विनीशा बनाम ग्रेटा – एक का काम बोलता है, तो दूसरी बहुत बोलती है

विनीशा ने सौर ऊर्जा से चलने वाली इस्त्री की तैयार, वृक्षारोपण भी कर चुकी हैं!

विनीशा उमाशंकर

वर्ष 1970 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में मनोज कुमार द्वारा गाया गया यह गीत भारत के सन्दर्भ में बिल्कुल सटीक है कि “जब जीरो दिया मेरे भारत ने, भारत ने मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आई” अर्थात  भारत ने विश्व को ज्ञान और विज्ञान प्रदान किया है। भारत में हुनरमंद लोगों की कोई कमी नहीं है, फिर भी देश के लिबरल गैंग अपने देश के होनहार लोगों को भाव ना देकर खुद के जैसी लिबरल विचारधारा वाले लोगों का गुणगान करते हैं। आज देश में चारों तरफ एक ही लड़की की चर्चा है, जो कि तमिलनाडु के एक स्कूल की छात्रा है,  नाम है विनीशा उमाशंकर। विनीशा उमाशंकर 15 साल की हैं, उन्होंने ग्लासगो में आयोजित COP26 जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में राजनेताओं को “बात करना बंद करो और काम करना शुरू करो” वाला भाषण देकर पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवाया है और विश्व पटल पर दुनिया के बड़े राजनेताओं के सामने भारत का सर ऊंचा किया है।

विनीशा उमाशंकर का भाषण सुनने वालों में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर विनीशा उमाशंकर ने जिस तरह से लोगों को जागरूक करने और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी सारी समस्याओं के निदान के लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर भी चर्चा की, जिसके बाद दर्शक दीर्घा में बैठे विश्व के प्रसिद्ध राजनेता विनीशा उमाशंकर के इस भाषण से अभिभूत हो गए ।

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विनीशा ने इस आविष्कार के कारण उन्होंने प्रतिष्ठित चिल्ड्रन क्लाइमेट प्राइज जीता

विनीशा ने अपने सम्बोधन में कहा कि ‘मैं पृथ्वी की एक लड़की हूँ।’ विनिशा ने अपने वक्तव्य में आगे कहा कि, “हमारे पास नाराज़ होने का हर कारण है, लेकिन मेरे पास गुस्से के लिए समय नहीं है।” 15 वर्षीय अर्थशॉट पुरस्कार फाइनलिस्ट विनीशा उमाशंकर कहती हैं कि, “मैं और मेरी पीढ़ी आज हमारे कार्यों के परिणामों को देखने के लिए जीवित रहेंगे, फिर भी आज हमने जो भी चर्चा की है, उसमें से कोई भी व्यावहारिक नहीं लगता है।”

विनीशा की एक महत्त्व पूर्ण परियोजना है, जहां उन्होंने वर्ष 2019 में छह महीने के दौरान भाप से चलने वाले और लोहे को बिजली देने के लिए इस्तेमाल होने वाले सौर पैनलों की सहायता से एक गाड़ी तैयार की थी। उन्होंने ये बताया कि सौर पैनल कैसे काम करते हैं, हालाकिं, विनीशा ने इसके अध्ययन के लिए कॉलेज स्तर की भौतिकी की पाठ्यपुस्तकें पढ़ डालीं। फिर उन्होंने अपना विचार भारत सरकार के नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के सामने रखा। इंजीनियरों ने तब एक पूर्ण पैमाने पर काम करने वाला प्रोटोटाइप बनाने और पेटेंट के लिए दाखिल करने में उनकी सहायता की।

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अपने आस-पड़ोस के चारकोल से जलती हुई इस्त्री की गाड़ियां देखकर छात्रा की कल्पना को पंख लग गई। वह और उसकी माँ परिवार के धुले हुए कपड़े प्रेसवाले तक पहुँचाते थे, जो उन्हें चारकोल से भरे कास्ट-आयरन बॉक्स का उपयोग करके इस्त्री करते थे। इस तरह की इस्त्री गाड़ियां अच्छी तरह से काम करती हैं लेकिन वे हवा में धुआं उड़ाती है और इसलिए, विनीशा के सौर ऊर्जा से चलने वाले इस्त्री का जन्म हुआ और इस आविष्कार के कारण उन्होंने प्रतिष्ठित चिल्ड्रन क्लाइमेट प्राइज जीता, जिसे पिछले साल स्वीडन के चिल्ड्रन क्लाइमेट फाउंडेशन द्वारा प्रदान किया गया था।

विनीशा उमाशंकर ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के उपायों की धीमी गति पर निराशा व्यक्त की। विनीशा ने कहा, “युवा लोगों के पास उन नेताओं पर गुस्सा और निराश होने का हर कारण है, जिन्होंने खोखले वादे किए हैं और पूरा करने में विफल रहे हैं।”

जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर अपना सकारात्मक सुझाव रखा

अब जबकि विनीशा उमाशंकर ने दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है उस कारण लोगों ने उनकी तुलना 18 वर्षीय स्वीडिश प्रचारक ग्रेटा थनबर्ग से की है। अब यही बात देश के कुछ सामाजिक लोगों के गले से नीचे उतर नहीं पा रही कि विनिशा की तुलना ग्रेटा थनबर्ग से क्यों की जा रही है, जिसने आज तक भाषण के अलावा जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी मुद्दे पर कोई विश्वव्यापी बातें लोगों को नहीं बताई जिससे जलवायु संकट का समाधान निकल सका हो।

ग्रेटा थनबर्ग अपने काम से ज्यादा दुसरे देश के आंतरिक मुद्दे पर अपनी लिबरल प्रतिक्रिया देती हैं और उनका सुचारु रूप से किसी भी विश्वहित कार्य में अभी तक कोई भी भूमिका या योगदान नहीं रहा है । वहीं, भारत की बिटिया विनीशा ने विश्व भर में अपनी सूझबूझ से जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर अपना सकारात्मक सुझाव रखा और जलवायु परिवर्तन की गंभीरता और उसका उपाय भी अपने सम्बोधन में बताया।

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ग्रेटा थनबर्ग की विनीशा उमाशंकर से तुलना मूर्खता का पर्याय है

अगर बाते करें ग्रेटा थनबर्ग के योगदान की, तो वो वर्ष 2018 में स्वीडिश संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के बाद प्रसिद्ध हो गईं, वह उस समय 15 साल की थीं। उन्होंने कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए “जलवायु के लिए स्कूल हड़ताल” करते हुए विरोध प्रदर्शन किया, इसके बाद वो सामाजिक कार्य में कम और राजनितिक विद्वेष में ज्यादा समय देने लगी।

वहीं, भारत में विनीशा उमाशंकर के इस योगदान के साथ -साथ कर्नाटक के पर्यावरणविद् उलसी गौड़ा जी, जिन्होंने 30,000 से अधिक पौधे लगाए हैं, को पद्म श्री से सम्मानित किया गया और वहीं राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में लाखों पौधे लगाने वाले किसान और पर्यावरणविद् हिम्मत राम भंभू जी को पद्म श्री से सम्मानित किया गया। अब यहकहना गलत नहीं होगा कि जब हमारे देश में इतने काबिल लोग पहले से मौजूद हैं फिर भी, देश का लिबरल गैंग ग्रेटा थनबर्ग की विनीशा उमाशंकर से तुलना कर रहा है, जो कि मूर्खता का पर्याय है।

 

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