रिया और लोकतांत्रिक ढंग से भारत में मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम का मंदिर बनने पर छाती पिटने वाले तुर्की ने अचानक से बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के विश्व विरासत के प्रतीक हागिया सोफिया संग्रहलाय को चर्च से मस्जिद में परिवर्तित कर दिया। मुस्लिम उम्मत का ख्वाब सजाये तुर्की, अरब से मुस्लिम देशों का नेतृत्व छीनना चाहता है, जिसके कारण वह वैश्विक मंच से भारत के आंतरिक मुद्दों में हस्तक्षेप कर पाकिस्तान का पक्ष लेता दिख रहा है।
बीते दिनों कोरोना में तुर्की ने एतर्दूल नामक काल्पनिक कहानी दिखाई, ताकि जनता के मन में ऑटोमन साम्राज्य और खिलाफत जैसे ढकोसले भर कर उन्हें विकास और लोकतंत्र से अलग किया जा सके। तुर्की, पाकिस्तान और मलेशिया के साथ मिलकर नए मुस्लिम मोर्चे का सृजन भी करना चाहता था। इन्हीं सभी प्रयासों के फलस्वरूप यह देश वैश्विक स्तर पर हंसी का पात्र बन गया और पाक के साथ FATF के ग्रे-लिस्ट में अपनी जगह पक्की करा ली है।
और पढ़ें: कट्टरपंथ इस्लाम एक अर्थव्यवस्था को क्या से क्या बना देता है, तुर्की इस बात का उदाहरण है
निष्कर्ष
जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अधिकार और लोकतंत्र की बात आती है, तो एर्दोगन उदारवादी नहीं लगते। इन सभी कारणों से इतर तुर्की में एक अधिक गंभीर समस्या के सृजित होने के आसार है। बताया जा रहा है कि एर्दोगन एक बार फिर ग्रीस के साथ सीमा पर कुछ उथल-पुथल पैदा कर अपनी घरेलू समस्याओं से लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास कर सकते हैं। मौजूदा समय में तुर्की का सामर्थ्य, भोजन जुटा पाने का नहीं है और स्वप्न दुनिया की महाशक्ति बनने का देख रहा है। इसे मूर्खता नहीं तो और क्या कहेंगे!