तुर्की के राष्ट्रपति ने COP26 का किया बहिष्कार, क्योंकि भारत की ‘विशेष खातिरदारी’ कर रहा था ब्रिटेन

इतनी जलन कहां लेकर जाओगे भाई!

ग्लासगो सम्मेलन

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रस्सी जल गयी पर ऐंठन गयी, यही हालत हो गई है पाकिस्तान के मुंहबोले भाई तुर्की की और उसके राष्ट्रपति R.T Erdogen  की! हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने इस देश को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी FATF की ग्रे लिस्ट में डाल दिया, लेकिन राष्ट्रपति एर्दोगन की अकड़ अभी भी वैसी ही बनी हुई है। यह देश आये दिन भारत को तमाम मुद्दों पर घेरने की कोशिश करते रहता है, यहां तक कि कश्मीर मुद्दे पर भी तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने पाकिस्तान को समर्थन दिया था। अब एक बार फिर भारत के प्रति तुर्की के राष्ट्रपति की कुंठा निकल कर बाहर आई है, लेकिन इस बार मामला थोड़ा अलग है। इस बार समस्या उन्हें भारत से नहीं, बल्कि ग्लासगो सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुई खातिरदारी से हुई है। ग्लासगो सम्मेलन में मोदी, बाइडेन और जॉनसन की जुगलबंदी देखकर एर्दोगन की जलकर खाक हो गई है और अब खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचते हुए मेजबान ब्रिटेन पर पक्षपात का आरोप तक लगा रही है।

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जानें क्या है पूरा मामला?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लासगो शिखर सम्मेलन के दौरान मेजबान ब्रिटेन के लिए एक अजीब सी समस्या तब खड़ी हो गई, जब तुर्की ने ब्रिटेन के सामने एक ‘देश’ को ‘विशेष व्यवहार’ देने का आरोप लगाते हुए विरोध दर्ज करा दिया। तुर्की का इशारा सीधे तौर पर भारत के लिए था और तुर्की ने बैठक के दौरान मेजबान ब्रिटेन के सामने भारत के खिलाफ गुस्सा भी जताया है।

ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन के दौरान जब स्पष्ट रूप से पूरा ध्यान मानवता के सामने खड़ी पर्यावरण की चुनौती और इससे निपटने के प्रयासों की अपर्याप्तता पर केंद्रित था, तब तुर्की अपना अलग ही राग अलापते दिखा।

मामला यह है कि ग्लासगो के पास इतने बड़े वैश्विक कार्यक्रम की मेजबानी करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होने के कारण, ब्रिटेन सरकार ने तमाम राष्ट्रों के प्रतिनिधिमंडलों से होटल साझा करने का आग्रह किया। इसी तरह शासनाध्यक्षों को सम्मेलन स्थल तक ले जाने के लिए बसों की व्यवस्था भी की गई।

हालांकि, ब्रिटेन ने तीन देशों के लिए विशेष इंतजाम किया, जिसमें मेजबान ब्रिटेन, अमेरिका और भारत है। इन तीन देशों को उन होटलों में रहने की अनुमति दी गई, जिन्हें उन्होंने अपने लिए विशेष रूप से बुक किया था। उसके बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक नवंबर को अत्याधुनिक तकनीक से लैस कार में कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे।

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विरोध के कारण कार्यवाही में शामिल नहीं हुए एर्दोगन

खबरों की मानें तो तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन ने प्रोटोकॉल में इस तरह से हो रहे भेदभाव पर नाराजगी जताई है। तुर्की के राष्ट्रपति ने सवाल उठाया कि भारत के विशेषाधिकार प्राप्त व्यवहार को क्या माना जाना चाहिए? बताया जा रहा है कि राष्ट्रपति एर्दोगन ने विरोध के रुप में पूरे कार्यवाही से परहेज किया, जो पहले से ही तनावपूर्ण द्विपक्षीय समीकरणों को और बढ़ा सकता है।

हालांकि, अधिकारियों ने इस विषमता को यह कहते हुए उचित ठहराया कि यह उन प्रयासों की स्वीकृति थी, जो भारत ने हाल ही में जलवायु संकट के संबंध में “समस्या का हिस्सा” टैग को हटाने के लिए किया है। भारत के संकल्प और प्रतिबद्धता को देखते हुए भी यह खास इंतजाम किया गया था।

भारत ने इंटरनेशनल सोलर एलायंस लॉन्च किया है। वहीं, 2015 में पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन के बाद अमेरिका, ग्लासगो सम्मेलन में शामिल हुआ है। इसके साथ ही साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासचिव के क्लाइमेट एक्शन समिट में आपदा नियंत्रण इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए गठबंधन में भी सहमति बनी है।

इसके अलावा पीएम मोदी ने जलवायु और पर्यावरणीय गिरावट के खतरे के खिलाफ लड़ाई के हिस्से के रूप में अपनी तमाम पहल को दृढ़ता से पेश किया है, जिसमें स्वच्छ भारत, उज्ज्वला, नमामि गंगे जैसी योजनाएं शामिल हैं। “शिखर सम्मेलन” के इतर विदेशी नेताओं से पर्याप्त परिचित होने के साथ वैश्विक सर्किट पर एक अनुभवी नेता होने के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सम्मान मिलना ही था।

एर्दोगन को भी चाहिए था फुल इज्जत!

लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को पीएम मोदी की हुई खातिरदारी से ज्यादा ही समस्या हो गई। ग्रे लिस्ट में शामिल तुर्की को भी ग्लासको सम्मेलन में फुल इज्जत चाहिए था, लेकिन हाल के दिनों में तुर्की की करतूतों को देखते हुए कोई भी उसे पूछने तक नहीं आया! दूसरी ओर भारतीय प्रधानमंत्री लोकप्रियता का केंद्र बने बैठे थे। वैश्विक नेताओं के साथ उनकी तमाम तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई, यहां तक कि भारत के प्रस्ताव को स्वीकार भी किया गया। जिसके कारण तुर्की जैसे देशों की हालत पतली होती दिख रही है।

तुर्की के राष्ट्रपति को यह समझने की जरुरत है कि इज्जत जो है, वो बनानी पड़ती है! भीख मांगकर, तमाशा करके नेता बनने से आप देश में राष्ट्रपति तो बन जाएंगे, लेकिन वैश्विक स्तर पर आपको कोई भाव नहीं देगा। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन इसके जीते जागते उदाहरण है। तुर्की काफी पहले से ही भारत को परेशान करते रहा है। देश के आतंरिक मसलों पर भी वहां के राष्ट्रपति जहर उगलते रहते हैं, ऐसे में अब  कूटनीतिक स्तर पर भी भारत ने उनकी बैंड बजा दी है।

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