प्रधानमंत्री मोदी की कुछ योजनाएं वर्त्तमान के लिए होती है और कुछ में दुर्दिष्टता दिखती है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत की वैक्सीन कॉवैक्सिन को सहमति मिलने पर PM मोदी की वैक्सीन डिप्लोमेसी दोबारा प्रमाणित हो गई है।
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने सोमवार को देश में यात्रियों के टीकाकरण की स्थिति स्थापित करने के उद्देश्य से भारत बायोटेक की कोवैक्सिन को मान्यता प्रदान की है। सरकारी बयान में कहा गया कि, “Covaxin की मान्यता, कोविशील्ड (एस्ट्राजेनेका, भारत द्वारा निर्मित) की पूर्व घोषित मान्यता के साथ, भारत के कई नागरिकों के साथ-साथ अन्य देशों में जहां इन टीकों का प्रयोग किया गया है, उन सभी लोगों को अब ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश पर पूरी तरह से vaccinated माना जाएगा।”
इसके अलावा चुप-चाप बिना मास्क पहने PM मोदी ने G20 सम्मेलन में भी सबको सन्देश दे दिया है कि भारत अपने दम पर क्या-क्या कर सकता है!
ऑस्ट्रेलिया से मिली हरी झंडी
ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सीय सामान प्रशासन (TGA) द्वारा मूल्यांकन और अनुमोदन प्रक्रिया के बाद COVID-19 टीकों को उपयोग के लिए अनुमोदित किया जाता है। सरकारी प्रभाव के मद्देनजर इन चीजों पर भी प्रभाव पड़ता है।
सोमवार को भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ फैरेल ने एक ट्वीट में बताया, “आज चिकित्सीय सामान प्रशासन ने निर्धारित किया है कि यात्रियों के टीकाकरण की स्थिति स्थापित करने के उद्देश्य से कोवैक्सिन (भारतबायोटेक द्वारा निर्मित) को मान्यता प्राप्त होगी।”
उच्चायुक्त ने यह भी कहा, “महत्वपूर्ण रूप से कोवेक्सिन की मान्यता, कोविशील्ड की पूर्व घोषित मान्यता के साथ कई भारतीय नागरिक अब ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश पर पूरी तरह से टीका लगाए गए माने जाएंगे।”
इसे एक बड़ी सफलता मन जा रहा है क्योंकि अमेरिका और यूरोप द्वारा तो भारतीय वैक्सीन को मान्यता प्राप्त कर दी गई थी, लेकिन अब in देशों में ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हो गया है और इसके साथ भारतीय आबादी वाले लगभग सारे बड़े राष्ट्रों ने भारतीय वैक्सीन को मान्यता दे दी है।
WHO की मनमर्जी के आगे मोदी की डिप्लोमेसी
कोवैक्सिन को विश्व स्वास्थ्य संगठन से अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। WHO ने पिछले हफ्ते कहा था कि उसे भारत बायोटेक से स्पष्टीकरण मिलने की उम्मीद है। स्वास्थ्य एजेंसी ने कहा कि वह 3 नवंबर को आपातकालीन उपयोग सूची के लिए अंतिम जोखिम-लाभ मूल्यांकन के लिए बैठक करेगी और पश्चात् मंजूरी दी जा सकती है।
अब मोदी है, तो उम्यमीद है कि वे इस समस्या को पहाड़ नहीं बनने देंगे। G20 सम्मेलन में इस समस्या का हल भी ढूंढ लिया गया। मोदी ने खुद शनिवार को अन्य जी20 देशों के नेताओं को सूक्ष्मता से अवगत कराया कि दुनिया भर में वैक्सीन असमानता को समाप्त करने में मदद करने की नई दिल्ली की क्षमता उस गति पर निर्भर करेगी जिस पर WHO कोवैक्सिन और अन्य कोविड -19 दवाइयों को मंजूरी देगा।
बिना मास्क पहने उन्होंने बताया दिया है कि हर बार समस्या के लिए अमेरिका और यूरोप पर निर्भर रहना आवश्यक नहीं है। भारत ऐसे भी हल ढूंढ सकता है। चीन WHO से कितनी भी कोशिश करके भारत की वैक्सीन को रोकना चाहे, लेकिन भारत बड़े जवाब के साथ G20 में शामिल हुआ। एक अरब से अधिक लोगों को वैक्सीन लगाने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट किया कि वैक्सीन असमानता का जवाब भारत ही है।
भारत रविवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा कोविड -19 टीकों के तेजी से अनुमोदन की मांग में अन्य जी 20 देशों से समर्थन प्राप्त करने में कामयाब रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार चुपचाप WHO को भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सिन को बहुप्रतीक्षित मंजूरी देने के लिए प्रेरित कर रही है, भारत सभी जी 20 देशों को टीकों को मंजूरी देने की प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता पर सहमत भी करा रहा है l ये कहा जा सकता है कि भारत सरकार इस दूसरे रास्ते से बहुत आशावादी है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने रोम में कहा, “इस बात पर सहमति बनी है कि हर कोई वैक्सीन अनुमोदन और आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के लिए डब्ल्यूएचओ की प्रक्रियाओं और प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने और टीकों को तेजी से पहचानने के लिए डब्ल्यूएचओ को मजबूत करने में मदद करेगा।”
अगर एक रास्ता चीन बना रहा है तो दूसरा मोदी सरकार भी बनाना जानती है। यह उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा है जो भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे थे। यह उनके मुंह पर भी तमाचा है जो मोदी की अंतरराष्ट्रीय समझ पर प्रश्न खड़ा कर रहे है। G20 के ही सहारे, एक तमाचे से कई गाल लाल हो गए है।